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Chandrayaan 3: जानिए अब आगे कैसे काम करेगा चंद्रयान-3, शुरू से अंत तक पढ़िए इसकी पूरी डिटेल्स

Chandrayaan 3: चंद्रमा पर किसी की अथॉरिटी नहीं है सो वहां जाने, उतरने के लिए किसी से इजाजत लेने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसा कोई प्राधिकरण नहीं है जो दूसरी दुनिया में वस्तुओं की लैंडिंग को नियंत्रित करता हो।

Neel Mani Lal
Published on: 14 July 2023 11:55 AM GMT
Chandrayaan 3: जानिए अब आगे कैसे काम करेगा चंद्रयान-3, शुरू से अंत तक पढ़िए इसकी पूरी डिटेल्स
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Chandrayaan 3(Pic: Social Media)

Chandrayaan 3: भारत का चंद्रमा मिशन चंद्रयान 3 चाँद के लिए जा रहा है। हमें दिखने में चंदा भले ही कितनी पास लगे लेकिन चंद्रयान को चाँद की सतह तक टचडाउन करने में लगभग 40 दिन लगेंगे। चंद्रमा पर किसी की अथॉरिटी नहीं है सो वहां जाने, उतरने के लिए किसी से इजाजत लेने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसा कोई प्राधिकरण नहीं है जो दूसरी दुनिया में वस्तुओं की लैंडिंग को नियंत्रित करता हो। लेकिन वहां पहुंचने के लिए उस सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है जहां से प्रक्षेपण होता है। यह 91 देशों द्वारा हस्ताक्षरित 1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि के अनुसार है, जो पृथ्वी के देशों द्वारा बाह्य अंतरिक्ष के उपयोग को नियंत्रित करती है।

कोई भी उतर सकता है चन्द्रमा पर

अन्तरिक्ष संधि में विशेष रूप से, अनुच्छेद 6 में कहा गया है : ‘चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों सहित बाहरी अंतरिक्ष में गैर-सरकारी संस्थाओं की गतिविधियों के लिए संधि के लिए उपयुक्त सरकारी पक्ष द्वारा प्राधिकरण और निरंतर पर्यवेक्षण की आवश्यकता होगी।‘ मतलब ये कि देशों की सरकारें अपनी अपनी तरह से निगरानी और नियंत्रण करें। सो अगर आप चंद्रमा पर जाने या वहां राकेट भेजने की सोच रहे हैं तो सरकार से इजाजत ले लें।

जानिए चंद्रयान 3 के बारे में

  • चंद्रमा मिशन भारत के एलएमवी-3 रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ शुरू होता है। ये राकेट एक हेवी लिफ्ट वाहन है जो लगभग 8 मीट्रिक टन की चीज को पृथ्वी की कक्षा तक पहुँचाने में सक्षम है। तुलना के लिए बता दें कि एलोन मस्क का स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट लगभग 23 मीट्रिक टन वजन उठाकर पृथ्वी की निचली कक्षा में ले जा सकता है।
  • एलएमवी – 3 राकेट जिस अंतरिक्ष यान और उससे जुड़े प्रोपल्शन मॉड्यूल को पृथ्वी से लगभग 36,500 किलोमीटर ऊपर एक ‘अपोजी’ या उच्च बिंदु पर पृथ्वी कक्षा में स्थापित करेगा। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्र कक्षा में ट्रान्सफर होने से पहले अपनी कक्षा को कई बार बढ़ाएगा। यानी यह अंडाकार रास्ते पर कई बार चक्कर लगाएगा फिर चंद्रमा की कक्षा में चला जाएगा।
  • चंद्रमा के करीब पहुँच कर प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान-3 को तब तक नीचे ले जाता रहेगा जब तक कि यह चंद्रमा की 100 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में नहीं पहुंच जाता। वहां दोनों वाहन यानी ऑर्बिटर और लैंडर अलग हो जाएंगे। लैंडर कक्षा से बाहर निकल जाएगा और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में उतर जाएगा। टचडाउन के समय, लैंडर को लंबवत रूप से 2 मीटर प्रति सेकंड से कम और क्षैतिज रूप से 0.5 मीटर प्रति सेकंड की रफ़्तार से चलना चाहिए।
  • लैंडर एक अंतरिक्ष यान है जो सतह पर उतरता है फिर रुक जाता है। लैंडर को सही रफ़्तार और सही स्थान पर उतारना सबसे पेचीदा काम है। हार्ड लैंडिंग में इसे नुकसान पहुंचाता है या ये पूरी तरफ नष्ट हो जाता है जैसा कि चंद्रयान 2 के साथ हुआ था। सॉफ्ट लैंडिंग में लैंडर आराम से उतरता है जिसके बाद इसके काम सुचारू रूप से चलते हैं। कुछ लैंडर में उतरते वक्त उन्हें धीमा करने के लिए पैराशूट का उपयोग किया जाता है और कुछ मामलों में लैंडिंग से ठीक पहले छोटे लैंडिंग रॉकेट दागे जाते हैं। कुछ मिशनों जैसे कि लूना 9 और मार्स पाथफाइंडर ने पारंपरिक लैंडिंग गियर का उपयोग करने के बजाय लैंडर के प्रभाव को कम करने के लिए इन्फ्लेटेबल एयरबैग का उपयोग किया था।

