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UP News: पुरानी फाइल से! भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में राजनीतिक विवशता बाधक

Corruption in UP: भ्रष्टाचार को रोकने और इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा विभिन्न मुहिमों का आयोजन किया जाता है। हालांकि, इस विरोधी मुहिम में राजनीतिक विवशता बाधक साबित हो रही है। बहुत से राजनीतिक दल इस मुहिम को अपने स्वार्थों के लिए उपयोग करते हैं

Yogesh Mishra
Published on: 11 May 2023 10:11 AM GMT
UP News: पुरानी फाइल से! भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में राजनीतिक विवशता बाधक
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Corruption in India (social media)

Corruption in UP: नई दिल्ली, 14 जुलाई, 2000, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्त भले ही प्रदेश में चलाई जा रही भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की सफलता के डंके पीट रहे हों । लेकिन प्रदेश के महामहिम राज्यपाल सूरजभान मानते हैं कि इस अभियान में राजनीतिक विवशता आड़े आ रही है। इतना ही नहीं महामहिम अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के विकास एवं संरक्षण के लिए मौजूदा कानूनों को एकदम अप्रासंगिक मानते हैं।
उनका कहना है कि ये कानून अब इन लोगों के हितों की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। संभवतः यही वजह है कि सूरजभान ने राज्यपालों के सम्मेलन में राष्ट्रपति के सामने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कल्याणार्थ एक समिति गठित करने की बात रखी। राज्यपाल ने दलित छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि आखिल दलित इस तरह की चालाकी को कब तक बर्दाश्त करेगा।
राज्यपाल सूरजभान इस बात से पूरी तरह अपनी असहमति जाहिर करते हैं कि राज्यपाल को केवल विवेकाधिकारों को काफी आगे तक ले जाते हैं। उन्होंने अपने ऊपर लगे राज्य सरकार के काम काज में हस्तक्षेप के आरोपों से सीधा इनकार किया । लेकिन यह भी कहा कि राज्यपाल को सुझाव देने से कतई पीछे नहीं रहना चाहिए।

राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार के बहुचर्चित धर्मस्थल विधेयक पर किए गए सवालों को टाल गए। पूछे जाने पर साफ करते हुए उन्होंने कहा कि इस मसले पर फैसला तो अब राष्ट्रपति को लेना है। ध्यान रहे कि राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश सरकार के धर्मस्थल विधेयक को राष्ट्रपति के पास काफी पहले भेज दिया है। तब से यह ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है।

राज्यपालों के सम्मेलन में भाग लेने आए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने आज दैनिक जागरण से हुई एक विशेष सचिव योगेंद्र नारायण ने उन्हें इस बात के लिए पूरी तरह आश्वस्त कर दिया है कि स्पेशल कंपोनेंट योजना पूरी तरह समूचे प्रदेश में लागू की जाएगी। इस योजना के तहत अनुसूचित जाति एवं जनजाति की आबादी के अनुपात में ही बजट का हिस्सा इन जातियों के कल्याणार्थ खर्च किया जाना चाहिए। राज्यपाल सूरजभान बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति की आबादी कुल आबादी का 21 फीसदी है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर दलित विरोधी होने का आरोप मढ़ते हुए उन्होंने कहा कि उनके शासनकाल में स्पेशल कंपोनेट योजना तो ठंडे बस्ते में डाल ही दी गई थी ।साथ ही दलित उत्पीड़न की स्थिति जताने के लिए 1994 एवं 1999 के जो आंकड़े दिये अए वह आधारहीन और गलत हैं।
उन्होंने राज्य सरकार पर परोक्ष रूप से यह आरोप मढ़ा कि इस समय भी दलित हितों की चिंता नहीं की जा रही है। उन्होंने शिक्षा विभाग का दृष्टांत देते हुए कहा कि प्रदेश में बहुसंख्य बोगस हरिजन विद्यालय चलाए जा रहे हैं। बोगस छात्रों का पंजीकरण दिखाकर फर्जी तौर पर छात्रवृत्तियां डकारी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि ये मामले तब प्रकाश में आए जब मैंने सरकार से जांच कराने को कहा। उन्होंने कहा कि जांच के दौरान फिरोजाबाद जिले में दो करोड़ और लखनऊ जिला में 78 लाख रूपये की हरिजन छात्रवृत्ति के घोटाले प्रकाश में आए हैं।

राज्यपाल ने कहा कि यह तो दो जिलों की स्थिति है। हमने कुल छह जिलों में जांच करने को सरकार से कहा था। राज्यपाल ने शैक्षिक संस्थानों में दलित छात्रों के साथ की जा रही ज्यादती का उल्लेख करते हुए कहा कि फैजाबाद कृषि विश्वविद्यालय में एक-एक विषय में टॉप करने वाले छात्रों को गोल्ड मेडल दिया गया । लेकिन 6 विषयों में टॉप करने वाले मुरेश को गोल्ड मेडल से वंचित रह जाना पड़ा । क्योंकि वह दलित छात्र है। उन्होंने बताया कि बाद में मुझे व्यक्तिगत तौर पर इस प्रकरण में हस्तक्षेप करना पड़ा और फिर मुकेश गोल्ड मेडल प्राप्त कर सका। राज्यपाल सूरजभान ने धमकी भरे लहजे में कहा कि आखिर दलित इस किस्म की चालाकी को कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे। राज्यपाल प्रदेश की कानून व्यवस्था को खराब नहीं मानते। वह कहते हैं कि अनुसूचित जाति और जनजातियों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए नया कानून बनाया जाना चाहिए। नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 एवं हरिजन उत्पीड़न विरोधी कानून 1989 को उन्होंने अप्रासंगिक बताते हुए खारिज किया।
राज्यपाल ने कहा कि वह इन अधिकारों की अप्रासंगिकता के संदर्भ में केंद्रीय गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से भी बात करेंगे। उन्होंने राज्यों के विकास में राज्यपालों की सहभागिता की वकालत करते हुए कहा कि राज्यपालों के पास भी दस करोड़ रूपये वार्षिक का विवेकाधीन कोष होना चाहिए। अपने चिरपरिचित अंदाज में उन्होंने एक शेर भी पढ़कर सुनाया-मैं तो, यूं ही रेत में फरी थी अंगुलियां, ये बात और है तेरी तस्वीर बन गई।
(मूल रूप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक- 15 जुलाई, 2000 को प्रकाशित)

Yogesh Mishra

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