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यौन शोषण के आरोपों को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने नकारा, बोले- न्यायपालिका खतरे में है

उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल संजीव सुधाकर कालगांवकर ने कई न्यायाधीशों को इस महिला का पत्र मिलने की पुष्टि करते हुये कहा कि इस महिला द्वारा लगाये गये सभी आरोप बेबुनियाद और निराधार है।

Aditya Mishra
Published on: 20 April 2019 8:21 AM GMT
यौन शोषण के आरोपों को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने नकारा, बोले- न्यायपालिका खतरे में है
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नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपने खिलाफ लगाये गये यौन उत्पीड़न के आरोपों को ‘‘अविश्वसनीय’’ बताते हुये शनिवार को उच्चतम न्यायालय में इस मामले की अप्रत्याशित सुनवाई की और कहा कि इसके पीछे एक बड़ी साजिश का हाथ है और वह इन आरोपों का खंडन करने के लिये भी इतना नीचे नहीं गिरेंगे।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप सुर्खियों में आने के बाद जल्दबाजी में की गयी सुनवाई करते हुये उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में संयम बरतने और जिम्मेदारी से काम करने का मुद्दा मीडिया के विवेक पर छोड़ दिया ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं हो।

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प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की विशेष पीठ ने करीब 30 मिनट तक इस मामले की सुनवाई की| शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बहुत ही गंभीर खतरा है और प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ बेशर्मी के साथ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये गये हैं क्योंकि कुछ ‘‘बड़ी ताकत’’ प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय को ‘‘निष्क्रिय’’ करना चाहती है।

शीर्ष अदालत की एक पूर्व कर्मचारी द्वारा प्रधान न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाये जाने की खबरें कुछ न्यूज पोर्टल पर प्रकाशित होने के बाद न्यायालय ने ‘‘असामान्य और अप्रत्याशित’’ तरीके से इसकी सुनवाई की। न्यायालय ने कहा कि न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता और मीडिया को सच्चाई का पता लगाये गये इस महिला की शिकायत का प्रकाशन नहीं करना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब उनकी अध्यक्षता वाली पीठ को अगले सप्ताह ‘‘अनेक संवेदनशील मामलों की सुनवाई करनी है और यह देश में लोकसभा चुनावों का महीना भी है।’’ पीठ ने इस विवाद के पीछे किसी बड़ी ताकत का हाथ होने का इशारा किया जो न्यायिक व्यवस्था में जनता के विश्वास को डगमगाने में सक्षम है।

यद्यपि इस पीठ की अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश कर रहे थे लेकिन उन्होंने न्यायिक आदेश पारित करने का काम न्यायमूर्ति मिश्रा पर छोड़ दिया था।न्यायमूर्ति मिश्रा ने आदेश लिखाते हुये कहा कि मामले पर विचार करने के बाद हम फिलहाल कोई भी न्यायिक आदेश पारित करने से गुरेज कर रहे हैं और इसे संयम बरतने तथा जिम्मेदारी से काम करने के लिये मीडिया के विवेक पर छोड रहे हैं जैसा उससे अपेक्षा है और तदनुसार ही निर्णय करे कि उसे क्या प्रकाशित करना है क्या नहीं करना है क्योंकि ये अनर्गल आरोप न्यायपालिका की गरिमा को अपूर्णनीय क्षति पहुंचाते हैं और इसकी स्वतंत्रता को नकारते हैं।

