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जब हवाई अड्डे पर युवाओं व बुजुर्गों में लग गई इस नेता का पैर छूने की होड़
हमें सांत्वना कुछ इस तरह से दी। कहा, ‘योगेश तुम तो बहुत लंबे समय तक अपने पिता जी के साथ रहने का अवसर पा सके हो। मैं तो छोटा था तभी मेरे पिता जी का निधन हो गया। मुझे सिर्फ़ फ़ोटो से ही उनका चेहरा याद है। 'उनकी इस बात ने अवसाद के उन गंभीर क्षणों में उबरने की ताक़त दी।'
योगेश मिश्र
डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी जी को मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दिनों से जानता हूँ । जब मैंने छात्र राजनीति की ओर क़दम बढ़ाया तो उनसे कुछ अधिक निकटता हो गयी । मैं राजनीति अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से करना चाहता था। पर विश्वविद्यालय में एक पुराने और दिग्गज नेता लक्ष्मी शंकर ओझा जी हुआ करते थे, जिनके नाते मुझे विद्यार्थी परिषद से चुनाव लडऩे का मौक़ा नहीं मिला। मैं थक हारकर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में प्रकाशन मंत्री के पद पर उतरा।
पहला चुनाव किसी भी स्थिति में जीतना चाहिए
उससे पहले इस पद पर जितने भी लोग थे, जो लोग भी जीते थे, वो बहुत नॉन सीरियस टाइप कंडिडेट हुआ करते थे। मसलन, ढक्कन गुरु। त्रिफला गुरु । कोई भिखारी गुरु । इसलिए मुझे इस पद पर चुनाव लड़ते देख बहुतों ने बहुत समझाया । पर मुझे लग रहा था कि पहला चुनाव किसी भी स्थिति में जीतना चाहिए । बाक़ी किसी पद पर पहला चुनाव जीतने की स्थिति में मैं नहीं था । मुझे यक़ीन था कि प्रकाशन मंत्री के पद पर मैं बिना किसी की मदद के भी चुनाव जीत सकूंगा। क्योंकि उस समय तक मेरी कविता और कहानी कि दो किताबें आ गयी थीं। परास्नातक यानी एमए अर्थशास्त्र की परीक्षा प्रथम श्रेणी में मैंने उत्तीर्ण किया था।
आशीर्वाद लेना, उस समय का राजनीतिक संस्कार भी होता था
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कुछ ऐसे विभाग थे, जिसमें प्रथम श्रेणी आना बहुत मुश्किल था । इन विभागों में पोलिटिकल साइंस , इकोनॉमिक्स और अंग्रेज़ी मुख्य थे । उस समय तक डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी एक टर्म मंत्री रह चुके थे। वह तब के जनसंघ की राजनीति करते हुए भी विश्वविद्यालय की कक्षाओं में नियमित रहते थे। यह भी डॉ. मुरली मनोहर जी के प्रति हम लोगों के आकर्षण का सबब था। चुनाव के समय विश्वविद्यालय के ही नहीं , शहर के सभी राजनेताओं से मिलना, उनके पैर छूना, उनका आशीर्वाद लेना, उस समय का राजनीतिक संस्कार भी होता था। इसलिए मैं एक तरफ़ जा कर जोशी जी से मिला। तो दूसरी तरफ हेमवती नंदन बहुगुणा जी व जनेश्वर मिश्र जी से भी मिला। विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्षों ने महामंत्रियों से मिलना तो ऐसे में ज़रूरी ही था।
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विश्वविद्यालय से डी. फिल की डिग्री हासिल करने के बाद मैं दिल्ली आ गया। उन दिनों दिल्ली में सायंकालीन कक्षाओं में पढ़ाने का अवसर डॉक्टरेट के डिग्री धारक को आसानी से मिल जाता था। मेरा इलाहाबाद से रिश्ता टूट सा गया। लेकिन डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी के प्रति हमारी आस्था लगातार बनी रही। यह भी कह सकते हैं कि समय बीतने के साथ साथ उनके बारे में जानकारी बढ़ती ही गयी।
डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी इलाहाबाद से चुनाव लड़ रहे थे
कुछ घटनाओं का ज़िक्र ज़रूरी हो जाता है। बात तब की है जब डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी इलाहाबाद से चुनाव लड़ रहे थे। मैं उस समय आउटलुक में काम करता था । लिहाज़ा पूरे प्रदेश में चुनाव कवरेज के लिए घूमने का अवसर था । मैं इलाहाबाद पहुँचा । यात्रिक होटल में रुका । सर को फ़ोन किया । उन्होंने पूछा कहाँ हूँ ? मैंने बताया कि मैं यात्रिक होटल में रूका हूँ। उन्होंने सुबह मुझे नाश्ते पर बुलाया । नाश्ते की टेबल पर मैं , डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी जी और चम्पतराय जी थे। सर ने मुझसे पूछा कि चुनाव तुम्हें कैसा लग रहा है ? मेरे मुँह से अचानक निकल गया कि चुनाव आप हार जाएंगे । लेकिन तुरत फुरत ख़ुद को संभालते हुए मैंने अपने वाक्य को थोड़ा सा बदला। दूसरा वाक्य कहा, 'चुनाव हम लोग हार जाएंगे।'
डॉक्टर साहब चुनाव कैसे हार सकते हैं?
चम्पतराय जी बातचीत के बीच में उपस्थिति हुए। कहा- डॉक्टर साहब चुनाव कैसे हार सकते हैं? उन्होंने केंद्रीय विश्वविद्यालय बनवाया। ऐसा पुल बनवाया था जिस पुल को बनाने की माँग राजीव गांधी के समय से चल रही थी । यह पुल डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी के सौजन्य से बना इसका प्रमाण भी इलाहाबाद की जनता के सामने है। इस पुल के निर्माण कार्य की निरंतर डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने अपने सांसद के कार्यकाल में समीक्षा की। रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडिस को ले करके आते थे । पुल के काम की प्रगति का ब्योरा लेते थे । उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में नवोदय विद्यालय की संख्या बढ़ाई। केंद्रीय विद्यालय बढ़ा कर कई कर दिए।
मेरा दूसरा जवाब था कि विकास जीत का आधार नहीं होता है। मैंने बताया कि शहर में तैनात डीआईजी साहब की और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की जाति एक ही है। वह नहीं चाहते कि आप जीतें। डॉक्टर जोशी जी के गले मेरी बात उतरनी नहीं थी। सो नहीं उतरी। उन्होंने बहुत दावे से कहा, ‘वह विद्यार्थी परिषद से जुड़ा रहा है। ऐसा नहीं कर सकता।‘हाँ, मैंने उनसे कहा कि आप चुनाव जीत सकते हैं। पर मुलायम सिंह जी से बात कर लीजिये। डॉ. जोशी जी ने दो टूक शब्दों में कहा ,’मैं चुनाव हारना पसंद करूँगा । पर मुलायम सिंह जी से बात करके जीतना पसंद नहीं।‘उस समय मुलायम सिंह जी की तीसरी सरकार था। उनकी इस बात के बाद मैं नि:शब्द हो गया। पर उनके अंदर की नैतिक ताक़त ने हमें उनके सामने और नतमस्तक करा दिया।
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जोशी जी के बनारस से चुनाव लड़ने की बात से लोगों में प्रसन्नता
