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कुकिंग गैसः बेतहाशा बढ़ती कीमतें, क्या हैं कारण, क्यों नहीं कर रही सरकार हस्तक्षेप
दिल्ली में कुकिंग गैस की कीमतें मई 2020 में 581.5 रुपये प्रति सिलेंडर थीं। जो 1 मार्च 2021 तक बढ़कर 819 रुपये हो गई हैं। इस साल की शुरुआत के दूसरे महीने फरवरी में तीन लगातार बढ़ोतरी को जोड़ें तो एलपीजी सिलेंडर की कीमतें 125 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ी हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: रसोई गैस की बेतहाशा बढ़ती कीमतों में भारतीय गृहिणियों की कमर तोड़ दी है। रसोई में घुसने से उन्हें डर लगने लगा है। इस पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की सलाह कि एलपीजी छोड़ बिजली से खाना क्यों नहीं पकाती महिलाएं। यह ऐसी ही बात है कि कोई कहे साहब पीने को पानी और खाने को रोटी नहीं है तो सुझाव दिया जाए कि वाइन और ब्रेड क्यों नहीं खाते।
2020 में 581.5 रुपये प्रति सिलेंडर, 2021 तक बढ़कर 819 रुपये
दिल्ली में कुकिंग गैस की कीमतें मई 2020 में 581.5 रुपये प्रति सिलेंडर थीं। जो 1 मार्च 2021 तक बढ़कर 819 रुपये हो गई हैं। इस साल की शुरुआत के दूसरे महीने फरवरी में तीन लगातार बढ़ोतरी को जोड़ें तो एलपीजी सिलेंडर की कीमतें 125 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ी हैं। ऐसा पहले नहीं होता था। पहले एक महीने में अधिकतम एक बार कीमतें बढ़ती थीं।
भारत में कुल लगभग 28.8 करोड़ एलपीजी उपभोक्ता हैं, जिनमें से 13.5 करोड़ भारतीय तेल निगम द्वारा, 7.4 करोड़ भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन द्वारा और 7.9 करोड़ हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन की कुकिंग सेवा ले रहे हैं। 2014-15 में भारत की एलपीजी खपत में 14.8 करोड़ की 95 प्रतिशत वृद्धि हुई है। देश की एलपीजी पैठ अब लगभग 99 प्रतिशत है जो कि मुख्य रूप से प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के कारण संभव हो सका है।
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आम भारतीयों के लिए सब्सिडी के सिलेंडर महंगे
अब आते हैं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की बात पर बेशक सिद्धांततः उनकी बात सही हो सकती है लेकिन एक उदाहरण से इसे ऐसे समझ सकते हैं कि 10 लीटर पानी को खौलाने की लागत एलपीजी गैस सिलेंडर में रुपये 5.09 (सब्सिडी वाले में) और रुपये 10.8 (सब्सिडीरहित सिलेंडर) में आती है। जबकि पीएनजी स्टोव में रु. 4.33 और इंडक्शन कुक टॉप में रु. 5.21 तथा इलेक्ट्रिक कएल कुक टॉप में रु. 5.91 आती है। इस तरह से आम भारतीयों के लिए जो सिर्फ सब्सिडी के सिलेंडर में अपनी रसोई बनाते हैं यह महंगा सौदा है।
दूसरी बात बिजली की उपलब्धता कितनी है। हर राज्य की बिजली की दरें भिन्न है। वास्तव में मंत्री को सोलर कुकर से खाना पकाने को प्रोत्साहित करने की बात करनी चाहिए थी वह ज्यादा कारगर होती है। सरकार की चिंता की वजह उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि है। जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देन है। वरना गरीब जनता प्रदूषण की जंग में मरती रहती। अब यही उपयोगकर्ताओं की वृद्धि परेशान कर रही है जो कीमतों में वृद्धि के कारण चिंता का कारण बन रही है।
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जीएसटी के दायरे में आने से एलपीजी की कीमतें घटेंगी
उज्ज्वला योजना के तहत 8 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। इसके अलावा, सरकार ने मई 2020 से एलपीजी (डीबीटीएल) सब्सिडी पर सीधे लाभ हस्तांतरण के साथ किया। सरकार की एक और समस्या है कि एलपीजी को सब्सिडी के चलते जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जा सकता है। तो बेहतर उपाय यही है कि सरकार सब्सिडी खत्म कर इसे भी जीएसटी के दायरे में ले आए इसकी कीमतें अपने आप कम हो जाएंगी।
वर्तमान में सरकार एलपीजी पर सब्सिडी नहीं दे रही है
वर्तमान समय में एलपीजी की कीमत एक आयात समता मूल्य (आईपीपी) फार्मूले के आधार पर तय की जाती है, जो अंतरराष्ट्रीय उत्पाद कीमतों पर आधारित है। सऊदी अरामको की अनुबंध कीमतें इस गणना के लिए एक बेंचमार्क मानी जाती हैं। आईपीपी फॉर्मूला में सऊदी अरामको की एलपीजी की कीमतें, फ्री-ऑन-बोर्ड कीमत, महासागर माल ढुलाई शुल्क, सीमा शुल्क और पोर्ट बकाया शामिल हैं। एलपीजी पर भी टैक्स की दरें बहुत ज्यादा हैं।
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यदि यह जीएसटी के दायरे में आ गई तो सरकार के खजाने पर असर पड़ेगा। लेकिन जनता का भला होगा। हालांकि वर्तमान में सरकार एलपीजी पर सब्सिडी नहीं दे रही है। ऐसे में सब्सिडी को पूरी तरह खत्म कर इसे जीएसटी में लाने का रास्ता आसान विकल्प है।
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