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जयंती पर विशेष: सिर्फ संविधान निर्माता ही नहीं थे बाबा आंबेडकर
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर। यह एक ऐसा नाम है जिसके बारे में जिक्र आते ही एक मूर्ति उभरती है जिसके एक हाथ में संविधान की किताब और दूसरे हाथ की उंगली कहीं इशारा करते दिखती है। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का परिचय सामान्यतः संविधान निर्माता के तौर पर ही लोग जानते हैं।
लखनऊ: बाबा साहब भीमराव आंबेडकर। यह एक ऐसा नाम है जिसके बारे में जिक्र आते ही एक मूर्ति उभरती है जिसके एक हाथ में संविधान की किताब और दूसरे हाथ की उंगली कहीं इशारा करते दिखती है। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का परिचय सामान्यतः संविधान निर्माता के तौर पर ही लोग जानते हैं। सियासी तौर पर लोग दलित नेता के तौर पर उन्हें मानते हैं पर उनका व्यक्तित्व कभी भी हमारे सामने पूरी तरह नहीं पेश किया गया है।
हममें से बहुत कम लोग जानते होंगे कि रिजर्व बैंक की स्थापना, तिरंगे में अशोक चक्र को रखने, रोजगार दफ्तरों की स्थापना, मजदूरी के घंटे 14 से 8 करने के साथ ही साथ जल और ऊर्जा नीति के शिल्पकार भी आंबेडकर ही रहे हैं।
आइए जानें, कि आंबेडकर का व्यक्तित्व हमारे समाने पेश किए गये सियासी चित्र से कितना बड़ा था।
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6 दशक के राज में भी कांग्रेस नहीं दे पायी 'भारत रत्न'
हमारे राजनेताओं को आंबेडकर में वोट नजर आने लगा है। जो भी राजनेता आंबेडकर को अपने पाले में खड़ा कर रहे थे उनकी अपनी कहीं न कहीं सरकार जरूर रही है। कांग्रेस ने तो तकरीबन 6 दशक राज किया है। बावजूद इसके आंबेडकर को 'भारत रत्न' देने का काम वह नहीं कर पाई।
जनता दल के शासनकल में यह कार्य विश्वनाथ प्रताप सिंह ने किया। वह भी तब जब कांग्रेस पार्टी ने इसी ड्राफ्ट कमेटी के सदस्य गोविंद वल्लभ पंत को 1957 में भी भारत रत्न से नवाज दिया गया था। डॉ. आंबेडकर इसी ड्राफ्ट कमेटी के अध्यक्ष थे। उनके साथ 8 लोग बतौर सदस्य इस कमेटी के लिए काम कर रहे थे।
इतना ही नहीं जब 1952 में आंबेडकर ने पहले लोकसभा चुनाव में बंबई उत्तरी से अपना पर्चा भरा तो कांग्रेस ने उनके ही सहयोगी रहे नारायण कईरोलकर को उनके सामने उतार दिया। कईरोलकर ने आंबेडकर को 15 हजार वोटों से हरा दिया था।
आरबीआई की अवधारणा भी बाबा साहब की ही देन
389 सदस्यों वाली संविधान सभा के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे। आंबेडकर का योगदान इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक की कल्पना और वित्त आयोग के गठन में भी अविस्मरणीय रहा है। 1935 में गठित भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का आधार बाबा साहेब डॉ. बीआर. आंबेडकर द्वारा हिल्टन यंग कमीशन के समक्ष प्रस्तुत किए गए विचारों के आधार पर किया था।
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आंबेडकर और हिंदू कोड बिल
भारत के पहले कानून मंत्री के तौर पर डॉ. आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल का प्रस्ताव किया था। इसके जरिए भारतीय महिलाओं के उत्थान के कई प्रस्ताव भी थे। जब प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा पारित न हो सका, तब बाबा साहब आंबेडकर ने पद से इस्तीफा दे दिया। यह दुर्भाग्य की बात रही। महिलाओं के हित की ये बात ज्यादा दूरी नहीं तक बढ़ सकी। और तो और एक भी महिला संगठन इसके लिए आगे नहीं आ सका।
आंबेडकर ने कहा था, 'बिल भारतीय महिलाओं को गरिमा वापस दे रहा है और लड़कों और लड़कियों को समान अधिकार देने की बात करता है |'
नदी परियोजनाओं और जल नीति में भी अहम रोल
डॉ. आंबेडकर दामोदर घाटी परियोजना, हीराकुंड परियोजना, सूरजकुंड नदी-घाटी परियोजना के प्रवर्तक भी कहे जा सकते हैं I डॉ. आंबेडकर की अध्यक्षता में 1945 में इसे बहुउद्देशीय उपयोग के लिए महानदी के रूप में नियंत्रित कर संभावित लाभ में निवेश करने का फैसला किया गया था, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ सका। इसमें राजनीतिक कारण भी कई तरह से देखे गए।
इसके अलावा आंबेडकर ने मार्च 1944 केंद्रीय जल सिंचाई और नेविगेशन आयोग की स्थापना की। यानी, भारत में जल प्रबंधन और विकास के रूप में एक ऐसी अवधारणा है जिसका श्रेय आंबेडकर को ही जाता है।
