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15 अगस्त 2019 : आजाद की इस माउजर के आगे AK-47 है खिलौना

काकोरी की डकै‍ती में इस्‍तेमाल की गई चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल आज के एके 47 से कम नहीं थी। इस लूट कांड में जर्मनी निर्मित ऐसे चार माउजर प्रयोग किए गए थे।

SK Gautam
Published on: 10 Aug 2019 5:41 PM IST
15 अगस्त 2019 : आजाद की इस माउजर के आगे AK-47 है खिलौना
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लखनऊ: केवल मुट्ठीभर क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के उन अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था जिनके राज में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था । क्रांतिकारियों का देश भक्ति का अपना ही एक अंदाज था। जिनके अन्दर हथियार भी खुद ही बना लेने की काबिलियत थी चाहे वो बम हो या पिस्टल । महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल आपको याद ही होगी जिसको वे हमेशा अपने साथ ही रखते थे ।

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चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल

काकोरी की डकै‍ती में इस्‍तेमाल की गई चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल आज के एके 47 से कम नहीं थी। इस लूट कांड में जर्मनी निर्मित ऐसे चार माउजर प्रयोग किए गए थे।

अंग्रेजी सरकार ने अपनी गजट में इन क्रांतिकारियों के पास चार मिलने वाले माउजर के बारे में बताया था। जिनके बट में कुंदा लगा लेने से वह छोटी ऑटोमेटिक रायफल की तरह ही लगता था। इस माउजरों की मारक क्षमता भी आज एके-47 की तरह ही थी। और इन्‍हीं माउजरों में से एक चंद्रशेखर आजाद के अंतिम सांस तक उनके साथ रही, जिससे अंग्रेज खौफ खाते थे।

उत्‍सुकता में चल गई गोली और मारा गया बेकसूर

काकोरी लूट कांड इस लिए प्लान की गयी थी कि इस लूट में मिलने वाले पैसे और हथियार का इस्तेमाल आजादी की लड़ाई में किया जाना था । लेकिन इस लूट कांड के वक्‍त क्रांतिकारी मन्‍मथनाथ गुप्‍त ने उत्‍सुकतावश माउजर का ट्रैगर दबा दिया, जिससे निकली गोली अहमद अली नाम के मुसाफिर को लग गयी और उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया। हड़बड़ी में क्रांतिकारियों की एक चादर वहीं छूट गई। और यह खबर अगले ही दिन खबरों और रेडियो के जरिए पूरे देश में फैल गई।

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लखनऊ के जीपीओ पार्क में चला मुकदमा

खुफिया प्रमुख खान बहादुर तसद्दुक हुसैन ने पूरी छानबीन के बाद अंग्रेज सरकार को बताया कि काकोरी ट्रेन लूट क्रांतिकारियों का एक सुनियोजित षड्यंत्र था। इनकी गिरफ्तारी के लिए जगह-जगह पोस्‍ट लगवा दिए गए। इस बीच चादर पर लगे धोबी के निशान से इस बात की जानकारी मिली कि यह चादर शाहजहांपुर के किसी व्‍यक्‍ति की है।

पूछताछ में पता चला कि यह चादर बनारसी लाल की है। 26 सितंबर 1925 की रात बिस्मिल के साथ ही देशभर से 40 लोगों को गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाया गया। जबकि, चंद्रशेखर आजाद सहित पांच लोगों को फरार घोषित किया गया। इन सभी क्रांतिकारियों के खिलाफ लखनऊ के जीपीओ पार्क में मुकदमा चलाया गया। तब जीपीओ अंग्रेजों का रिंग थिएटर हुआ करता था।

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अंग्रेजों का रिंकथिएटर

क्रांतिकारीयों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अंग्रेज सरकार ने रिंग थिएटर में स्पेशल कोर्ट लगायी थी। दरअसल चलने वाले मुकदमें में क्रांतिकारियों के समर्थन में विद्रोह या हमले होने के की आशंका में अंग्रेजों ने रिंग थिएटर में स्पेशल कोर्ट लगायी थी जिसे आज जीपीओ के नाम से जाना जाता है।



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