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झलकारी बाईः पति की शहादत भी न रोक पाई जिसका रास्ता
झलकारी बाई के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था उनका पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, अंग्रेजों को धोखा देने की एक योजना बनाई।
लखनऊ: झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की सखी थीं और अद्वितीय वीरांगना थीं। आज से लगभग डेढ़ सौ साल से भी अधिक पहले यह बात कल्पनातीत है कि किसी महिला का पति शहीद हो जाए और वह महिला शोक मनाने की जगह अपने देश के लिए प्राणों की आहुति देने को तैयार हो जाए।
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पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे
झलकारी बाई के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था उनका पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, अंग्रेजों को धोखा देने की एक योजना बनाई। झलकारी ने रानी लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ में ले ली। जिसके बाद वह किले के बाहर निकल ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ के शिविर में उससे मिलने पहुँचीं।
ब्रिटिश शिविर में पहुँचकर उसने चिल्लाकर कहा कि वो जनरल ह्यूग रोज़ से मिलना चाहती है। रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होने झांसी पर कब्जा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है।
जनरल ह्यूग रोज़ झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ
जनरल ह्यूग रोज़ ने उसे रानी ही समझा उसने झलकारी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? तो उसने दृढ़ता के साथ कहा,मुझे फाँसी दो।
कहते हैं कि जनरल ह्यूग रोज़ झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ और झलकारी बाई को रिहा कर दिया गया। लेकिन कुछ इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुई थी।
यह भी कहा जाता है कि झलकारी के उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया था और उसने कहा था कि "यदि भारत की 1% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो अंग्रेजों को जल्द ही भारत छोड़ना होगा"।
झलकारी के उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया था
अफसोस की बात ये है कि मुख्यधारा के इतिहासकारों ने झलकारी बाई के योगदान के महत्व को नहीं समझा। लेकिन आधुनिक लेखकों ने उन्हें गुमनामी से उभारा। जनकवि बिहारी लाल हरित ने 'वीरांगना झलकारी' काव्य की रचना की। जिसमें वह कहते हैं:
लझ्मीबाई का रूप धार, झलकारी खड़ग संवार चली ।
वीरांगना निर्भय लश्कर में, शस्त्र अस्त्र तन धार चली ॥
अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे माता प्रसाद ने झलकारी बाई की जीवनी लिखी है। इसके अलावा चोखेलाल वर्मा ने उनके जीवन पर एक वृहद काव्य लिखा, मोहनदास नैमिशराय ने उनकी जीवनी को पुस्तकाकार रूप दिया। भवानी शंकर विशारद ने उनके जीवन परिचय को लिपिबद्ध किया है।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त झलकारी की बहादुरी पर कहते हैं-
जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी।
गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी।
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झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास के भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तभी उनकी माँ की मृत्यु हो गयी और उसके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला। उन्हें घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग करने में प्रशिक्षित किया गया था। बाद में उनका विवाह झांसी की सेना के एक सरदार पूरन सिंह से हुआ जो कि अद्वितीय योद्धा था।
भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 को झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में है। उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की है। लखनऊ में झलकारी बाई के नाम से एक चिकित्सालय भी है।
रिपोर्ट- रामकृष्ण वाजपेयी
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