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कृषि कानून और किसान आन्दोलन, समाधान की जड़ में ही विवाद

न्याय का बेसिक सिद्धांत है कि किसी भी तरफ का पलड़ा भारी न रहे। बराबरी से तथ्य देखे जाएँ, बराबरी से बातें सुनीं जाएँ और आउटकम भी पूरी तरह बैलेंस्ड हो।

Roshni Khan
Published on: 13 Jan 2021 11:50 AM IST
कृषि कानून और किसान आन्दोलन, समाधान की जड़ में ही विवाद
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कृषि कानून और किसान आन्दोलन, समाधान की जड़ में ही विवाद (PC: social media)

नीलमणि लाल

लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर बातचीत करने और इस मसले को सुलझाने के लिए चार सदस्यों की जो समिति बनाई है वो सवालों के घेरे में है। सवाल इसलिए कि समिति के सदस्य पहले से ही नए कृषि कानूनों के समर्थन में हैं। सो क्या वो नए कानूनों की खिलाफत करनेवालों की बातों को स्वीकार कर पाएंगे? ये एक बड़ा सवाल है। एक बात और ध्यान देने वाली है कि सुप्रीम कोर्ट ने नए कृषि कानूनों को स्थगित रखने का आदेश दिया है लेकिन इस स्टे का कोई वैधानिक आधार नहीं बताया गया है। हैरत की बात है कि कानूनों के बारे में कोई बात नहीं की गई है। कानूनों की वैधानिकता की कोई समीक्षा नहीं की गयी है।

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विवाद समाधान का ये नया ट्रेंड है जिसके दूरगामी नतीजे हो सकते हैं

सिर्फ मध्यस्थता के लिए अदालत ने सिर्फ समिति बना दी है। लेकिन मध्यस्थता की पहली शर्त को ही ध्यान में नहीं रखा गया कि मध्यस्थता करने वाले ऐसे हों जिझें दोनों पक्ष स्वीकार करें। बहरहाल, अब समिति सवालों के घेरे में है। अब एक नयी स्थिति उत्पन्न हो गयी है जिसे अभूतपूर्व करार दिया जा सकता है। विवाद समाधान का ये नया ट्रेंड है जिसके दूरगामी नतीजे हो सकते हैं।

न्याय का बेसिक सिद्धांत है कि किसी भी तरफ का पलड़ा भारी न रहे

न्याय का बेसिक सिद्धांत है कि किसी भी तरफ का पलड़ा भारी न रहे। बराबरी से तथ्य देखे जाएँ, बराबरी से बातें सुनीं जाएँ और आउटकम भी पूरी तरह बैलेंस्ड हो। यही वजह कि न्याय की मूर्ति के हाथों वाला तराजू किसी भी तरफ झुका नहीं रहता, वो हमेशा बराबर रहता है। और इस बराबरी को हासिल करने के लिए न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी बंधी रहती है। कृषि कानूनों पर बनी समिति में पलड़ा एक ओर झुका नजर आ रहा है।

इस झुकाव की वजह साफ़ है। समिति के चारों सदस्य नए कानूनों के पक्ष में अपनी राय पहले ही सार्वजानिक तौर पर व्यक्त कर चुके हैं। यही वजह है कि समिति को किसान संगठनों के नेताओं ने सिरे से ख़ारिज कर दिया है।

farmer-protest farmer-protest (PC: social media)

समिति की बात करें तो इसमें अशोक गुलाटी और डॉ. प्रमोद जोशी कृषि अर्थशास्त्री हैं, जबकि भूपिंदर सिंह मान और अनिल घंवत किसान नेता हैं। भले ही समिति में नए कृषि कानूनों के खिलाफ या इन कानूनों के प्रति संदेह रखने वाली आवाज मिसिंग है लेकिन फिर भी जो चार सदस्य हैं उनके पास बतौर कृषि अर्थशास्त्री या किसान नेता होने का दशकों का अनुभव है जिसे किसी तरह ख़ारिज नहीं किया जा सकता।

अशोक गुलाटी को 2015 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था

अशोक गुलाटी को 2015 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था। वो एक बड़े कृषि अर्थशास्त्री हैं और फिलहाल इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशन में प्रोफेसर हैं। वे नीति आयोग के तहत प्रधानमंत्री की ओर से बनाई एग्रीकल्चर टास्क फोर्स के सदस्य और कृषि बाजार सुधार पर बने एक्सपर्ट पैनल के अध्यक्ष हैं। अशोक गुलाटी कृषि कानून को किसानों के लिए फायदेमंद बताते रहे हैं। पिछले साल सितंबर में इंडियन एक्सप्रेस में अपने एक आलेख में उन्होंने लिखा था- ये कानून किसानों को ज्यादा विकल्प और आजादी देंगे। अशोक गुलाटी ने लिखा था कि कृषि कानूनों पर सरकार को अपना काम करना चाहिए। इस मसले पर विपक्ष भ्रमित है।

