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सी राजगोपालाचारी: तमिल भाषी पर लड़ी हिंदी की लड़ाई, दलितों के लिए उठाई आवाज

राजगोपालाचारी का जन्म मद्रास के सलेम जिले के थोरापल्ली गांव में एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नलिन चक्रवर्ती था।

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Published on: 10 Dec 2020 5:56 AM GMT
सी राजगोपालाचारी: तमिल भाषी पर लड़ी हिंदी की लड़ाई, दलितों के लिए उठाई आवाज
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सी राजगोपालाचारी: तमिल भाषी पर लड़ी हिंदी की लड़ाई, दलितों के लिए उठाई आवाज (PC : social media)

लखनऊ: देश के एकमात्र भारतीय गवर्नर जनरल रहे चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई थी। राजनेता, वकील, लेखक व दार्शनिक राजगोपालाचारी का जन्म आज ही के दिन 1878 में हुआ था। तमिल भाषी होने के बावजूद राजगोपालाचारी हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे।

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उनका मानना था कि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो देश को एक सूत्र में बांधे रखने में सक्षम है। गैर हिंदी भाषी राज्यों में एक मद्रास प्रांत में हिंदी की अनिवार्य शिक्षा का श्रेय उन्हें ही हासिल है।

स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भूमिका

राजगोपालाचारी का जन्म मद्रास के सलेम जिले के थोरापल्ली गांव में एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नलिन चक्रवर्ती था। जब उनकी उम्र मात्र पांच साल की थी तब उनका परिवार होसुर चला आया। होसुर के सरकारी स्कूल में ही राजगोपालाचारी की प्राथमिक शिक्षा हुई।

उन्होंने 1894 में बेंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज से स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने 1897 में मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से कानून की पढ़ाई पूरी की। इसी साल उनका विवाह अलामेलू मंगलम्मा से हुआ था। इसके बाद उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।

C-Rajagopalachari C-Rajagopalachari (PC : social media)

महात्मा गांधी के विचारों से थे प्रभावित

वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे और बापू भी उन्हें काफी माना करते थे। खासतौर पर गांधी के छुआछूत आंदोलन और हिंदू मुस्लिम एकता से जुड़े कार्यक्रमों ने राजगोपालाचारी को काफी हद तक प्रभावित किया।

स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय होने के बाद वे गांधीजी के अनुयायी बने। महात्मा गांधी ने जब 1930 में दांडी मार्च निकाला तो राजगोपालाचारी ने नागपट्टनम के पास वेदरनयम में नमक कानून तोड़ा। इसके लिए अंग्रेजों ने उन्हें जेल भी भेज दिया था।

दलित समुदाय के लिए उठाई आवाज

राजगोपालाचारी को जात-पात के आडंबर से सख्त नफरत थी और उन्होंने इस पर गहरी चोट भी की। कई मंदिरों में जहां दलित समुदाय को प्रवेश नहीं दिया जाता था, इसके खिलाफ थी वे डटकर खड़े हुए।

उनके प्रबल विरोध के कारण ही मंदिरों में दलितों को प्रवेश मिल सका। उन्होंने एग्रीकल्चर डेट रिलीफ एक्ट कानून बनाया ताकि किसानों को कर्ज से राहत मिल सके।

चुनाव जीतने में दिलाई कामयाबी

राजगोपालाचारी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1937 में काउंसिल का चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की। उन्हें कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी के रूप में भी चुना गया। भारत के अंतिम गवर्नर लॉर्ड माउंटबेटन के बाद राजगोपालाचारी भारत के पहले गवर्नर बने थे।

राजगोपालाचारी को 1950 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के अगुवाई वाली सरकार में गृह मंत्री भी बनाया गया था। 1952 में उन्होंने मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 1954 में मिला भारत रत्न सम्मान स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी मिलने के बाद तक देश की अनवरत सेवा करने के लिए उन्हें 1954 में देश का सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान भारत रत्न भी दिया गया।

बात के दिनों में उनके तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से मतभेद हो गए थे और यही कारण था कि वे कांग्रेस से अलग हो गए। कांग्रेस से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम उन्होंने एंटी कांग्रेस स्वतंत्र पार्टी रखा था।

C-Rajagopalachari C-Rajagopalachari (PC : social media)

हिंदी के लिए आजीवन किया संघर्ष

तमिल भाषी होते हुए भी राजगोपालाचारी ने हमेशा हिंदी की वकालत की। 1937 में जब उन्होंने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया तो उनके इस प्रस्ताव का उग्र विरोध हुआ और हिंसा भी भड़क उठी।

इस हिंसा में दो लोगों की मौत भी हुई थी। उस वक्त तो वे चाहकर भी हिंदी को वह मुकाम नहीं दिला सके, लेकिन दक्षिण में हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए उन्होंने आजीवन संघर्ष किया।

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गीता और उपनिषदों की लिखी टीका

वे बहुत अच्छे लेखक भी थे और तमिल व अंग्रेजी भाषा पर उनका अच्छा अधिकार था। उन्होंने गीता और उपनिषदों की टीका भी लिखी। अपनी किताब चक्रवर्ती थिरुमगम के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था। उन्होंने स्वराज्य अखबार में कई लेख भी लिखे। उन्होंने कुछ दिनों तक महात्मा गांधी के अखबार यंग इंडिया का संपादन भी किया था। 1961 में उन्होंने तमिल रामायण का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान करने वाले राजगोपालाचारी का 25 दिसंबर 1972 को निधन हुआ था। आज भी उनका नाम काफी सम्मान के साथ लिया जाता है।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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