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Karnataka Election Results 2023: काम कर गयी कांग्रेस की रणनीति

Karnataka Election Results 2023: पार्टी को इस बात का अहसास था कि घोषणापत्रों में की गई घोषणाएं वास्तव में जमीनी स्तर पर मतदाताओं तक नहीं पहुंचती हैं। खासकर मतदान का दिन करीब आने तक मतदाता सब भूल भी जाते हैं।

Neel Mani Lal
Published on: 13 May 2023 7:47 PM IST
Karnataka Election Results 2023: काम कर गयी कांग्रेस की रणनीति
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Karnataka assembly Election Results 2023 (Photo-Social Media)

Karnataka Election Results 2023: कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस ने बहुत सोची समझी रणनीति से काम लिया और उसका नतीजा सबके सामने है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में महिलाएं और युवा भाजपा के लिए एक बड़ा वोट बैंक रहे हैं, और कांग्रेस ने यहां सेंध लगाने के लिए ठोस प्रयास किया। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने को लगातार जनता के बीच चर्चा का विषय बनाये रखने और लोगों की रुचि जगाये रखने का काम किया।

पार्टी को इस बात का अहसास था कि घोषणापत्रों में की गई घोषणाएं वास्तव में जमीनी स्तर पर मतदाताओं तक नहीं पहुंचती हैं। खासकर मतदान का दिन करीब आने तक मतदाता सब भूल भी जाते हैं। ऐसे में पार्टी ने अपने प्रमुख वादों को काफी पहले से ही सार्वजनिक करने का निर्णय लिया, लेकिन जनता की आशाओं और रुचि को बनाए रखने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए गए। कांग्रेस ने चुनावी वादे के रूप में महिलाओं और युवाओं को आकर्षित करने के लिए पांच "गारंटियां" बनाईं जो मूल्य वृद्धि और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से जुड़ी थीं। मतदान केंद्रों के पास कांग्रेस के चुनावी बूथों में गैस सिलेंडर लगाना और डीके शिवकुमार द्वारा सिलेंडर की पूजा करना इसी योजना का हिस्सा था।

इसी योजना के तहत प्रियंका गांधी वाड्रा ने जनवरी में महिलाओं के एक सम्मेलन में कांग्रेस की सरकार बनने पर महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों को 2,000 रुपये प्रति माह देने की ‘गृह लक्ष्मी’ योजना की घोषणा की। कुछ दिनों बाद, जैसे ही सिद्धारमैया और शिवकुमार ने बस यात्रा शुरू की, पार्टी ने 200 यूनिट मुफ्त बिजली के अपने दूसरे वादे की घोषणा की। पहले दो वादों की घोषणा के साथ, पार्टी ने चेक के रूप में "गारंटी कार्ड" छापना शुरू किया और यह सुनिश्चित करने के लिए घर-घर अभियान शुरू किया कि कार्ड अधिकतम घरों तक पहुंचे।

फरवरी में, एक महीने बाद, शिवकुमार ने तीसरी गारंटी की घोषणा की - प्रत्येक बीपीएल परिवार के सदस्य को ‘अन्न भाग्य’ योजना के तहत प्रति माह 10 किलो मुफ्त चावल देने का वादा। मार्च में बेलगावी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए, राहुल ने चौथे वादे की घोषणा की - दो साल के लिए स्नातक की डिग्री वाले बेरोजगार युवाओं को हर महीने 3,000 रुपये, की ‘युवा निधि; योजना का वादा।

पांचवां वादा - महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा - की घोषणा राहुल ने प्रचार अभियान के बीच में की थी। पूर्व आईएएस अधिकारी से नेता बने शशिकांत सेंथिल, जिन्होंने बेंगलुरु में वॉर रूम का नेतृत्व किया, का प्रारंभिक कार्य यह सुनिश्चित करना था कि गारंटी कार्ड प्रत्येक घर तक पहुंचे।

