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रोक BJP के कमल पर: पार्टी को लगा तगड़ा झटका, दायर हुई चिह्न पर याचिका

कमल को राजनीतिक दल के चिह्न के तौर पर उपयोग करने को लेकर कुछ समय पहले ही हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई थी। याचिका में भाजपा पर राष्ट्रीय फूल कमल के चिह्न के दुरुपयोग का गंभीर आरोप मड़ा गया।

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Published on: 11 Dec 2020 1:39 PM GMT
रोक BJP के कमल पर: पार्टी को लगा तगड़ा झटका, दायर हुई चिह्न पर याचिका
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 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आखिरकार किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय फूल कमल को चुनाव के निशान के तौर पर कैसे दे दिया गया।

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी(BJP) का चुनाव चिह्न कमल जो बीते करीब 40 सालों से कायम है, अब उसके उपयोग पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सवाल खड़े कर दिये हैं। असल में कमल को राजनीतिक दल के चिह्न के तौर पर उपयोग करने को लेकर कुछ समय पहले ही हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई थी। याचिका में भाजपा पर राष्ट्रीय फूल कमल के चिह्न के दुरुपयोग का गंभीर आरोप मड़ा गया। इस मामले की सुनवाई के बीच हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से अब जवाब मांगा है।

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कमल के चुनाव चिह्न के इस्तेमाल पर रोक

ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आखिरकार किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय फूल कमल को चुनाव के निशान के तौर पर कैसे दे दिया गया। तब कोर्ट ने भाजपा द्वारा कमल के चुनाव चिह्न के इस्तेमाल पर रोक लगाने को लेकर इसी से जवाब मांगा है।

लेकिन अब इस मामले में अगली सुनवाई 12 जनवरी को होनी है। जिसके चलते हाईकोर्ट में यह मुद्दा भी उठा कि राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न को लोगो के रूप में प्रचारित करने की छूट देना निर्दलीय प्रत्याशी के साथ भेदभावपूर्ण होगा।

कमल चुनाव चिह्न को लेकर इलाहालबाद हाईकोर्ट में गोरखपुर के समाजवादी पार्टी नेता काली शंकर ने लगाई। इस बारे में याचिकाकर्ता का कहना है कि किसी राजनीतिक दल को चुनाव चिह्न पार्टी लोगो के रूप में इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है। चुनाव चिह्न चुनाव तक ही सीमित है।

bjp फोटो-सोशल मीडिया

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अन्याय और भेदभावपूर्ण

इसके बाद उनका कहना है कि पार्टी को अपना चुनाव चिह्न किसी निर्दलीय प्रत्याशी को देने का अधिकार नहीं है। राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न को दूसरे कार्यों के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति निर्दलीय प्रत्याशियों के साथ अन्याय और भेदभावपूर्ण है, क्योंकि उन्हें अपना प्रचार करने के लिए कोई निशान नहीं मिला होता।

ऐसे में हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने की। इसमें दोनों जजों ने पूछा कि याचिका में यह मुद्दा नहीं उठाया गया है कि चुनाव चिह्न केवल चुनाव के लिए आवंटित किया जाता है, अन्य कार्य के लिए नहीं। फिर आखिर चुनाव चिह्न का अन्य उद्देश्य से इस्तेमाल करने की अनुमति क्यों दी जा रही है?

इस पर कोर्ट ने कहा कि साक्षर कई देशों में चुनाव चिह्न नहीं है, हालाकिं भारत मे चुनाव चिह्न से चुनाव लड़ा जा रहा है। निर्वाचन आयोग की तरफ से पेश हुए वकील ने इस पर जवाब देने के लिए समय मांगा है।

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