निर्भया का वो अंतिम समय: डॉक्टर ने सुनाई दर्दभरी दास्तां, ऐसे बहादुरी से लड़ी बेटी

आखिरकार साढ़े 7 साल बाद निर्भया को इंसाफ मिल ही गया। शुक्रवार सुबह ठीक 5:30 बजे निर्भया के चारों दोषियों को सूली पर चढ़ाया गया।

Roshni Khan
Published on: 20 March 2020 7:43 AM GMT
निर्भया का वो अंतिम समय: डॉक्टर ने सुनाई दर्दभरी दास्तां, ऐसे बहादुरी से लड़ी बेटी
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निर्भया का वो अंतिम समय: डॉक्टर ने सुनाई दर्दभरी दास्तां, ऐसे बहादुरी से लड़ी बेटी

नई दिल्लीः आखिरकार साढ़े 7 साल बाद निर्भया को इंसाफ मिल ही गया। शुक्रवार सुबह ठीक 5:30 बजे निर्भया के चारों दोषियों को सूली पर चढ़ाया गया। तिहाड़ जेल के फांसी घर में निर्भया के चारों दोषियों को फांसी दी गई। देश में आज जो खुशी की लहर है शायद ऐसी खुशी कभी नहीं मिली थी। बड़े-बड़े सेलिब्रिटीज अपने सोशल मीडिया पर इसकी बात की खुशी जाहिर कर रहे हैं। इन सबके बीच निर्भया का इलाज जिस डॉक्टर ने किया था उन्होंने ने भी कुछ बातें बताई जिसे जान कर आपका दिल दहल जाएगा।

डायरेक्टर डॉक्टर एमसी मिश्रा का कहना है ये

निर्भया का इलाज करने वाले एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर एमसी मिश्रा का कहना था कि वह बहुत ही जीवट वाली बच्ची थी। इतने दर्द के बाद भी वह जीना चाहती थी। अपने आंखों के सामने इन दरिंदों को सजा दिलाना चाहती थी। जीने के प्रति उसकी इच्छाशक्ति जबरदस्त थी। वह अपनी पीड़ा के बाद भी मुस्कुरा कर जवाब देती थी, मैं उस बच्ची के जज्बे को सलाम करता हूं। उन्होंने कहा कि अगर कहीं उसकी आत्मा है तो आज उस बच्ची को जरूर सुकून मिल रहा होगा।

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जब निर्भया के साथ साल 2012 में रेप हुआ था, उस समय डॉक्टर मिश्रा एम्स ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख हुआ करते थे। निर्भया का इलाज सफदरजंग अस्पताल में चल रहा था, लेकिन ट्रॉमा केयर के एक्सपर्ट होने के नाते डॉक्टर मिश्रा को निर्भया के इलाज में स्पेशल तैनाती की गई थी। निर्भया के आरोपियों को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने कहा कि, मैं वह दिन भूल नहीं सकता हूं। मेरे सामने एम्स में रोज एक्सिडेंट और तरह-तरह की घटना आते रहती थी, लेकिन जिस बर्बरता से उस बच्ची के साथ जुल्म हुआ था, मैंने पूरे करियर में नहीं देखा। बच्ची की आंत निकाल दी थी उन दरिंदों ने, ये देखकर डॉक्टरों की भी रूह कांप रही थी।

रेप के बाद की गई थी तुरंत सर्जरी

डॉक्टर मिश्रा ने कहा कि, घटना के बाद तुरंत सर्जरी की गई। सर्जरी के दौरान उसकी खराब हो गई आंत के बाकी हिस्से को निकाला गया। ऑपरेशन के बाद वह आईसीयू में थी। सर्जरी के बाद अगले 2 दिन वह ठीक थी। लेकिन धीरे-धीरे इंफेक्शन बढ़ने लगा। उसे प्यास लग रही थी, लेकिन पानी देना सही नहीं था। सिर्फ सूखे गले को गीला करने के लिए चम्मच से एक या दो चम्मच ही पानी देने की इजाजत दी गई थी, ऑरली उसे कुछ भी देना संभव नहीं था, क्योंकि उसके पास आंत बचा ही नहीं था।

धीरे-धीरे उसका इंफेक्शन बढ़ता गया

एक डॉक्टर के तौर पर हमें उसे इंफेक्शन से बचाना था। लेकिन यह धीरे-धीरे उसका इंफेक्शन बढ़ता गया। उसे सेप्टिसीमिया हो गया। लगातार ऐंटिबायोटिक की डोज बढ़ाई गई, लेकिन धीरे-धीरे असर कम होता जा रहा था। क्योंकि, घटना के दौरान रॉड का इस्तेमाल करते हुए आंत बाहर निकाल ली गई थी, उसकी वजह से इंफेक्शन बहुत ज्यादा था, यही नहीं, घटना के बाद बहुत देर तक बच्ची वहीं पर पड़ी रही, इस वजह से भी इंफेक्शन और बढ़ा। कंटेमिनेशन और बैक्टीरियल इंफेक्शन धीरे-धीरे बहुत सीवियर हो गया।

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उन्होंने कहा कि, बात यही खत्म नहीं होती है, हमारे सामने एक बड़ी चुनौती यह थी कि अगर बच्ची बच भी जाती है तो बिना आंत के कैसे जिंदा रहेगी, इसके लिए स्मॉल बॉल ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती थी। भारत में यह ट्रांसप्लांट नहीं होता है, इसलिए बच्ची को बेहतर इलाज की उम्मीद में सिंगापुर भेजा गया पर अफसोस की वह बच नहीं सकी। लेकिन आज वह जहां भी होगी, इन दरिंदों को फांसी के बाद उसे जरूर सुकून मिल रहा होगा।

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