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अस्पतालों की लापरवाही ने ली नरेंद्र की जान, 2 दिनों तक 5 हाॅस्पिटल ने घुमाया, फिर...

दिल्‍ली में रहने वाले 47 साल के नरेंद्र को सामान्‍य सा बुखार आया था। परिवार को एहसास था कि कोरोना का एक लक्षण ये भी है। इसलिए बिना देर किए अस्‍पताल पहुंच गए।  दो दिन तक रिश्‍तेदार नरेंद्र को लेकर एक अस्‍पताल से दूसरे अस्‍पताल के चक्‍कर काटते रहे मगर बेड नहीं मिला।

suman
Published on: 8 Jun 2020 10:54 AM IST
अस्पतालों की लापरवाही ने ली नरेंद्र की जान, 2 दिनों तक 5 हाॅस्पिटल ने घुमाया, फिर...
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नई दिल्‍ली देश में कोरोना का मामला दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। साथ में एक दो मामले अस्पतालों के लापरवाही के भी आ रहे हैं जो मरीजों के इलाज में कोताही बरत रहे हैं। कुछ ऐसा ही दिल्‍ली में रहने वाले 47 साल के नरेंद्र से साथ हुआ जिसको सामान्‍य सा बुखार आया था। परिवार को एहसास था कि कोरोना का एक लक्षण ये भी है। इसलिए बिना देर किए अस्‍पताल पहुंच गए। दो दिन तक रिश्‍तेदार नरेंद्र को लेकर एक अस्‍पताल से दूसरे अस्‍पताल के चक्‍कर काटते रहे मगर बेड नहीं मिला। इसी बीच नरेंद्र कोविड-19 पॉजिटिव टेस्‍ट हुए। सिस्‍टम ने नरेंद्र को उनके हाल पर छोड़ दिया। आखिरकार तीन जून 2020 को नरेंद्र ने कोविड-19 से दम तोड़ दिया।

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कोरोना का शक था अस्‍पताल ने कहा कि उनके यहां टेस्‍ट नहीं हो सकता। नरेंद्र को कड़कड़डूमा में पुष्‍पांजलि मेडिकल सेंटर लाया गया। परिवार के मुताबिक, यहां लक्षण चेक किए गए मगर कोविड मरीजों को देखने के इंतजाम यहां पर भी नहीं थे। नरेंद्र के साले विकास के मुताबिक, फिर वो लोग मैक्‍स पटपड़गंज आ गए। यहां के हालात और बुरे थे।

विकास के मुताबिक, जब वो मैक्‍स पटपड़गंज पहुंचे तो वहां बेड्स ही खाली नहीं थे। परिवार के लोग अस्‍पताल मैनेजमेंट से नरेंद्र को भर्ती करने की गुहार लगाते रहे। उसकी हालत हर पल के साथ खराब होती जा रही थी। अस्‍पताल माना तो मगर कहा कि इमर्जेंसी केस है और 50,000 रुपये पहले जमा करने को कहा। कोई और रास्‍ता नहीं था। यहीं पर नरेंद्र के कई टेस्‍ट हुए, कोरोना का भी।

एक कोरोना पेशंट को से GTB अस्‍पताल जाने के लिए कोई प्राइवेट एम्‍बुलेंस तैयार नहीं थी। सरकारी एम्‍बुलेंस तो आ ही नहीं रही थी। किसी तरह विकास ने एक प्राइवेट एम्‍बुलेंस वाले को मनाया और शाम 5 बजे पहुंच गए। इलाज शुरू हुआ। परिवार नरेंद्र की हालत देखकर उन्‍हें वेंटिलेटर पर रखने को कहने लगा मगर अस्‍पताल ने कहा कि उसकी जरूरत नहीं। तबीयत बिगड़ती चली गई और शाम साढ़े सात बजे के करीब नरेंद्र ने दम तोड़ दिया। इसके बाद भी दो घंटों तक कोई उसके लाश को मॉर्च्‍युरी ले जाने नहीं आया। आया भी तो एक स्‍टाफ अटेंडेंट जिसकी मदद परिवार को करनी पड़ी।

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विकास ने फेसबुक पर एक पोस्‍ट में दूसरों को चेतावनी दी है। उन्‍होंने बताया कि उनकी बहन और उसके तीन बच्‍चे भी कोरोना पॉजिटिव टेस्‍ट हुए हैं। उन्‍होंने लिखा है, "आप सोचोगे कि अस्‍पताल में वे ठीक तरह से तैयार होंगे लेकिन हमने खुद कई जगह लाश को इधर-उधर किया। मेरे जीजा डायबिटिक थे मगर हेल्‍दी थे और हमने सिर्फ कुछ दिनों में उन्‍हें खो दिया।" जब हमारे सहयोगी टीओआई ने (RGSSH )से संपर्क किया तो उन्‍होंने कहा कि उन्‍हें मामले के फैक्‍ट्स का पता नहीं है। मैक्‍स पटपड़गंज की तरफ से जवाब नहीं मिला।

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