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Qurratulain Hyder: भारतीय व पाकिस्तानी उपन्यासकार, ऐसे हुई भारत वापसी
आपको जानकर हैरानी होगी कि कुर्रतुल ऐन हैदर ने मात्र छह साल की उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था। उनके माता पिता भी उर्दू के जाने माने लेखक थे। पिता की मौत के बाद पाकिस्तान पलायन किया, लेकिन बाद में भारत में वापसी की। कुर्रतुल ने पत्रकार के तौर अपने करियर की शुरुआत की थी।
लखनऊ: पद्मश्री से सम्मानित क़ुर्रतुल ऐन हैदर का नाम मशहूर उपन्यासकार और लेखिकाओं में गिना जाता है। कुर्रतुल को ऐनी आपा के नाम से भी जाना जाता है। क़ुर्रतुल ऐन हैदर का जन्म 20 जनवरी 1926 को उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ में हुआ था। उनके पिता 'सज्जाद हैदर यलदरम' भी उर्दू के जाने-माने लेखक थे। यही नहीं उनकी मां 'नजर' बिन्ते-बाकिर भी उर्दू की लेखिका थीं। ऐसे में मां-बाप से प्रेरित क़ुर्रतुल ने भी बहुत ही छोटी सी उम्र में शब्दों की मालाएं पिरोनी शुरू कर दीं।
छह साल की उम्र में लिखने लगी थीं क़ुर्रतुल
आपको जानकर हैरानी होगी कि कुर्रतुल ऐन हैदर ने मात्र छह साल की उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था। जिस उम्र में बच्चे खेलने कूदने में व्यस्त रहते हैं, उस उम्र में कुर्रतुल ने अपनी कलम हाथ में उठा ली। प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ से ग्रहण करने के बाद अलीगढ़ से हाईस्कूल किया। उसके बाद लखनऊ के IT कॉलेज से बी.ए. और लखनऊ यूनिवर्सिटी से एम.ए. की डिग्री हासिल की। फिर उन्होंने हाई एजुकेशन के लिए लन्दन का रूख कर लिया।
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(फोटो- सोशल मीडिया)
पाकिस्तान कर गईं पलायन
जब भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो उनके भाई-बहन और रिश्तेदार पाकिस्तान पलायन कर गए। पिता की मौत के बाद कुर्रतुल ऐन हैदर को भी पाकिस्तान पलायन करना पड़ा। लेकिन 1951 में वो पाकिस्तान से लंदन चली गईं। लंदन में एक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार के तौर पर वो बीबीसी लंदन से जुड़ी रहीं। साथ ही दि टेलीग्राफ की रिपोर्टर व इम्प्रिंट पत्रिका की प्रबन्ध सम्पादक भी रहीं। इस बीच जब कुर्रतुल 1956 में भारत घूमने आईं तो उनके पिता के घनिष्ठ मित्र ने उसने पूछा कि क्या वो भारत लौटना चाहती हैं।
ऐसे हुई भारत वापसी
भारत आने के लिए उन्होंने हां कर दी। जिसके बाद वह लन्दन से आकर मुम्बई में रहने लगीं और तब से भारत में ही रहीं। बता दें कि वो कभी शादी के बंधन में नहीं बंधी। अगर उनकी कहानियों और उपन्यास की बात की जाए तो 'बी चुहिया' उनकी प्रथम प्रकाशित कहानी रही। जब वो केवल 17 या 18 साल की थीं तो 1945 में उनकी कहानी का संकलन ‘शीशे का घर’ प्रकाशित हुआ। उसके अगले ही साल 19 साल की उम् में वो एक उपन्यासकार के रूप में चमकीं। अगले साल उनका पहला उपन्यास 'मेरे भी सनमखाने' प्रकाशित हुआ था।
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(फोटो- सोशल मीडिया)
वैसे तो कुर्रतुल ऐन हैदर ने अपने करियर की शुरूआत एक पत्रकार के तौर पर की थी, लेकिन इस दौरान उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा और उनकी कहानियों से लेकर उपन्यास सामने आते रहे। कुर्रतुल उर्दू में लिखने का शौक रखती थीं, हालांकि पत्रकारिता उन्होंने इंग्लिश में ही की। बता दें कि उनके ऐसे कई उपन्यास हैं, जिनका हिंदी और इंग्लिश में ट्रांसलेशन हो चुका है। साहित्य अकादमी में उर्दू सलाहकार बोर्ड की वे दो बार सदस्य भी रहीं।
साथ ही विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में जामिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़ी रहीं। इसके अलावा गेस्ट प्रोफेसर के रूप में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से भी जुड़ी रहीं।
ये हैं कहानी संग्रह
शीशे के घर (पहला कहानी संकलन)
सितारों से आगे
पतझड़ की आवाज़
रोशनी की रफ़्तार
स्ट्रीट सिंगर्स ऑफ लखनऊ एण्ड अदर स्टोरीज
उपन्यास
मेरे भी सनमख़ाने (पहला उपन्यास)
हाउसिंग सोसाइटी
आग का दरिया
सफ़ीन-ए-ग़मे दिल
आख़िरे-शब के हमसफ़र
गर्दिशे-रंगे-चमन
चांदनी बेगम
जीवनी-उपन्यास
कार-ए-जहाँ दराज़ है (दो भागों में)
चार नावेलेट
सीता हरन
दिलरुबा
चाय के बाग़
अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो
क्लासिकल गायक बड़े ग़ुलाम अली खाँ की जीवनी (सह लिखित)
रिपोर्ताज
छुटे असीर तो बदला हुआ ज़माना था
कोह-ए-दमावंद
गुलगश्ते जहाँ
ख़िज़्र सोचता है
सितम्बर का चाँद
दकन सा नहीं ठार संसार में
क़ैदख़ाने में तलातुम है कि हिंद आती है
जहान ए दीगर
इन पुरस्कारों से हुईं सम्मानित
1967 साहित्य अकादमी पुरस्कार, उपन्यास ‘आख़िरी शब के हमसफ़र’ के लिए
1984 में साहित्यिक योगदान के लिए पद्मश्री
1984 गालिब मोदी अवार्ड
1985 साहित्य अकादमी पुरस्कार, कहानी पतझड़ की आवाज़,
1987 इकबाल सम्मान
1989 सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, अनुवाद के लिये
1989 ज्ञानपीठ पुरस्कार
1989 पद्मभूषण
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