भ्रष्टाचार और स्थानीय मुद्दे

गारंटियों की तरह, मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना भी लगभग एक साल पहले ही शुरू हो गया था। मिसाल के तौर पर भ्रष्टाचार, जिसे बोम्मई सरकार के खिलाफ एक बड़े दाग के रूप में देखा गया था। कांग्रेस की योजना यह थी कि भाजपा सरकार के खिलाफ बहुत पहले से ही एक नैरेटिव सेट कर दिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि अभियान अंत तक उसी के इर्द-गिर्द केंद्रित रहे। इसी योजना के तहत पिछले साल सितंबर में, क्यूआर कोड वाले पोस्टर और "पेसीएम" बताते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री की तस्वीरें पूरे बेंगलुरु में फैल गईं। इस अभियान ने कांग्रेस को एक बहुत ही जरूरी बात करने का मौका दे दिया। राहुल से लेकर प्रियंका और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर राज्य के नेताओं तक - "40 प्रतिशत कमीशन सरकार" का आरोप बार-बार लगाया गया।

राहुल ने अपने शुरुआती भाषणों में बार-बार अडानी मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला और जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया। बाद में शायद पार्टी को लगा कि अडानी मुद्दा ज्यादा काम नहीं करेगा। राज्य का नेतृत्व भी चुनाव अभियान को हाइपर-लोकल रखना चाहता था। इसलिए, राहुल ने लाइन बदली और अपने बाद के भाषणों में स्थानीय मुद्दों पर स्विच कर गए। प्रियंका ने भी यही लाइन रखी और बार-बार कहा कि यह चुनाव सिर्फ कर्नाटक के मुद्दों के बारे में है। हालाँकि खड़गे का ‘जहरीला सांप’ वाला बयान मामला गड़बड़ाने वाला था लेकिन उन्होंने तुरंत खेद व्यक्त किया। जबकि भाजपा ने इस मुद्दे को पकड़ लिया लेकिन कांग्रेस ने शब्दों की इस लड़ाई में फंसने से परहेज किया। इसी तरह जब कांग्रेस द्वारा कर्नाटक के संदर्भ में "संप्रभुता" शब्द का इस्तेमाल करने पर विवाद खड़ा किया गया तो पार्टी ने ट्वीट को हटाने का फैसला किया ताकि मामला तूल न पकड़ने पाए। .

जद (एस) पर रणनीतिक चुप्पी

2018 के चुनावों में राहुल ने जद (एस) को भाजपा की बी-टीम कहा था, लेकिन इस बार कांग्रेस ने जद (एस) के बारे में रणनीतिक चुप्पी ही साधे रखी। पार्टी की रणनीति रही कि उसका कोई बड़ा नेता जद (एस) के बारे में कुछ भी न बोले। दरअसल, मैसूर और बेंगलुरु की करीब 90 सीटों पर कांग्रेस का सीधा मुकाबला जद (एस) से था, लेकिन पार्टी ने ये दर्शाया कि यह चुनाव भाजपा सरकार को हटाने के लिए है। इसके अलावा, इसने जद (एस) के कुछ पूर्व दिग्गजों को भी टिकट दिया। इसी तरह कांग्रेस ने असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के खिलाफ भी मुंह नहीं खोला। कुल मिला कर कांग्रेस ने जानबूझकर चुनाव को कांग्रेस-भाजपा की लड़ाई बना दिया।

उम्मीदवारों का चयन

हाल के इतिहास में पहली बार कांग्रेस ने चुनाव कार्यक्रम घोषित होने से पहले ही आधी से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। पूर्व में चुनाव में हार के बाद पार्टी द्वारा गठित एके एंटनी पैनल सहित कई समितियों ने उम्मीदवारों की जल्द घोषणा करने की आवश्यकता का सुझाव दिया था। जल्दी उम्मीदवारों की घोषणा करने का मतलब प्रत्याशियों को तैयारी करने का पर्याप्त समय देना और असंतुष्टों से निपटने के लिए भी पर्याप्त समय मिल जाना था। इसी रणनीति के तहत पार्टी के नेताओं ने ऐसे कई नेताओं से बात की जो नाखुश थे और उन्हें चुनाव लड़ने के लिए राजी किया। गंभीर विद्रोहियों को आश्वासन दिया गया कि सरकार बनने के बाद उन्हें समायोजित किया जाएगा। नामांकन पत्र दाखिल करने वाले अधिकांश बागियों ने नाम वापस लेने पर सहमति जताई।



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Neel Mani Lal

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