एक दूसरा वाकय़ा याद आता है जब वह बनारस से चुनाव लडऩे का मन बना चुके थे। उन्होंने हमें बताया। मैं बनारस गया। मेरे बहुत रिश्ते हैं। मैंने सबसे बात की। डॉ जोशी जी के बनारस से चुनाव लड़ने की बात से बनारस के लोगों में प्रसन्नता पढ़ी जा सकती थी। उन दिनों अजय राय जी भाजपा में थे। वह विरोध पर उतर आये। क्योंकि डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी नहीं गये होते बनारस तो वहाँ से अजय राय भाजपा के उम्मीदवार होते। अजय राय जी द्वारा लगातार किये जा रहे विरोध के बाद मैंने कहा कि ‘सर! अजय राय जी ठीक नहीं कर रहे हैं।
कुछ करिये।‘डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी का जवाब था,’ जब तक मेरी उम्मीदवारी घोषित नहीं हो जाती , तब तक हर कार्यकर्ता व हर नेता को टिकट माँगने व जिसे टिकट दिये जाने की उम्मीद लगती है। उसका विरोध करने का अधिकार है।‘ इस बात ने हमें उनके सामने और नतमस्तक करा दिया। बाद में आडवाणी जी की सभा में डॉ. जोशी जी के बनारस से लोकसभा लडऩे की घोषणा हुई। अजय राय जी के लोगों ने सभा में इसका विरोध किया। वह पार्टी से बाहर हो गये। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े।
डॉ जोशी जी बहुत बड़े मन के व्यक्ति हैं
बनारस में जब डॉ जोशी जी अपनी पत्नी के साथ उम्मीदवारी घोषित होने के बाद पहली बार पहुँचे तब बाबा विश्वनाथ जी के यहाँ वह रूद्राभिषेक करने गये। उनको रूद्राभिषेक कराने वाली पंडितों की टीम में मेरे एक शुभचिंतक दीपक मालवीय जी भी थे। दीपक जी से मेरा रिश्ता दशकों पुराना है। मेरी बनारस यात्रा बिना बाबा विश्वनाथ के दर्शन व संकट मोचन में सिर नवाये जहां पूरी नहीं होती। वहीं दीपक मालवीय जी से मुलाक़ात के बिना भी अधूरी रहती है। वैसे मेरे दर्शन, पूजन की जिम्मेदारी उनकी ही होती है। दीपक जी को अपने एक भाई को मेरे सहयोग से न्यास का सदस्य बनवाने में अभी सफलता मिल चुकी है। डॉ. जोशी के रूद्राभिषेक के बारे में उन्होंने हमें मोबाइल पर यूँ बताया - योगेश जी, आप सही कह रहे थे। डॉ जोशी जी बहुत बड़े मन के व्यक्ति है।
मैंने पूछा , क्यों , क्या हुआ।
दीपक जी ने जो बताया उससे मैंने लंबे समय तक डॉ. जोशी जी के चरणों में खुद को पड़ा पाया। दीपक जी के मुताबिक़ - जब हम लोगों ने उनकी बनारस से जीत का जिक्र करते हुए रूद्राभिषेक शुरू किया। तब डॉ जोशी ने रोका, कहा, जीत-हार तो बहुत छोटी चीज़ है। यह तो होती रहती है। आप लोग जगत के कल्याण के निमित्त यह रूद्राभिषेक करें।
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सुरक्षा गार्डों ने जब उनकी सुरक्षा जाँच शुरू की
जब वह मानव संसाधन मंत्री थे। तो उनके आशीर्वाद से हमें ई-9 देशों की कैरो में हुई शिक्षा की एक बैठक में यूनेस्को की ओर से भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। भारत का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल गया था। ई-9 दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों का संगठन है। उस कार्यक्रम में डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी के साथ नौकरशाहों में आलोक टंडन जी, कल्पना अवस्थी जी , बी. के त्रिपाठी जी, वृंदा स्वरूप जी भी