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Atul Subhash Suicide Case : 'अब समय आ गया है...कानून की समीक्षा हो', BJP सांसद तेजस्वी सूर्या का बयान
Atul Subhash Suicide Case Update: बीजेपी सांसद ने कहा कि परिवार एक बहुत ही महत्वपूर्ण संस्था है। यह समाज की आधारशिला है।
Atul Subhash Suicide Case Update: बेंगलुरु में एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या मामले पर भारतीय जनता पार्टी के सांसद तेजस्वी सूर्या ने बड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने परिवार से जुड़े कानूनों की समीझा करने की बात की है। उन्होंने अब समय आ गया है, हमें कानूनों की समीक्षा करनी चाहिए और जल्द समाधान नहीं किए गए तो इसके गंभीर सामाजिक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
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बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने कहा कि मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम परिवार से जुड़े इन कानूनों की समीक्षा करें और जहां भी संभव हो, लैंगिक तटस्थता का पहलू भी शामिल करें, ताकि विवाह में दोनों भागीदारों की सुरक्षा हो सके। परिवार एक बहुत ही महत्वपूर्ण संस्था है। यह समाज की आधारशिला है। ऐसे कानून जिनका एक साथी द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है, वे परिवार की संस्था के लिए हानिकारक हो सकते हैं और यदि उनका समाधान नहीं किया गया तो इसके बहुत ही गंभीर सामाजिक परिणाम होंगे।
पत्नी की प्रताड़ना से किया सुसाइड
बता दें कि बीते मंगलवार को बेंगलुरु में एक एआई इंजीनियर ने आत्महत्या की है। उनकी पहचान उत्तर प्रदेश के जौनपुर निवासी अतुल सुभाष के रूप में हुई है। वह पारिवारिक कलह से गुजर रहे थे। सुसाइड से पहले उन्होंने एक वीडियो और 24 पन्नों का सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें अपनी पत्नी, उसके परिवार और न्यायाधीश को अपनी मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया। नोट में उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी पत्नी और ससुराल वालों ने झूठे मामलों के जरिए उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित किया। वीडियो में उन्होंने कहा, मैं पूरी तरह से होश में हूं और अपनी इच्छा से यह कदम उठा रहा हूं।
दरअसल, अतुल सुभाष उनकी पत्नी ने उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था। सुसाइड नोट और वीडियो में अतुल ने अपनी पत्नी और ससुराल पर उत्पीड़न और झूठे आरोपों का आरोप लगाया। जानकारी के अनुसार, पत्नी पहले से ₹40,000 का भत्ता प्राप्त कर रही थी, जबकि वह स्वयं काम भी करती थी। इसके बावजूद, उसने ₹2-4 लाख की अतिरिक्त राशि की मांग की थी। अतुल ने कहा कि पिछले दो सालों में कोर्ट में 120 तारीखें लग चुकी हैं, जिनमें से 40 बार उसे बेंगलुरू से जौनपुर पेशी के लिए जाना पड़ा। इसके अलावा, उसके माता-पिता को भी बार-बार अदालत के चक्कर लगाने पड़ रहे थे। कोर्ट की तारीखों पर भी कोई ठोस परिणाम नहीं निकलता था, और वह इस व्यवस्था से थक चुका था।