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सेना में खुशी की लहर: 9 साल बाद मिली बड़ी कामयाबी, कांप उठा आतंकी संगठन

सरेंडर के पीछे की कहानी और भी दिलचस्प है। मिलेट्री इंटेलीजेंस ने इस ऑपरेशन को साल 2011 में तब शुरू किया जब उल्फ़ा कमांडर इन चीफ परेश बरुआ ने 2011 में डिप्टी कमांडर इन चीफ बनाया था।

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Published on: 12 Nov 2020 11:26 AM GMT
सेना में खुशी की लहर: 9 साल बाद मिली बड़ी कामयाबी, कांप उठा आतंकी संगठन
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सेना में खुशी की लहर: 9 साल बाद मिली बड़ी कामयाबी, कांप उठा आतंकी संगठन

नई दिल्ली: एक समय था कि उल्फा का आतंक बहुत ज्यादा था। 90 के दशक में नॉर्थ ईस्ट इंडिया यानी उत्तर-पूर्वी भारत में इनसर्जेंट ग्रुप उल्फा उग्रवादी था। लेकिन समय के साथ सुरक्षाबलों ने इस संगठन पर ऐसी नकेल कसी कि उसकी न सिर्फ गतिविधियां खत्म हुईं बल्कि उसका वजूद ही खत्म हो चला। अब उल्फा भारत सरकार के साथ बातचीत की मेज पर बैठा है लेकिन जब उल्फा के कमांडरों ने भारत सरकार के साथ बातचीत शुरू करने की शुरूआत की तो उसी समय एक धड़ा परेश बरुआ के साथ अलग हो गया और एक नया संगठन उल्फ़ा (आई) बनाया।

मोस्टवांटेड परेश ने भारत से भागकर चीन गया

हालांकि मोस्टवांटेड परेश तो भारत से भागकर चीन चला गया और उसके पीछे बागडोर संभाली उसके डिप्टी कमांडर इन चीफ दृष्टि राजखोवा ने। लेकिन भारतीय सेना के इंटेलीजेंस विंग ने एक ऐसा ऑपरेशन चलाया जो कि नौ साल तक चला और जिसका नतीजा है कि दृष्टि राजखोवा को आत्मसमर्पण करना पड़ा। बुधवार को मेघालय में राजखोवा ने अपने चार बॉडीगार्ड के साथ सेना के सामने सरेंडर कर दिया।

राजखोवा 2011 तक उल्फ़ा (आई) के 109 बटालियन का कमांडर था

सरेंडर के पीछे की कहानी और भी दिलचस्प है। मिलेट्री इंटेलीजेंस ने इस ऑपरेशन को साल 2011 में तब शुरू किया जब उल्फ़ा कमांडर इन चीफ परेश बरुआ ने 2011 में डिप्टी कमांडर इन चीफ बनाया था। इससे पहले राजखोवा 2011 तक उल्फ़ा (आई) के 109 बटालियन का कमांडर था। सेना ने ऑपरेशन के तहत एक कैप्टन ने राजखोवा के साथ संपर्क बनाया और पिछले 9 सालों में अलग अलग जगह पोस्टिंग के बावजूद उससे लगातार संपर्क बनाए रखा और सरेंडर करके मुख्य धारा में आने का दबाव बनाए रखा।

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ऐसे तैयार की गई सरेंडर प्लान की रूपरेखा

चूंकि ये एक बड़ा ऑपरेशन था तो खुद दिल्ली में सेना मुख्यालय में मिलेट्री इंटेलिजेंस के डीजी के नेतृत्वे इस सरेंडर प्लान की रूपरेखा तैयार की गई। उसके मुताबिक 11 नवंबर को आधी रात को एक ऑपरेशन लॉन्च‍ किया गया। तकरीबन 2 बजे राजखोवा ने अपने चार बॉडीगार्ड के साथ सेना के रेड हॉर्न डिवीज़न के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उन सभी के पास से एक AK-81 और 2 पिस्टल भी सेना को सौंप दिए गए। फिलहाल सेना राजखोवा को किसी अन्य स्थान पर ले गई है।

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राजखोवा एक एनकाउंटर में बच निकला था

अगर राजखोवा की बात करें तो सुरक्षाबलों के रडार पर वो काफी दिनों से था। कई बार ये सुरक्षाबलों के साथ हुई मुठभेड़ में बच निकला था। इसी साल 20 अक्टूबर को ही राजखोवा एक एनकाउंटर में बच निकला था। राजखोवा एक आरपीजी एक्सपर्ट है जिसे उल्फ़ा कमांडर इन चीफ परेश बरुआ ने 2011 में डिप्टी कमांडर इन चीफ बनाया था और नार्थ इस्ट में कई हमलों को राजखोवा ने अंजाम दिया है और नॉर्थ ईस्ट के राज्यों यहां तक कि बांग्लादेश में गन रनिंग का मास्टरमाइंड माना जाता है और उत्तर पूर्व के राज्यों में सक्रिय उग्रवादी संगठनों को हथियार मुहैया कराता है।

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