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कोरोना पर बड़ी खुशखबरी: इस महीने तक आ सकती है भारत बायोटेक की वैक्सीन
स्वदेशी वैक्सीन निर्माता कम्पनी भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन 'कोवैक्सीन' का तीसरे चरण का ट्रायल अगले महीने से यूपी समेत देशभर में 25 से 30 हजार लोगों पर किया जाएगा। कोवैक्सीन को भारत बायोटेक और आईसीएमआर मिल कर डेवलप कर रहे हैं।
नीलमणि लाल
लखनऊ: स्वदेशी वैक्सीन निर्माता कम्पनी भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन 'कोवैक्सीन' का तीसरे चरण का ट्रायल अगले महीने से यूपी समेत देशभर में 25 से 30 हजार लोगों पर किया जाएगा। कोवैक्सीन को भारत बायोटेक और आईसीएमआर मिल कर डेवलप कर रहे हैं। वैक्सीन कितनी प्रभावी और सुरक्षित है इसको तीसरे चरण के ट्रायल में परखा जाएगा। ट्रायल में सब ठीक रहा तो लोगों को वैक्सीन अगले साल मार्च तक मिल सकती है। भारत बायोटेक ने अभी से वैक्सीन का प्रोडक्शन शुरू कर भी दिया है ताकि हरी झंडी मिलते ही वैक्सीन बाजार में उतारी जा सके।
कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड-आस्ट्रा जेनका, चीन की तीन कंपनियां और अमेरिका की दो कम्पनियां कर रही हैं। आस्ट्रा जेनका का तीसरे चरण का ट्रायल भारत, ब्रिटेन, साउथ अफ्रीका और ब्राज़ील में चल रहा है। लेकिन तीन प्रतिभागियों के गंभीर रूप से बीमार पड़ने के बाद इसपर सवाल भी उठने लगे हैं। अमेरिका ने तो इस टीके के ट्रायल पर रोक लगा दी है।
वैक्सीन डेवलपमेंट के चरण
पहला चरण
पहले चरण के परीक्षणों का लक्ष्य होता है वैक्सीन की सेफ्टी का मूल्यांकन करना और वैक्सीन द्वारा पैदा की गयी इम्यूनिटी प्रक्रिया के प्रकार और सीमा का निर्धारण करना।
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दूसरा चरण
दूसरे चरण के परीक्षण में एक विशाल समूह को शामिल किया जाता है। कुछ व्यक्ति उन समूहों से संबंधित होते हैं जिन्हें बीमारी होने का खतरा होता है। ये परीक्षण रैंडमाइज्ड होते हैं। दूसरे चरण के परीक्षण का लक्ष्य होता है वैक्सीन की प्रभाविता, प्रतिरक्षा क्रिया क्षमता, प्रस्ताविक खुराकों, प्रतिरक्षण की समय-सारणी, और टीका प्रदान करने की विधि का अध्ययन करना।
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तीसरा चरण
दूसरे चरण में सफल वैक्सीन को बड़े पैमाने पर परीक्षण के लिए तैयार किया जाता है, जिसमें दसियों हजार लोग शामिल हो सकते हैं। तीसरे चरण का उद्देश्य होता है लोगों के विशाल समूह में वैक्सीन की सुरक्षा का मूल्यांकन करना। क्योंकि हो सकता है कि पिछले चरण में लोगों में कुछ विरले दुष्परिणामों का पता न चले। इसके अलावा इस चरण में वैक्सीन की इफेक्टिवनेस की भी जांच की जाती है। ये देखा जाता है कि क्या वैक्सीन रोग की रोकथाम करता है? क्या यह विषाणु के संक्रमण से सुरक्षा देता है? क्या इससे एंटीबॉडीज या विषाणु से जुड़ी अन्य प्रकार की इम्यूनिटी क्रियाओं का निर्माण होता है?
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आगे के चरण
तीसरे चरण के परीक्षण के सफल होने के बाद, टीका निर्माता नियामक निकाय से वैक्सीन के लिए लाइसेंस की मांग करते हैं। लाइसेंस की प्रक्रिया में टीके के डेवलपमेंट से जुड़े स्टडी डाक्यूमेंट्स की समीक्षा की जाती है और उस फैक्ट्री का निरीक्षण किया जाता है जहां टीके का निर्माण होगा। इसके अलावा वैक्सीन की लेबलिंग का अनुमोदन किया जाता है। लाइसेंस मिल जाने के बाद, नियामक निकाय लगातार टीके के निर्माण की निगरानी करते हैं।
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