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Odisha Train accident: शॉर्टकट के फेर में कर दिया इतना बड़ा कांड!
Odisha Train accident: अलग अलग स्रोतों और रिपोर्टों से पता चलता है कि यह त्रासदी पूरी तरह 'मानवीय त्रुटि' की वजह से हुई। और ये गड़बड़ी शॉर्टकट अपनाने के चक्कर में हुई।
Odisha Train accident: ओडिशा ट्रेन त्रासदी के कारण क्या थे? 275 लोगों की जान लेने वाली और 1199 घायल होने वाली दुर्घटना आखिर कैसे हुई? इस त्रासदी की जांच रेलवे संरक्षा आयुक्त तो कर ही रहे हैं, सीबीआई ने भी जांच शुरू कर दी है। लेकिन अलग अलग स्रोतों और रिपोर्टों से पता चलता है कि यह त्रासदी पूरी तरह 'मानवीय त्रुटि' की वजह से हुई। और ये गड़बड़ी शॉर्टकट अपनाने के चक्कर में हुई। और इसके मूल में दो लोगों की संलिप्तता पाई गई है।
चार लाइनें
बहनगा स्टेशन में दो मेनलाइन ट्रैक हैं - अप और डाउन लाइन - ट्रेनों के गुजरने के लिए और दो लूप लाइनों को अस्थायी पड़ाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है ताकि मुख्य लाइनों पर ट्रेनों की सुचारू आवाजाही हो सके।
कोरोमंडल एक्सप्रेस की लाइन बदली
बहनगा स्टेशन की अप लूप लाइन पर एक मालगाड़ी के रुकने की अनुमति के बाद अप मेन लाइन पर कोरोमंडल एक्सप्रेस के लिए सिग्नल दिया गया। आमतौर पर, ट्रेन को लूप लाइन में जाने के बाद, रूट रिले पैनल पर स्विच करके ट्रैक का एक सेक्शन मेन लाइन से लूप लाइन में खिसकाया जाया जाता है और ट्रेन के आने के बाद, स्विच को रूट रिले पैनल में वापस ले जाया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके ट्रैक का स्थानांतरित सेक्शन अपनी मूल स्थिति में वापस आ गया है। लेकिन यहां ट्रैक का सेक्शन लूप लाइन से मेनलाइन की ओर नहीं लौटा और कोरोमंडल एक्सप्रेस को हरी झंडी दिए जाने के बाद भी प्वाइंट लूप लाइन की ओर था। खड़गपुर के डेटा लॉगर के अनुसार, स्टेशन के पैनल पर ये समस्या दिखाई दी और कुछ सेकंड के लिए लाल बत्ती चमकी, लेकिन उस समय मौजूद स्टेशन मास्टर किसी तरह चूक गए। अगर स्टेशन प्रबंधक ने लाल बत्ती पर ध्यान दिया होता और उपाय किए होते तो इस दुर्घटना को टाला जा सकता था।
शायद ऐसा हुआ होगा
बहनगा स्टेशन पर उस अभागे पलों में क्या हुआ होगा, न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में ये बताया गया है। संभवतः दुर्घटना से पहले मेनलाइन और लूप लाइन जंक्शन में कुछ खराबी आ गई थी। सर्किट की मरम्मत करने वाले तकनीशियन ने नियत प्रोसीजर को दरकिनार करते हुए शॉर्टकट अपनाया और सिग्नल के साथ डायरेक्ट कनेक्शन जोड़ दिया। यही वजह है कि स्टेशन मास्टर ने ट्रैक की असली स्थिति को जाने बिना सिग्नल दे दिया होगा। फाल्ट ठीक करने के लिए तकनीशियन ने शॉर्टकट तरीका अपनाया। मरम्मत के बाद जंक्शन पर ट्रैक की आवाजाही सुचारू है,ये स्टेशन मास्टर को ठीक से सत्यापित करना चाहिए था।
इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलिंग
बताया जाता है कि इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलिंग सिस्टम एरर प्रूफ और फेल-सेफ है, जिसका मतलब है कि अगर किसी वजह से कोई खराबी आई या ये फेल हो गया तो सभी सभी सिग्नल लाल हो जाएंगे। लाइन में कोई खराबी होने पर स्टेशन मास्टर हरी झंडी नहीं दे सकता। रेलवे के इतिहास में शायद यह पहली बार है कि फॉल्ट को ठीक करने के लिए अपनाए गए शॉर्टकट तरीके के कारण ऐसा हादसा हुआ है।