गुलाटी लम्बे समय से भारतीय कृषि सेक्टर की आज़ादी के प्रबल पक्षधर रहे हैं

गुलाटी लम्बे समय से भारतीय कृषि सेक्टर की आज़ादी के प्रबल पक्षधर रहे हैं। उनका मानना है कि नए कृषि कानूनों से किसानों को वृहद् विकल्प मिलेंगे, उनकी कमाई के रस्ते खुलेंगे और उपभोक्ताओं को कम कीमतों का लाभ मिलेगा। गुलाटी का कहना है कि जो कानून लाये गए हैं वो कोई नए नहीं हैं बल्कि कांग्रेस ने 2019 के अपने चुनावी घोषणापत्र में इन्हीं का वादा किया था। गुलाटी का कहना है कि नए कानून का विरोध निजी सेक्टर और बाजार के प्रति गहरे अविश्वास को दर्शाता है। गुलाटी ये भी मानते हैं कि केंद्र सरकार किसानों को कानून के बारे में समझाने और उनके लाभ बताने के बारे में पूरी तरह फेल रही है।

डॉ. प्रमोद के जोशी भी एक बड़े कृषि अर्थशास्त्री हैं

डॉ. प्रमोद के जोशी भी एक बड़े कृषि अर्थशास्त्री हैं। वे नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च के निदेशक भी रह चुके हैं। फिलहाल वे साउथ एशिया इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक हैं। उन्हें कृषि के क्षेत्र में काम करने के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्होंने 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' में अपने लेख में में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को किसानों के लिए फायदेमंद बताया था। ये वो समय था जब कृषि कानून गढ़े जा रहे थे। डॉ जोशी ने लिखा था- इन प्रस्तावित कानूनों से फसलों के कीमतों में उतार-चढ़ाव होने पर किसानों को नुकसान नहीं होगा और उनका जोखिम कम होगा।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से फसलों की लागत कम होती है

इस लेख में लिखा था- वैश्विक अनुभव बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से फसलों की लागत कम होती है। इसके बाद दिसंबर 2020 में फाइनेंशियल एक्सप्रेस में ही डॉ जोशी ने एक और लेख लिखा था। इसमें जोशी ने लिखा था कि - ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसान हर बातचीत से पहले लक्ष्य बदल देते हैं। जोशी ने किसानों को समर्थन देने वालों को संबोधित करते हुए लिखा कि - उनकी मांग समर्थन के काबिल नहीं हैं। जोशी ने लिखा था कि कृषि कानूनों में तनिक भी छूट या बदलाव से भारतीय कृषि ग्लोबल अवसरों का लाभ उठाने से चूक जायेगी। गुलाटी की तरह डॉ जोशी का भी मानना है कि किसानों और केंद्र के बीच बातचीत इसलिए फेल रही है क्योंकि कुछ एक्टिविस्टों और राजनीतिक तत्वों ने कृषि कानूनों को तोड़मरोड़ कर पेश किया और आन्दोलन को हाइजैक कर लिया है।

अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के अध्यक्ष हैं भूपिंदर सिंह मान

समिति एक अन्य सदस्य हैं भूपिंदर सिंह मान। वो अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के अध्यक्ष हैं। इस संगठन को भी शरद जोशी ने ही बनाया था। भूपिंदर सिंह भारतीय किसान यूनियन के भी अध्यक्ष हैं। 82 वर्षीय भूपिंदर सिंह को राष्ट्रपति ने 1990 में राज्यसभा में नामांकित किया था। भूपिंदर सिंह मान की समिति ने बीते 14 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कुछ आपत्तियों के साथ कृषि कानूनों का मोटे तौर पर समर्थन किया था। पत्र में लिखा था - आज भारत की कृषि व्य वस्थां को मुक्तू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्वं में जो तीन कानून पारित किए गए हैं, हम उन कानूनों के पक्ष में सरकार का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं।

farmer-protest farmer-protest (PC: social media)

वो महाराष्ट्र में किसानों के शेतकरी संगठन के अध्यक्ष हैं

समिति के चौथे सदस्य हैं अनिल घंवत। वो महाराष्ट्र में किसानों के शेतकरी संगठन के अध्यक्ष हैं। यह संगठन बड़े किसान नेता रहे शरद जोशी ने 1979 में बनाया था। ये संगठन भारतीय किसानों के लिए बाजार और टेक्नोलॉजी तक मुक्त पहुँच की मांग करता रहा है। घंवत 1982 से इस संगठन से जुड़े हैं और सरकारी एकाधिकार के विरोध में कई आन्दोलन कर चुके हैं। वे कृषि व्यवसाय के उदारीकरण और भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन के समर्थक हैं। घंवत का कहना है कि हम कृषि में अधिकाधिक उदारीकरण के लिए 40 साल से संघर्ष करते आ रहे हैं। आज़ादी के बाद ये पहली सरकार है जिसने इस दिशा में कोई काम किया है।

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शेतकारी संगठन केंद्र सरकार द्वारा घोषित कृषि कानूनों का समर्थन करने वालों में सबसे पहला संगठन है

घंवत का कहना है कि सरकार को और आगे जाना चाहिए और आवश्यक वस्तु कानून को लागू किये जाने की किसी भी संभावना को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए। शेतकारी संगठन केंद्र सरकार द्वारा घोषित कृषि कानूनों का समर्थन करने वालों में सबसे पहला संगठन है। संगठन के संस्थापक शरद जोशी का हमेशा मानना रहा था कि किसानों की समस्याओं का मूल कारण बाजार तक सीमित पहुंच है। स्वर्गीय जोशी कहते थे कि बाजार खुला और प्रतिस्पर्धी होना चाहिए जिससे कि कृषि उत्पादों की सही कीमत मिल सके।

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