थीं। बी. के. त्रिपाठी जी बाद में कैबिनेट सचिव बने। कल्पना अवस्थी व आलोक टंडन जी फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार में हैं। वहाँ उस समय हुस्नी मुबारक जी राष्ट्रपति थे। उनकी पत्नी का एक शिक्षा संकुल था। जिसके एक कार्यक्रम में डॉ. जोशी जी मुख्य अतिथि थे। वहीं तैनात सुरक्षा गार्डों ने जब उनकी सुरक्षा जाँच शुरू की। तब उन्हें बुरा लगा। वह और हम लोगों की पूरी टीम वापस होटल आ गयी।
डॉ. मुरली मनोहर जी की नाराजग़ी यह थी कि आप लोगों को मुख्य अतिथि व उनके साथ आई टीम की सुरक्षा जांच नहीं करनी चाहिए। बाद में वहाँ के शिक्षा मंत्री आये। पर डॉक्टर साहब की नाराजग़ी कम होने को न थी तो नहीं हुई। बाद में राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक जी व उनकी पत्नी को माफ़ी माँगना पड़ा। डॉ. साहब ने कार्यक्रम में शिरकत नहीं की। उनको मनाने के लिए रात को हुस्नी मुबारक जी को इंडियन डेलीगेशन के सम्मान में भोज रखना पड़ा। जहां तक हमें याद है बिहार के कोई सिंह साहब उन दिनों इजिप्ट में भारत के राजदूत थे।
एक बार चढ़ना शुरू किया तो शीर्ष पर पहुँच कर ही रुके
पूरी यात्रा में डाक्टर साहब जी ने सभी का बहुत ख्याल रखा। सबके खाने और पूरा कैरो देखने की व्यवस्था की मॉनिटरिंग की। पर सब मीटिंग के बाद रखा। हम सब लोग पिरामिड देखने गये। नीचे से पिरामिड के शीर्ष पर चढऩे में हर किसी को दो तीन ब्रेक लेने पड़े। पर हम लोगों को अचरज हुआ कि उन्होंने एक बार चढ़ना शुरू किया तो शीर्ष पर पहुँच कर ही रुके। कहीं कोई ब्रेक नहीं।
अभी दो साल पहले मैं और डॉक्टर जोशी जी जहाज़ से दिल्ली से लखनऊ आये। लखनऊ में जहाज़ से उतर कर जब हम लोग बस में सवार हुए तो बस में हमारे साथ जहाज़ से उतरे कई लोगों ने बिना परिचय के ही डॉक्टर जोशी जी के पैर छुए। उसमें नौजवान, बूढे, लड़कियाँ, लडक़े व महिलाएँ सब थे। सब बारी-बारी से पैर छू रहे थे। सर उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे। मैं उनसे हट कर थोड़ा किनारे खड़ा हो गया। सुना कि लडक़े-लड़कियाँ फुसफुसाहट के साथ कह रहे थे - यह हमारे देश व हमारी संस्कृति के धरोहर हैं। देखते ही पैर छूने का मन करता है।
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मैंने खुद को बेहद सौभाग्यशाली समझना भी शुरू कर दिया
लडक़े लड़कियों की आपसी बातचीत ने हम में भी काफ़ी गर्व भर दिया कि मैं ऐसी धरोहर व संस्कृति के सजीव प्रतिमूर्ति के कितने कऱीब हूँ। उनका कितना आशीष हमें मिलता है। मैंने खुद को बेहद सौभाग्यशाली समझना भी शुरू कर दिया। किसी मामले में उनके समझाने का तरीक़ा बेहद प्रभावकारी होता है। मेरे पिता जी का निधन 2011 में हुआ। जब सर को पता चला, उन्होंने तुरंत फ़ोन किया।
हमें सांत्वना कुछ इस तरह से दी। कहा, ‘योगेश तुम तो बहुत लंबे समय तक अपने पिता जी के साथ रहने का अवसर पा सके हो। मैं तो छोटा था तभी मेरे पिता जी का निधन हो गया। मुझे सिर्फ़ फ़ोटो से ही उनका चेहरा याद है। 'उनकी इस बात ने अवसाद के उन गंभीर क्षणों में उबरने की ताक़त दी।'
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