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किसान आंदोलनः तो क्या गिर जाएगी खट्टर सरकार, अब क्या करेगा एनडीए
पिछले कुछ दिनों में हरियाणा के लिए किसान आंदोलन की रणनीति में बदलाव आया है। किसानों ने अब 36 बिरादरी को जोड़कर आंदोलन में शामिल करने के लिए अभियान छेड़ दिया है।
रामकृष्ण वाजपेयी
नई दिल्ली: हरियाणा के चरखी दादरी में किसान महापंचायत को संबोधित करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के दर्शन सिंह पाल ने पिछले दिनों कहा था कि हरियाणा की किसान विरोधी सरकार को हटाकर एनडीए को झटका देने की जरूरत है। राज्य में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ किसानों की पंचायतें हो रही हैं, प्रदर्शन किये जा रहे हैं। किसानों का गुस्सा इतना ज्यादा रहा कि तीन कृषि कानूनों के लाभों को समझाने के लिए मुख्यमंत्री जनसभा नहीं कर सके। अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या हरियाणा सरकार खतरे में है। क्या किसान आंदोलन इसे उखाड़ फेंकेगा।
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किसान आंदोलन की रणनीति में बदलाव
इस बीच हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल के विवादित बयान ने आग में घी डालने का काम किया है। उन्होंने कहा था कि अगर किसान घर पर होते तो उनकी मौत नहीं होती। क्या 6 महीने में 200 लोग भी नहीं मरेंगे? किसानों की मौतें उनकी इच्छा से हुई है। हालांकि बाद में मंत्री ने सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।
देखा जाए तो पिछले कुछ दिनों में हरियाणा के लिए किसान आंदोलन की रणनीति में बदलाव आया है। किसानों ने अब 36 बिरादरी को जोड़कर आंदोलन में शामिल करने के लिए अभियान छेड़ दिया है। प्रदेश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व पिछड़ा वर्ग समाज के लोगों के साथ किसान संगठनों के नेता लगातार बैठकें कर रहे हैं और इस समाज के लोगों की पंचायतों को कराने की तैयारी की जा रही है।
फोटो-सोशल मीडिया
किसान संगठनों के नेताओं को लग रहा है कि जब तक 36 बिरादरी के नेताओं को आंदोलन में शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक सरकार पर पूरी तरह से दबाव नहीं बनाया जा सकता है। सरकार पर दबाव बनाने के बाद ही बातचीत के बंद पड़े रास्ते को दोबारा खोला जा सकता है। इसी वजह से किसानों ने अन्य बिरादरी में पैठ बनाने का अभियान छेड़ दिया है।
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किसानों के आंदोलन का हल
इस सबके बीच दुष्यंत चौटाला पर सरकार से इस्तीफा देकर अलग होने का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है जिसकी वजह से जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला कहना पड़ गया कि दुष्यंत का इस्तीफा मेरी जेब में है और अगर उसके इस्तीफा देने से किसान आंदोलन का हल निकलता है तो अभी इस्तीफा दे देता हूं। इसके साथ ही उन्होंने सवाल किया कि क्या अभय चौटाला के इस्तीफा देने से किसानों के आंदोलन का हल निकल गया।
अजय चौटाला ने इसी के साथ हरियाणा के सांसदों पर भी दबाव बनाते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने कृषि कानून को बनाया है इस कारण हरियाणा के सभी 10 सांसदों व राज्यसभा सासंदों को इस्तीफा दे देना चाहिए न कि राज्य के किसी मंत्री को।
गौरतलब है कि इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) के विधायक अभय सिंह चौटाला ने कृषि कानूनों के विरोध में और किसान आंदोलन के समर्थन में इस्तीफा देकर दुष्यंत चौटाला पर दबाव बढ़ा दिया था। अभय चौटाला ने कहा था कि मुझे कुर्सी नहीं मेरे देश का किसान खुशहाल चाहिए।
सरकार द्वारा लागू इन काले कानूनों के खिलाफ मेने इस्तीफा अपने विधानसभा क्षेत्र की जनता के बीच हस्ताक्षर कर किसानों को सौंपने का फैसला लिया है। उम्मीद करता हूं देश का हर किसान पुत्र राजनीति से ऊपर उठकर किसानों का समर्थन करेगा।
फोटो-सोशल मीडिया
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किसानों पर हुई 'बर्बरता'
किसान आंदोलन के निशाने पर आए हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर भी हमला बोलते हुए बीते दिनों आरोप लगाया था कि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ कुछ राजनीतिक दल एवं संगठन किसान आंदोलन को 'प्रायोजित' कर रहे हैं।
खट्टर ने यह भी दावा किया था कि वह इस मसले पर उनसे बातचीत करना चाहते थे और तीन दिन तक उनके कार्यालय में टेलीफोन किया लेकिन उन्होंने इसका कोई उत्तर नहीं दिया। हालांकि, अमरिंदर सिंह ने खट्टर के उन आरोपों को खारिज कर दिया है।
इस बारे में अमरिंदर सिंह का कहना है कि वह खट्टर से तब तक बात नहीं करेंगे, जब तक वह दिल्ली कूच कर रहे किसानों पर हुई 'बर्बरता' के लिए माफी नहीं मांग लेते।
इस पूरे प्रकरण में एक बात साफ है कि हरियाणा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है ऐसे में किसानों का दबाव पड़ने पर अगर दुष्यंत चौटाला अलग हुए तो खट्टर सरकार संकट में आ सकती है। हालांकि इस बारे में जब किसान नेता टिकैत से पूछा गया तो उनका कहना था हमें सरकार से नहीं मतलब वह किसी को हो हमारा विरोध कृषि कानूनों से है और हम उनकी वापसी के बगैर पीछे नहीं हटेंगे।
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