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रॉकेट मैन के. सिवन की ऐसी है कहानी, कभी न जूते थे न सैंडल, मैथ्स में पाए थे 100%
भारत के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 की असफल हो गया तो पूरा देश भावुक हो गया। लैंडर विक्रम का शुक्रवार यानी 6 सितंबर की देर रात चांद की सतह से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर संपर्क टूट गया। सालों से मेहनत कर रही वैज्ञानिक मायूस हो गए जिसमें इसरो के चीफ के. सिवन भी शामिल थे।
नई दिल्ली: भारत के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 की असफल हो गया तो पूरा देश भावुक हो गया। लैंडर विक्रम का शुक्रवार यानी 6 सितंबर की देर रात चांद की सतह से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर संपर्क टूट गया। सालों से मेहनत कर रही वैज्ञानिक मायूस हो गए जिसमें इसरो के चीफ के. सिवन भी शामिल थे। के. सिवन भावुक हो गए और फफक-फफककर रो पड़े। उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी ने गले लगाकर हिम्मत दी।
पीएम मोदी ने उनका और उनकी टीम का हौसला बढ़ाया। के. सिवन को 10 जनवरी 2018 में बतौर इसरो चीफ नियुक्त किया गया था।
के. सिवन का पूरा नाम डॉ. कैलासावडिवू सिवन पिल्लई है। 14 अप्रैल 1957 को तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के सरक्कलविलई गांव में उनका जन्म हुआ था। 2018 में उन्हें इसरो के चेयरमैन के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने ए एस किरण कुमार का स्थान लिया था।
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सिवन ने साल 1980 में मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने 1982 में बेंगलुरु के आईआईएससी से एयरोस्पेस इंजिनियरिंग में पोस्टग्रेजुएशन किया। आईआईटी बॉम्बे से उन्होंने वर्ष 2006 में एयरोस्पेस इंजिनियरिंग में पीएचडी पूरी की।
के. सिवन बहुत गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं और उनका पूरा बचपन गरीबी में बीता। उनके पिता एक किसान थे। उनकी स्कूल की पढ़ाई गांव में ही हुई। बता दें वह अपने परिवार के पहले सदस्य थे जिन्होंने ग्रेजुएशन की थी।
1980 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने 1982 में IISc बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में परास्नातक किया। उन्होंने 2006 में IIT बॉम्बे से पीएचडी की डिग्री ली।
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के सिवन ने 1982 में इसरो का पीएसएलवी प्रोजेक्ट जॉइन किया था। उनके बायोडाटा के मुताबिक उनके लेख कई जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं और के सिवन को कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है।
के. सिवन इंडियन नेशनल ऐकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग, एयरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया और सिस्टम्स सोसाइटी ऑफ इंडिया में फैलो हैं। इसी साल उन्हें तमिलनाडु सरकार ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
अपने परिवार में ग्रेजुएट तक पढ़ाई करने वाले के. सिवन पहले शख्स थे। सिवन के भाई और दो बहनें गरीबी की वजह से अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए।
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सिवन के मुताबिक, जब वह कॉलेज में थे तो अपने पिता की खेती में मदद करते थे। इसी वजह से उन्हें ऐसे कॉलेज में ऐडमिशन दिलाया गया जो उनके घर के पास था। जब उन्होंने बीएससी (मैथ्स) को 100 प्रतिशत नंबरों से पास किया तब जाकर उन्होंने अपना विचार बदला।
सिवन के बचपन में उनके पास न जूते थे न सैंडल, वह नंगे पैर ही रहते थे। उन्होंने कॉलेज तक धोती पहनी और पहली बार पैंट तब पहना जब एमआईटी में दाखिला लिया। उनके अंकल के मुताबिक, सिवन काफी हार्ड वर्किंग थे और वह कभी किसी ट्यूशन या कोचिंग क्लासेस में नहीं गए।
साल 1982 में इसरो में आए और PSLV परियोजना पर उन्होंने काम किया। सिवन ऐंड टु ऐंड मिशन प्लानिंग, मिशन डिजाइन, मिशन इंटिग्रेशन ऐंड ऐनालिसिस में काफी योगदान दिया।
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सिवन इंडियन नेशनल ऐकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग, एयरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया और सिस्टम्स सोसाइटी ऑफ इंडिया में फेलो हैं। कई जर्नल में सिवन के पेपर पब्लिश हो चुके हैं।
के सिवन को इसरो का 'रॉकेट मैन' भी कहा जाता है। उनका क्रायोजेनिक्स इंजन, पीएसएलवी, जीएसएलवी और आरएलवी प्रोग्राम में अहम योगदान है। इससे अलग वह खाली वक्त में बागवानी करना पसंद करते हैं।
सिवन को वर्ष 1999 में मिला श्री हरी ओम आश्रम प्रेरित डॉ विक्रम साराभाई रिसर्च अवॉर्ड, 2007 में मिला इसरो मेरिट अवॉर्ड, चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी से अप्रैल 2014 में मिली डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि शामिल है।