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ग्रिड सिस्टम आंबेडकर की देन
आंबेडकर ने अति-महत्वपूर्ण आवश्यकताओं के रूप में 'ग्रिड सिस्टम पर बल दिया, जो आज भी सफलतापूर्वक काम कर रहा है। आज बिजली इंजीनियर जो प्रशिक्षण के लिए विदेश जा रहे हैं इसके पीछे आंबेडकर ही हैं। श्रम विभाग के नेता के तौर पर आंबेडकर ने विदेशों में प्रशिक्षित सबसे अच्छे इंजीनियरों की नीति तैयार की थी।
आंबेडकर ने बिजली उत्पादन और थर्मल पावर स्टेशन की जांच पड़ताल की एक फूल प्रूफ योजना उसी समय दे दी थी। इसके अलावा समस्या का विश्लेषण करने, बिजली प्रणाली के विकास, जल विद्युत स्टेशन, हाइड्रो इलेक्ट्रिक सर्वे के लिए केन्द्रीय तकनीकी विद्युत बोर्ड की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई थी।
विदेश नीति के जानकार
विदेशी नीति के दूरदृष्टा की तरह संयुक्त राष्ट्र संघ में पहले चीन की स्थाई सदस्यता की नेहरु की नीति का विरोध भी आंबेडकर ने किया था। आज बिजली के पारेषण के लिए सर्वथा उपयोगी ग्रिड का विचार भी आंबेडकर की दूरदर्शिता का ही परिणाम है। लेकिन हमारे नेता आंबेडकर को संविधान से अलग उनकी अन्य प्रतिभाओं को लेकर प्रचारित प्रसारित नहीं करते है। उन्हें खांचे से बाहर आने नहीं देना चाहते।
आंबेडकर को एक दायरे में बांधना सही नहीं
इस सच्चाई से आंखें नहीं मूंदी जा सकती कि 2 साल 11 महीने 18 दिन में तैयार भारतीय संविधान मं संसदीय प्रणाली इंग्लैंड से, नीति-निर्देशक तत्व आयरिश संविधान से, संघीय व्यवस्था कनाडा से, समवर्ती सूची ऑस्ट्रेलिया से, मौलिक कर्तव्य रुस के संविधान से, ‘कानून के समक्ष समान संरक्षण’ वाक्य और सर्वोच्च न्यायालय की व्यस्था संयुक्त राज्य अमेरिका से, संविधान की संशोधन प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका से, भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ जर्मनी के संविधान से, संविधान में ‘कानून द्वारा स्थापित’ शब्दावली संयुक्त राज्य अमेरिका से और यहां तक कि प्रस्तावना की भाषा भी ऑस्ट्रेलिया से ली गयी है। इस संविधान में अब तक 100 संशोधन किए जा चुके हैं। ऐसे में सिर्फ संविधान निर्माण तक आंबेडकर को बांधते हुए उनके आगे नतमस्तक होना सियासी साजिश है।
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दूरदृष्टा आंबेडकर
आंबेडकर ने उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में मध्य प्रदेश के विभाजन का सुझाव आजादी के समय ही दे दिया था। उन्होंने 1955 से राजधानियों के रूप में पटना और रांची दो भागों में विभाजित का सुझाव दिया था। लगभग 45 साल के बाद वर्ष 2000 में दोनों राज्यों विभाजित किया गया और छत्तीसगढ़ और झारखंड का गठन किया गया था। जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया तब कृषि, उद्योगों के विकास, पुनर्वास और रक्षा सेवाओं की तैनाती में सुधार सहित अर्थव्यवस्था में फिर से सुधार करने के रूप में भारत को कई चुनौतियों का सामना करना था। ऐसी विकट स्थिति में पुनर्निर्माण समिति (आरसीसी) का गठन किया और डॉ. आंबेडकर को ही इस समिति के अध्यक्ष की भूमिका सौंपी गई।
गांधी और आंबेडकर
हकीकत यह है कि आंबेडकर की प्रतिभा को महात्मा गांधी ने ही पहचाना था। उन्होंने ही उन्हें संविधान सभा में लेने के लिए कहा था। गांधी की सलाह पर ही वह नेहरू के मंत्रिमंडल में विधि मंत्री बनाए गए थे। बंबई उत्तरी से जब वे लोकसभा चुनाव हार गए तो उन्हें मनोनीत कर राज्यसभा भेजा गया। मोहम्मद अली जिन्ना और डॉ. आंबेडकर ही ऐसे दो लोग थे, जो मोहनदास करमचंद गांधी को मिस्टर गांधी कहकर पुकारते थे। गांधी ने जिन्ना पर खूब हमले किए लेकिन आंबेडकर को लेकर उनका नज़रिया वैसा नहीं था।
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आंबेडकर की सलाह पर ही गांधी ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता के लिए यह शर्त अनिवार्य की थी, कि हर कांग्रेसी को यह शपथ लेना पड़ता था कि वह किसी को अछूत नहीं समझेगा। गांधी और आंबेडकर के बीच विवाद का सबब यह था, कि आंबेडकर जाति प्रथा और अस्पृश्यता के सवाल को आजादी से पहले हल करना चाहते थे, जबकि गांधी नहीं।