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कोरोना से जंग जीतने की तैयारी, अमेरिका के बाद भारत में भी होगा इस दवा का ट्रायल

स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि विश्व स्वास्थ संगठन से भारत को रेमडेसिविर की 1000 शीशियां मिली हैं और इनका इस्तेमाल कुछ राज्यों में कोरोना से संक्रमित मरीजों के लिए किया जाएगा।

Shivani Awasthi
Published on: 5 May 2020 3:53 AM GMT
कोरोना से जंग जीतने की तैयारी, अमेरिका के बाद भारत में भी होगा इस दवा का ट्रायल
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। कोरोना से जंग जीतने के लिए भारत में भी जल्द ही रेमडेसिविर दवा का क्लीनिकल ट्रायल किया जाएगा। हालांकि यह दवा अभी कोरोना वायरस से संक्रमित गंभीर मरीजों को ही देने की योजना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से यह परीक्षण किया जाएगा। अमेरिका में इसका क्लीनिकल ट्रायल सफल होने के बाद भारत में इसका परीक्षण करने की तैयारी है।

स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि विश्व स्वास्थ संगठन से भारत को रेमडेसिविर की 1000 शीशियां मिली हैं और इनका इस्तेमाल कुछ राज्यों में कोरोना से संक्रमित मरीजों के लिए किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक सीएसआईआर और आईसीएमआर की टीमें इस दवा के क्लीनिकल ट्रायल पर काम कर रही हैं।

कोरोना के मरीजों को आराम मिलने का दावा

अमेरिका में हुए परीक्षणों के बाद वैज्ञानिकों का दावा है कि इस दवा के सेवन से कोरोना के गंभीर मरीजों में तेजी से सुधार आता है। अमेरिका में एंटीवायरल दवा रेमडेसिविर का कोरोना के इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है। अभी भारत में यह दवा सिर्फ कोरोना के गंभीर मरीजों को ही दी जाएगी। भारत में यह दवा अगले सप्ताह से उपलब्ध रहेगी। वैसे यह दवा इबोला वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए बनाई गई थी। अमेरिकी संस्था फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इमरजेंसी की स्थिति में इस दवा के प्रयोग की मंजूरी दी थी।

तेजी से किया जा रहा दवा का निर्माण

रेमडेसिविर दवा बनाने वाली कंपनी गीलीड साइंसेज के सीईओ डैन ओ का कहना है कि इस दवा का निर्माण कंपनी में काफी तेजी से चल रहा है ताकि अधिक से अधिक लोगों को इसे मुहैया कराया जा सके। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि कोरोना वायरस के संकट काल में इस दवा की कमी ना हो सके। उन्होंने कहा कि कंपनी कोरोना की वैक्सीन बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। कंपनी का कहना है कि अब तक दवा का करीब 15 लाख स्टाक था जो सरकार को दे दिया गया है जिससे काफी संख्या में लोगों का इलाज किया जा सकता है।

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नसों के जरिए होगा दवा का इस्तेमाल

भारतीय मूल के वैज्ञानिक अरुणा सुब्रमणियम और अन्य वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना के इलाज में यह दवा काफी प्रभावी साबित हुई है और इसके इस्तेमाल से कुछ मरीजों को तेजी से आराम मिला है। उनका कहना है कि कोरोना से गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों को इस दवा के इस्तेमाल से जल्द ही आराम मिल गया। इस दवा का इस्तेमाल नसों के जरिए किया जाएगा।

इबोला के मरीजों पर फेल हुआ था ट्रायल

रेमडेसिविर दवा इबोला के इलाज के लिए तैयार की गई थी मगर इबोला के मरीजों पर किए गए ट्रायल में यह दवा फेल साबित हुई थी। कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के बाद इसके मरीजों पर इस दवा का परीक्षण किया गया तो उसमें काफी हद तक सफलता मिली और इस कारण दुनिया भर में कोरोना के इलाज में जुटे डॉक्टरों को इस दवा से एक नई उम्मीद जगी है।

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काफी महंगा है इस दवा का एक डोज

विश्व स्वास्थ संगठन ने भी शुरुआती दौर में इस दवा के कोरोना मरीजों पर परीक्षण को सीमित असर वाला बताया था मगर अब वह भी इस दवा के क्लीनिकल ट्रायल के लिए तैयार बताया जा रहा है। इस दवा के साथ एक दिक्कत यह भी है कि इस दवा का एक डोज काफी महंगा है। दवा का एक डोज करीब 60000 रुपए का पड़ेगा। इस कारण भी इस दवा के इस्तेमाल को लेकर हिचकिचाहट महसूस की जा रही थी।

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Shivani Awasthi

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