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राम मंदिर: टेस्टिंग के दौरान खिसक गए स्तंभ, निर्माण समिति ने लिया ये बड़ा फैसला

मंदिर निर्माण के लिए जब 200 फीट नीचे के मिट्टी की जांच की गई तो पता चला वहां की मिट्टी बलुआ है यानी सिर्फ पत्थरों से बनने वाले राममंदिर के भार को उठाने के लिए जिस तरह की मिट्टी की दरकार थी वो मिट्टी वहां नहीं मिल पा रही है।

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Published on: 15 Dec 2020 10:40 AM GMT
राम मंदिर: टेस्टिंग के दौरान खिसक गए स्तंभ, निर्माण समिति ने लिया ये बड़ा फैसला
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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अयोध्या कोतवाली में केस दर्ज कर लिया है। इस मामले में जांच की जा रही है।वाराणसी निवासी मास्टरमाइंड अभी भी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सका है।

लखनऊ: अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है। जैसे-जैसे मंदिर निर्माण का काम आगे बढता जा रहा है। इंजीनियरों के सामने नई-नई तकनीकी चुनैतियां सामने आ रही हैं।

सरयू नदी के किनारे होने के कारण बुनियाद में मिल रही बालू के कारण मंदिर की मजबूती को लेकर अब सवाल खड़े हो रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार पाइलिंग टेस्ट के दौरान पिलर थोड़ा खिसक गया था।

मालूम पड़ा है कि इसकी वजह जमीन के नीचे सरयू नदी की परत मिलना है। तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि कभी इसके पास से सरयू नदी गुजरती रही होगी।

Bhumi Pujan PM Modi राम मंदिर भूमि पूजन (फोटो-सोशल मीडिया)

तकनीकी सब-कमिटी की रिपोर्ट के बाद नए सिरे से मंदिर निर्माण के नींव की शुरुआत

इस पर दो दिन तक निर्माण एजेंसी के विशेषज्ञों और ट्रस्ट के सदस्यों के बीच चर्चा हुई थी। जिसके बाद अब ये तय हुआ है कि तकनीकी सब-कमिटी की रिपोर्ट के बाद नए सिरे से मंदिर निर्माण के नींव की शुरुआत होगी।

माना जा रहा है कि विशेषज्ञों की नई रिसर्च रिपोर्ट जल्द आ जाएगी। इस रिपोर्ट पर मंथन के बाद ही अब राम मंदिर निर्माण का कार्य आरम्भ होगा।

रेत की परत पर बुनियाद की पकड़ मजबूत कैसे हो इस पर भी जानकार स्टडी कर रहे हैं। 8 दिन में स्टडी के पूरा होने का अनुमान है। जैसे ही स्टडी का काम पूरा हो जाएगा।

इसके बाद काम आगे बढ़ाया जाएगा। मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र की अध्यक्षता में एक सब-कमिटी बनाई गई है जिसमे देश के नामी और और प्रतिष्ठित तकनीकी विशेषज्ञ मंदिर की नींव फाउंडेशन को लेकर अपनी अनुशंसा देंगे।

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जैसी मिट्टी की दरकार थी वो मिट्टी वहां नहीं मिल पा रही

मंदिर निर्माण के लिए जब 200 फीट नीचे के मिट्टी की जांच की गई तो पता चला वहां की मिट्टी बलुआ है यानी सिर्फ पत्थरों से बनने वाले राममंदिर के भार को उठाने के लिए जिस तरह की मिट्टी की दरकार थी वो मिट्टी वहां नहीं मिल पा रही है।

रामजन्म भूमि पर पिछले एक महीने से ज्यादा से पाइलिंग की खुदाई कर मिट्टी की जांच का काम चल रहा है लेकिन जब मंदिर निर्माण में लगी कंपनी लॉर्सन एंड टूब्रो को मनमाफिक मिट्टी की परत नहीं मिली तो रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सामने दिक्कतें आईं।

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ayodhya राम मंदिर: टेस्टिंग के दौरान खिसक गए स्तंभ, निर्माण समिति ने लिया ये बड़ा फैसला (फोटो: सोशल मीडिया)

आईआईटी चेन्नई के विशेषज्ञों ने किया टेस्टिंग का काम

टेस्टिंग का यह कार्य आईआईटी चेन्नई के विशेषज्ञों ने किया। इसी के बाद राम मंदिर की बुनियाद की मजबूती को लेकर विशेषज्ञों ने रिसर्च शुरू कर दी, यह रिसर्च रिपोर्ट जल्द आने वाली है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए 12 सौ स्तभों का निर्माण किया जाना है। इसके पहले टेस्टिंग के लिए 12 पिलर का निर्माण किया गया है। लेकिन टेस्टिंग के दौरान जब इस पर भार डाला गया तो कुछ पिलर जमीन के निचले हिस्से में खिसक से गए।

पिलर को बालू में किया जाएगा बोर

विशेषज्ञों की सलाह के बाद यह तय हुआ है कि जिस तरह नदी में निर्माण के लिए पिलर को बोर किया जाता है उसी तरह राम मंदिर निर्माण के लिए भी अत्याधुनिक मशीनों के जरिए बुनियाद के पिलर को जमीन में बोर किया जाएगा।

इसमें परीक्षण के बाद चुनी गई पत्थर की गिट्टी और मोरंग के साथ उच्च क्षमता वाली सीमेंट में अलग से केमिकल का मिश्रण कर उसकी क्षमता बढ़ाई जाएगी और इसके बाद इन तीनों के मिश्रण को मशीन के जरिए पिलर के लिए खोदे गए गहरे होल में सांचे के माध्यम से डाला जाएगा जिससे सूखने के बाद वह पिलर शिला में तब्दील हो जाए।

चांदी की पत्तियों से जोड़े जाएंगे पिलर

राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण लगभग 2 वर्षों में पूरा होने का अनुमान है।एक्सपर्ट्स के मुताबिक पिलर्स को आपस में जोड़कर बुनियाद की नींव को तैयार किया जाएगा।

बुनियाद का फाउंडेशन तैयार होने के बाद तराशे गए पत्थरों की शिलाओं को सिलसिलेवार ढंग से जोड़ा जाएगा। पत्थर की शिलाएं इस तरह तैयार की गई है कि वह एक दूसरे के खांचों में फिट हो जाए। इसीलिए इनको जोड़ने के लिए अन्य किसी चीज की जरूरत नहीं पड़ेगी।

इस काम में केवल चांदी की पत्तियों का ही इस्तेमाल किया जाएगा। इन शिलाओं को व्यवस्थित तरीके से एक दूसरे के ऊपर स्थापित करने के लिए अत्याधुनिक क्रेन की मदद ली जाएगी।

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