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सदियों से जलालपुर गांव के बीहड़ में उपेक्षित पड़ी प्राचीन धरोहरों
जलालपुर गांव की प्राचीन धरोहरें बड़ी ही अद्भुत व दुर्लभ हैं। इस गांव को दूसरा काशी कहा जाए तो गलत नहीं है। बस उपेक्षा ने इस गांव को पीछे किया है यहां की प्राचीन धरोहरें उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे नष्ट हो रही हैं।
अरुण कुमार द्विवेदी
बुंदेलखंड का कांशी
बुंदेलखंड: जलालपुर गांव की प्राचीन धरोहरें बड़ी ही अद्भुत व दुर्लभ हैं। इस गांव को दूसरा काशी कहा जाए तो गलत नहीं है। बस उपेक्षा ने इस गांव को पीछे किया है यहां की प्राचीन धरोहरें उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे नष्ट हो रही हैं। निजी स्वार्थो के चलते लोग इन्हें क्षति पहुंचा रहे हैं जलालपुर का विकास पर्यटन केंद्र के रूप में होता है तो जिले के सबसे पिछड़े क्षेत्र के लोगों को बड़ा वरदान होगा। बेरोजगारी दूर होगी, प्रशासन के आय का स्रोत बढ़ेगा। गांव के बीहड़ से जुड़ा बेतवा नदी पर पुल भी बना है। जिससे कानपुर, लखनऊ व दिल्ली सहित विभिन्न महानगरों का आवागमन आसान है। लेकिन आज तक इस ओर किसी न तो सोचा और न ही पहल की।
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बुंदेलखंड में एसे तो अनेको प्राचीन स्थान है लेकिन बुंदेलखंड में एक येसा शहर जिसे बसाया था एक फ़क़ीर ने, फिर बाद में आई अंग्रेजी हुकूमत ने उसे ब्यापार का मुख्य केंद्र, जहां से पुरे देश में करोडो का ब्यापार हुआ करता था उस ज़माने मे इसे छोटा बनारस का नाम दिया गया था । उस समय यहाँ की जनसँख्या लगभग 20000 की थी बीस हजार की आवादी का यह शहर अमीरों का शहर के नाम से जाना जाता है इस शहर में सेकड़ो महल व सेकड़ो विशाल मंदिर है इन मंदिरों में वेश कीमती मुर्तिया विराजमान है जलालपुर के मंदिर मुर्तियो को निहारती रवींद्र सिंह की पेश है ये रिपोर्ट-
11 वी शताब्दी में बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के जलालपुर शहर को सदियों पहले एक फ़क़ीर जलाल खां बाबा ने बसाया था जिनकी मजार आज भी यहा स्थित है बताते है कि जलाल खा का पूरा नाम मोहोमद जलाल उद्दीन शाह है जो मुग़ल शासक अकबर के बेटे थे। उन्होंने बसाया था। बाद में जब भारत में ब्यापार की शुरू आत हुई थी तब जलालपुर को ब्यापारिक केंद्र बनाया गया। चूँकि उस समय ब्यापार सिर्फ नदियों के रास्ते ही संभव था।
जलालपुर शहर में बने महलों व मंदिरों को देखकर आप अंदाजा लगा सकते है कि यहा रहने वाले कितने रहीश होंगे ।जलालपुर शहर के बारे में कई ग्रन्थ व कविओ ने अपने विचार दिए है बताया जाता है कि इस शहर में बने महल इतने विशाल होते थे कि उनके ऊपर नहाने के लिए नहाने तालाब बने मिले है जलालपुर के बारे में यह भी कहा जाता है की यहा पर अभी भी इतनी धन संपदा है की कही भी खुदाई करे तो कुछ न कुछ निकलता है।
जलालपुर शहर को पहले अमीरों का शहर कहा जाता था एहा पर बने मंदिर जो देखने भर में ही किसी का मन मोह ले इतनी खूबसूरती से बनाये गए है इन मंदिरों में बेश कीमती अस्तुधातु की सदीओ पुराणी मुर्तिया स्थापित है जिनकी कीमत आज के समय करोडो रूपये है लेकिन बिना किसी रखराखाव के कारन अब अधिकतर मंदिरों की मुर्तिया या तो चोरी हो गई या फिर वहा से उठा कर अपने घरो में रख ली है जलालपुर को कभी छोटा बनारस के नाम से जाना जाता था क्युकि यहा की बेतवा नदी पर बना घाट हमहु बनारस के घाट की तरह है लेकिन प्रशासन व पुरात्व की लापहर वाही के चलते अब यह अमीरों का शहर अब ख़त्म होने की कगार पर है।
जो भी सुनेगा उसे अश्चार्व होगा कहते है कि काशी के बाद सबसे ज्यादा शिव मंदिर कही है तो वो है बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले का जलालपुर गांव पर जो बेतवा नदी के किनारे बसा है जिसे ढाई सो साल पहले ब्यापारी मन्नू अग्रवाल ने इस गांव को उत्तर प्रदेश की दूसरी काशी बनाने का सपना देखा था और इसे साकार करने के लिए उन्होंने अदभुद नकाशी और दुर्लभ पत्थरो से 51 भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया।
एक समय एस भी आया की इन शिव मंदिरों की भव्य छटा देखने के लिए दूर दूर से लोग आते थे ।लेकिन अब यहाँ परिंदा भी पर नहीं मरता है अब हालत यह है कि जलालपुर को काशी बनाने का सपना उनकी आँखों के बन्द होते ही खत्म हो गया। तमाम अनबुझे एतेहासिक पहलुओ का यह गांव पूरी तरह उपेक्षित है। इन प्राचीन धरोहरों के रखरखाव का जिम्मा उठाने कोई नहीं आया है बेतवा नदी के किनारे आज भी जलालपुर शहर बसा हुआ है इस शहर में आज भी सैकडो विशाल महल खड़े हुए है जो आज भी जलालपुर शहर के इतिहास की गवाही दे रहे है गांव के लोग बताते है कि आज भी एसे कई महल है जो बन्द पड़े हुए है जिनके दरवाजे चारो तरफ से चुनवा दिए गए है।
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जलालपुर शहर में आज भी लोग खजाने को खोजने के लिए जाते है। जो रात के अंधेरे में महल, मंदिर को खोद कर खजाना निकालने की कोशिस करते है बदमासो ने अनेक बार बेश कीमती भगवान की मूर्ति व शिव लिंगों को अपना निशाना बनाया। यहां पर आज भी एसे अनोखे पत्थरो से निर्मित शिव लिंग है जिनमे टार्च से रोशनी दिखने से स्वयं जल उठाते है।