क्या होता है लैंडिंग के बाद

  • दरअसल, लैंडर अपने साथ कुछ उपकरण ले जाता है जिसे रोवर कहते हैं। रोवर एक टोही उपकरण है। लैंडिंग के तुरंत बाद, चंद्रयान 3 लैंडर का एक साइड पैनल खुल जाएगा, जिससे ‘रोवर’ के लिए एक रैंप बन जाएगा। रोवर लैंडर के पेट से निकलेगा, रैंप से नीचे जाएगा और चंद्रमा पर खोज शुरू करेगा।
  • लैंडर और रोवर दोनों ही सोलर पावर से संचालित होते हैं। इन्हें पास चंद्रमा पर अपने परिवेश का अध्ययन करने के लिए लगभग दो सप्ताह का समय होगा। रोवर सिर्फ लैंडर के साथ कम्यूनिकेट कर सकता है और फिर लैंडर सीधे पृथ्वी से कम्यूनिकेट करता है। इसरो का कहना है कि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर का उपयोग इमरजेंसी कम्युनिकेशन रिले के रूप में भी किया जा सकता है। बता दें कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चंद्रमा का चक्कर लगा रहा है।
  • रोवर के दो पेलोड हैं : लेजर गाइडेड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप जो चंद्रमा की सतह की रासायनिक और खनिज संरचना का विश्लेषण करता है। दूसरा है - अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर जो चंद्रमा की सतह की मौलिक संरचना निर्धारित करता है। इसरो ने विशेष रूप से मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और लोहे का उल्लेख उन तत्वों के रूप में किया है जिनका रोवर पता लगाएगा।
  • लैंडर में चार पेलोड हैं : ‘रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फियर’ - यह मापता है कि समय के साथ स्थानीय गैस और प्लाज्मा वातावरण कैसे बदलता है। चन्द्र थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट जो सतह के तापीय गुणों का अध्ययन करता है। चंद्र भूकंपीय गतिविधि उपकरण और लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे, ये नासा द्वारा उपलब्ध कराया गया रेट्रोरिफ्लेक्टर है जिससे चंद्रमा संबंधी अध्ययन किया जा सकता है। नासा अभी भी अपोलो कार्यक्रम के दौरान छोड़े गए रेट्रोरिफ्लेक्टर का उपयोग करके चंद्रमा की दूरी मापता है।
  • चंद्रयान के सभी काम अगले 40 दिन में पूरे कर लिए जायेंगे और मिशन पूरा हो जाएगा। सभी उपकरण अपनी जाँच, विश्लेषण आदि का डेटा लैंडर के जरिये इसरो को भेजेंगे जहाँ उनका अध्ययन किया जाएगा।

Neel Mani Lal

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