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31 अक्टूबर: आखिर क्या हुआ था इंदिरा की हत्या वाले दिन, यहां जानें सबकुछ?

फौलादी इरादों और निडर फैसले लेने वाली देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर की सुबह उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी।

Aditya Mishra
Published on: 30 Oct 2019 4:00 PM GMT
31 अक्टूबर: आखिर क्या हुआ था इंदिरा की हत्या वाले दिन, यहां जानें सबकुछ?
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नई दिल्ली: फौलादी इरादों और निडर फैसले लेने वाली देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर की सुबह उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी।

इंदिरा गांधी ने 1966 से 1977 के बीच लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली और उसके बाद 1980 में दोबारा इस पद पर पहुंचीं और 31 अक्टूबर 1984 को पद पर रहते हुए ही उनकी हत्या कर दी गई। आज हम आपको सिलसिलेवार ढंग से बता रहे हैं क्या कुछ हुआ था हत्या वाले दिन:-

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घटना के दिन हुआ था ये सब

तारीख - 31 अक्टूबर 1984: बुधवार का दिन था। सुबह के तकरीबन साढ़े सात बजे थे। भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी काले बॉर्डर वाली केसरिया रंग की साड़ी पहन कर तैयार हो चुकी थीं।

अमूमन उनकी दिन की शुरुआत अखबारों और बैठकों से होती थी। लेकिन 31 अक्टूबर की सुबह इन कामों के बीच ही उन्होंने पीटर उस्तीनोव को मुलाकात के लिए वक्त दे रखा था। जो इंदिरा पर एक डॉक्युमेंट्री बना रहे थे। इसी को लेकर वे इंदिरा से मिलना चाहते थे।

सुबह आठ बजे : इंदिरा ने उस दिन हर रोज की तुलना में कम नाश्ता किया। उन्होंने दो टोस्ट, सीरियल्स, अंडे और संतरे का ताजा जूस लिया।

नाश्ते के बाद वह हल्का मेकअप ले रही थीं, तभी रुटीन चेकअप के लिए उनके डॉक्टर केपी माथुर भी पहुंच गए। इसके कुछ समय पहले ही उनके निजी सचिव आरके धवन भी वहां पर पहुंच गए थे।

सुबह नौ बजकर 10 मिनट: उस दिन मौसम सुहाना था और बाहर हल्की ठंड की वजह से धूप अच्छी लग रही थी। इंदिरा जब घर से बाहर निकली तो सिपाही नारायण सिंह हाथों में छाता लिए हुए उनके पीछे चल रहे थे।

उस वक्त आरके धवन सबसे पीछे चल रहे थे उनके निजी सुरक्षा अधिकारी सब इंस्पेक्टर रामेश्वर दयाल भी। अकबर रोड से गुजरते वक्त वो धवन से राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के यमन दौरे को लेकर कुछ बातें कर रही थीं।

सुबह नौ बजकर 20 मिनट: सुबह का वक्त था इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात बेअंत सिंह एकाएक उनके सामने आ गया। उसने प्रधानमंत्री को नमस्ते किया।

इंदिरा ने अभी मुंह खोला ही था कि उसने अपनी रिवॉल्वर से इंदिरा गांधी के सीने पर गोलियां बरसा दी। उसने प्वॉइंट ब्लैंक रेंज से दो और गोली इंदिरा गांधी को मारी।

हत्या के बाद से डर गये थे हत्यारे

सुबह नौ बजकर 21 मिनट, 30 सेकेंड : बेअंत सिंह उस वक्त काफी डर गया था, उसने कुछ दूर खड़े सतवंत सिंह को इशारा करते हुए गोली चलाने को कहा। सतवंत ने तुरंत अपनी पिस्तौल से गोलियां इंदिरा गांधी पर चलानी शुरु कर दी।

उसने कार्बाइन में मौजूद पच्चीस-पच्चीस गोलियां उन पर दाग दी। तभी रामेश्वर दयाल ने भागकर आगे आने लगे, लेकिन सतवंत ने उनको भी कुछ गोली मार वहीं गिरा दिया।