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आदेश मे कहा गया कि इसलिए हम इस समय हम अनावश्यक सामग्री को अलग करने का काम मीडिया पर छोड़ रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उनके खिलाफ ‘‘अविश्वसनीय’’ आरोप लगाये गये हैं और मैं नहीं समझता कि मुझे इन आरोपों का खंडन करने के लिये भी इतना नीचे आना चाहिए। हालांकि न्यायाधीश के रूप में 20 साल की नि:स्वार्थ सेवा के बाद यह (आरोप) सामने आया है।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मुझे कोई धन के मामले में पकड़ नहीं सकता। लोगों को कुछ और तलाशना था और उन्हें यह मिला है।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि करीब दो दशक की सेवा के बाद उनके पास भविष्य निधि में करीब 40 लाख रूपए के अलावा बैंक में 6.80 लाख रूपए हैं| प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इसके पीछे कोई न कोई बहुत बड़ी ताकत होगी। दो कार्यालय है--पहला प्रधान मंत्री का और दूसरी प्रधान न्यायाधीश का है। वे (इस विवाद के पीछे छिपे लोग) प्रधान न्यायाधीश कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं। 20 साल की सेवा के बाद प्रधान न्यायाधीश को यह पुरस्कार मिला है।’’

इन आरोपों से बेहद आहत और आक्रोषित न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने चेतावनी भरे लहजे में कहा, ‘‘इस देश की न्यायपालिका बहुत ही गंभीर खतरे में है। हम ऐसा नहीं होने देंगे।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ मैं इसी कुर्सी पर बैठुंगा और बगैर किसी भय के अपने न्यायिक कर्तव्यों का निर्वहन करूंगा। मैं सात महीने (प्रधान न्यायाधीश के रूप में शेष कार्यकाल) में मुकदमों का फैसला करूंगा। मैं ऐसा करूंगा।’’

न्यामयूर्ति गोगोई ने तीन अक्टूबर, 2018 को प्रधान न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया था और इस साल 17 नवंबर को उनका कार्यकाल पूरा होगा। न्यायमूर्ति गोगोई को पदोन्नति देकर 23 अप्रैल, 2012 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया था। इससे पहले वह पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे।

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यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला के हलफनामे की प्रतियां उच्चतम न्यायालय के 22 न्यायाधीशों के आवास पर भेजे जाने के बाद शनिवार को इसके सार्वजनिक होने पर न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय विशेष पीठ गठित की गयी।

शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने इससे पहले एक नोटिस में कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले अत्यधिक सार्वजनिक महत्व के मामले पर सुनवाई के लिये प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पीठ गठित की जा रही है। शीर्ष अदालत की पूर्व कर्मचारी अपने हलफनामे में न्यायमूर्ति गोगोई द्वारा कथित छेड़छाड़ की दो घटनाओं का उल्लेख किया है जो न्यायमूर्ति गोगोई के प्रधान न्यायाधीश नियुक्त होने के कुछ दिन बाद ही कथित रूप से अक्टूबर, 2018 में हुयीं।

खबरों के अनुसार इस महिला ने आरोप लगाया है कि उनकी पहल को ठुकराने के बाद ही उसे सेवा से निकाल दिया गया। उसका दावा है कि उसके पति और एक अन्य रिश्तेदार, जो पुलिस में हेड कांस्टेबल थे, को 2012 में एक आपराधिक मामले के सिलिसले में निलंबित कर दिया गया जबकि यह मामला परस्पर सहमति से सुलझा लिया गया था।

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इस महिला का आरोप है कि बाद में उसे प्रधान न्यायाधीश के आवास पर न्यायमूर्ति गोगोई की पत्नी के समक्ष दंडवत होने और उनके कदमों में नाक रगड़ने के लिये मजबूर किया। उसका यह भी आरोप है कि उसके दिव्यांग रिश्तेदार को भी उच्चतम न्यायालय में नौकरी से हटा दिया गया। महिला ने आरोप लगाया है कि उसे उसके पति और अन्य रिश्तेदारों के साथ थाने में हिरासत में रखा गया और धोखाधड़ी के एक मामले में उसे शारीरिक प्रताड़ना और गालियां दी गयीं।

उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल संजीव सुधाकर कालगांवकर ने कई न्यायाधीशों को इस महिला का पत्र मिलने की पुष्टि करते हुये कहा कि इस महिला द्वारा लगाये गये सभी आरोप बेबुनियाद और निराधार है।

(भाषा)

Aditya Mishra

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