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सांडर्स हत्या के बाद पंजाब मेल से लखनऊ आए थे भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद
अंग्रेजों की बनाई भारतीय रेल कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रही है। चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम का समय रहा हो या फिर भारत बिभाजन का हर समय काल में ब्रिटिश इंडिया की (भारतीय रेल) रेल ने भारतीयों का साथ दिया है।
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतर: अंग्रेजों की बनाई भारतीय रेल कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रही है। चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम का समय रहा हो या फिर भारत बिभाजन का हर समय काल में ब्रिटिश इंडिया की (भारतीय रेल) रेल ने भारतीयों का साथ दिया है।
अब हम आज से 91 साल पहले के ब्रिटिश इंडिया के इतिहास में ले चल रहें। इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का पन्ना पलटिये। 17 दिसंबर 1928 को आज ही के दिन भगत सिंह और राजगुरु ने लाहौर (अब पाकिस्तान) में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सांडर्स की हत्या हत्या कर लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लिया था।
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बता दें कि सांडर्स हत्याकांड मामले में दर्ज प्राथमिकी में शहीद-ए-आजम भगत सिंह का नाम शामिल नहीं था। यह पता लाहौर पुलिस को इस मामले से संबंधित दस्तावेजों की खोज में चला है। इसके बावजूद सांडर्स की हत्या के लिए भगत सिंह को दोषी करार देते हुए तत्कालीन वर्तानवी हुकूमत ने 83 साल पहले लाहौर के शादमन चौक पर फांसी दे दी थी। तब उनकी उम्र महज 23 साल थी। आज भी लाहौर पुलिस के अनारकली पुलिस स्टेशन के दर्ज दस्तावेजों में 17 दिसंबर, 1928 को सांडर्स हत्याकांड की जो रिपोर्ट दर्ज करवाई गई थी उसमें उर्दू में दो अज्ञात बंदूकधारियों के खिलाफ दर्ज किया है।
20 दिसंबर 1928 को भगत सिंह ने पकड़ी कलकता मेल
आज हम जिस ट्रेन को अमृतसर-हावड़ा मेल के नाम से जानते हैं। तब यह ट्रेन लाहौर-कलकता मेल के नाम से जानी जाती थी। सांडर्स हत्या के बाद भगत सिंह, राजगुरु और हत्या का पूरी पटकथा तैयार करने वाले चंद्रशेखर आजाद दुर्गा भाभी के साथ 20 दिसंबर 1928 को लाहौर कलकता मेल पकड़ कर बाया अमृतर के रास्ते वेश बदल कर चल पड़े।
लहौर घटना के बाद भगत सिंह कटाई थी केस
किसी गुरु सिख के लिए उसकी केस और पगड़ी जान से भी प्यारी होती है। लेकिन, देश के लिए भगत सिंह अपना केस और पगड़ी दोनो कुर्बान कर दिया। सांडर्स को गोली मारते वक्त जिन्हों जिन दो युवकों को देखा था उनके एक युवक पगड़ी धारी और दूसरा हिंदू। लाहौर पुलिस को पगड़गीधारी सिख की तलाश थी। सो चंद्रशेखर आजा और दुर्गाभाभी के सलाह पर भगत सिंह ने अपने केस भारत मां की आजादी के लिए कुर्बान कर दी। और यही से भगत सिंह हैट और लंबी कोट वाले साहब व दुर्गाभाभी अपने छोटे बच्चे सचिंद्र को साथ ले उनकी पत्नी बन लाहौर-कलकता मेल जो अब अमृतसर हावड़ा मेल के नाम से जानी जाती है में सवार हो गए।
लखनऊ में छोड़ी ट्रेन, पकड़ी कानपुर हावाड़ा ट्रेन
रेलवे अभिलेखागार से मिली जानकारी के मुताबिक भगत सिंह, दुर्गा भाभी और और उनका नौकरे बने सुखदेख ये तीनों ही लखनऊ रेलवे स्टेशन पर उतरे। यहां उन्होंने बच्चे के लिए दूध लिया। जबकि, साधु बने चंद्रशेखर आजाद लहौर-कलकता मेल से उतर कर पानी पिया। और इसी लखनऊ रेवे स्टेशन से इन चारों क्रांतिकारियों ने कानपुर से कलता जाने वाली ट्रेन पकड़ी और कलकता पहुंच गए। जबकि लाहौर और कलकता में पुलिस लहौर से आने वाले कलकता एक्सप्रेस में इन क्रांतिकारियों को तलाशती रही।
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आज भी चल रही है कलकता मेल
91 साल पहले जिस ट्रेन शहीद-ए-आजम भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारियों को लाहौर से कलकता पहुंचाई थी। वह ट्रेन आज भी चल उसी रुट पर चल रही है। हां उसमें इतना बदलाव जरूर हुआ है कि देश के बटवारे के बाद अब यह ट्रेन लाहौर की बजाय अमृतसर से कलकता के लिए हर शाम छह बजे चलती है। समय के साथ-साथ इसका नाम भी कलकता एक्सप्रेस से बदल कर अमृतसर हाबड़ा एक्सप्रेस हो गया है।