इंदिरा गोलियों से घायल होकर गिर चुकी थीं। इसके बाद बेअंत सिंह और सतवंत सिंह दोनों ने अपने पिस्तौल नीचे रख दिए। आसपास तैनात आईटीबीपी के जवान भी गोलियों की आवाज सुन बाहर आ गए और सतवंत सिंह को दबोच दिया।

हत्या के दिन एम्बुलेंस का ड्राइवर नहीं था मौजूद

इंदिरा गांधी के आवास पर 24 घंटे एंबुलेस मौजूद रहती थी। 31 अक्टूबर की सुबह भी वहां एंबुलेंस खड़ी थी था, लेकिन ड्राइवर नहीं था। ये देख इंदिरा के राजनीतिक सलाहकार माखनलाल फोतेदार ने गाड़ी निकालने को लिए कहा।

एक सुरक्षाकर्मी की मदद से आरके धवन ने जमीन से इंदिरा को उठाकर गाड़ी की पिछली सीट पर रखा। इंदिरा की बॉडी पूरी तरह से खून से सन चुकी थीं।

कार जैसे ही आवास से निकली ही थी सोनिया गांधी घर के कपड़े में ही पैदल रोते हुए गाड़ी में आकर बैठ गई और इंदिरा का सिर उठाकर अपनी गोद में रख लिया।

सुबह नौ बजकर 32 मिनट: सायरन की आवाज के साथ एक सफेद एंबेसडर कार सीधे एम्स के इमरजेंसी वार्ड के गेट पर पहुंची। वार्ड का गेट खोलने और इंदिरा को कार से उतारने में तीन मिनट और लग गए। दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की गेट पर उस दिन स्ट्रेचर तक नहीं था। इंदिरा की सांसे थमती जा रही थीं।

सुबह नौ बजकर 36 मिनट: एक पहिए वाले स्ट्रेचर पर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रखकर किसी तरह अस्पताल के अंदर पहुंचाया गया।

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इंदिरा को चढ़ाया गया 80 बोतल खून

इंदिरा को लहूलूहान देखकर एम्स में तैनात डॉक्टरों के होश उड़ गए। अस्पताल के बाहर लोगों को हूजूम जमा होने लगा। तभी एक डॉक्टर ने एम्स के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट को फोन कर इसकी जानकारी दी।

एम्स के सबसे अनुभवी डॉक्टरों की फौज इंदिरा के आसपास खड़ी थी। डॉक्टर गुलेरिया को अनहोनी की आशंका हो चुकी थी। तसल्ली के लिए इंदिरा का ईसीजी किया गया। जिसमें उनके दिल में बहुत हल्की हचचल दिखी, लेकिन नब्ज लगभग थम चुकी थी।

आंखों की फैली हुई पुतलियां बता रही थीं कि उनके दिमाग को बेहद नुकसान पहुंचा है। ये देख एक डॉक्टर ने इंदिरा की मुंह में ऑक्सीजन की एक नली डाल दी, ताकि दिमाग को जिंदा रखा जा सके। इस दौरान उन्हें ओ आरएच निगेटिव रक्त ग्रुप की 80 बोतल खून चढ़ा दी गई।

डॉक्टर गुलेरिया ने दी थी निधन की जानकारी

डॉक्टर गुलेरिया ने वॉर्ड के बाहर आकर इंदिरा गांधी के निधन की जानकारी दी और साथ ही वहां मौजूद स्वास्थ्य मंत्री शंकरानंद से पूछा कि अब क्या करना है, उन्हें मृत घोषित कर दें? लेकिन शंकरानंद ने कहा कि नहीं उनको ऑपरेशन थियेटर में ले चलो।

डॉक्टरों ने बताया कि उनके लीवर का दाहिना हिस्सा छलनी हो चुका है और बड़ी आंत में बारह छेद हैं। गोली लगने से रीढ़ की की हड्डीऔ टूट चुकी है और एक फेफड़ा भी फट गया है।

रात में आठ बजे टीवी और रेडियो पर दी गई जानकारी

दो बजकर 23 मिनट: एम्स ने ऑफिसियल तौर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को डेथ डिक्लेयर कर दिया। टीवी और सरकारी रेडियो पर इसकी सूचना लगभग रात 8 बजे दी गई। यह खबर सुनकर पूरा देश चकित रह गया था।

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Aditya Mishra

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