कुछ रेलवे विशेषज्ञों ने कहा कि चूंकि सिग्नल बंद कर दिया गया था और कोरोमंडल एक्सप्रेस के लिए अप मेनलाइन के लिए पैनल सेट किया गया था, तो रूट रिले इंटरलॉकिंग को लूप लाइन पर लाइन स्विच करने से रोकना चाहिए था। यह बड़ी खराबी शॉर्टकट रिपेयर के कारण हो सकती है।
लेवल क्रासिंग का गेट
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, कोरोमंडल एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के तार संभवत: स्टेशन के पास स्थित एक लेवल-क्रॉसिंग के गेट से जुड़े हैं। उस गेट का बूम बैरियर काम नहीं कर रहा था। चूंकि कोरोमंडल एक्सप्रेस आने वाली थी सो बूम बैरियर की समस्या को दूर करने के लिए सिग्नलिंग तकनीशियन या किसी अन्य सक्षम स्टाफ ने 'लोकेशन बॉक्स' को "लूप" कर दिया। दूसरे शब्दों में, तकनीशियन ने मैन्युअल रूप से सर्किट को ऐसे जोड़ दिया, ताकि सिस्टम कुछ भी गलत नहीं पहचान पाए। यानी एक जुगाड़ से काम चला लिया गया।
लोकेशन बॉक्स
"लोकेशन बॉक्स', आमतौर पर पटरियों के बगल में रखा जाता है। बॉक्स में पॉइंट मोटर, सिग्नलिंग लाइट, ट्रैक डिटेक्टरों तथा इंटरलॉकिंग के अन्य सभी महत्वपूर्ण हिस्सों के कनेक्शन होते हैं। यानी तीनों मशीनों के तार इसी बॉक्स में जुड़े होते हैं। ये भी जान लीजिए कि इंटरलॉकिंग एक महत्वपूर्ण सुरक्षा तंत्र है जो यह सुनिश्चित करता है कि कोई दुर्घटना न हो और ट्रेनों का सुरक्षित परिचालनहोता रहे।
रेलवे के इंटरलॉकिंग सिस्टम में निर्मित 'फेल-सेफ' लॉजिक के अनुसार अगर लेवल क्रॉसिंग का बूम बैरियर नीचे नहीं था तो जिस मेन लाइन पर कोरोमंडल एक्सप्रेस को गुजरना था, उसे "ग्रीन" सिग्नल नहीं मिल सकता था।
समस्या को ठीक से सुलझाने की बजाय सिग्नल टेक्नीशियन ने लोकेशन बॉक्स में जुगाड़ लगाया और मैन्युअल रूप से फेल सेफ लॉजिक को ओवरराइड कर दिया। नतीजतन, कोरोमंडल एक्सप्रेस के लिए "आल क्लियर सिग्नल मिल गया।
निर्धारित प्रक्रिया
इंटरलॉकिंग सिस्टम को डिस्कनेक्ट करने की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है। नियत प्रक्रिया के लिए सिग्नलिंग तकनीशियनों को पहले स्टेशन मास्टर को "डिस्कनेक्शन मेमो" देना होता है।मेमो मिलने पर स्टेशन मास्टर इंटरलॉकिंग सिस्टम को बंद करने के लिए अनुमति देता है। सिस्टम बन्द करने का मतलब होगा कि उसे मैनुअल मोड में स्विच कर दिया जाए। फिर सिग्नल को मैन्युअल रूप से फ़्लैग करना होगा, और उसके लिए पॉइंट को मैन्युअल रूप से सेट और लॉक करना होगा। ज्यादा गड़बड़ होने पर स्टेशन मास्टर "ट्रैफिक ब्लॉक" लेता है जिसके चलत कुछ समय के लिए ट्रेन संचालन की अनुमति नहीं होगी। उस दिन नियत प्रक्रिया का पालन करने का मतलब होता कोरोमंडल एक्सप्रेस के साथ-साथ यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस को रोकना या उन्हें लेट कर देना। शायद इस "झंझट" से बचने के लिए शॉर्टकट तरीका अपनाया गया जिसका अंजाम सबके सामने है।
बहनागा स्टेशन का स्टाफ
बहनगा बाजार स्टेशन जहां ये हादसा हुआ वहां हादसे के वक्त प्रभारी स्टेशन मास्टर एसबी मोहंती थे। ये असिस्टेंट स्टेशन मास्टर हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक हादसे के वक्त एसके पटनायक स्टेशन मैनेजर थे जबकि पीके पांडा, जेके नायक और एसबी मोहंती अधीक्षक थे।पटनायक ने कहा है कि दुर्घटना के समय एसबी मोहंती ड्यूटी पर थे और दुर्घटना के बाद उन्हें जांच के लिए खुर्दा रोड जंक्शन रेलवे स्टेशन भेज दिया गया है।