TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Corruption in India: पुरानी फाइल से! भ्रष्टों के नाम सार्वजनिक करने की प्रक्रिया जारी रहेगी: विट्ठल

Corruption in India: विट्ठल ने बताया है कि भ्रष्टाचारियों के नामों को सार्वजनिक करने के प्रक्रिया जारी रहेगी। वह इसके लिए सरकार की सहायता और समर्थन का भी जिक्र करते हुए यह बताते हैं कि इस तरह की पहल भ्रष्टाचार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

Yogesh Mishra
Published on: 10 May 2023 12:29 AM IST
Corruption in India: पुरानी फाइल से! भ्रष्टों के नाम सार्वजनिक करने की प्रक्रिया जारी रहेगी: विट्ठल
X
Corruption in India (social media)

Corruption in India: नई दिल्ली, 16 मई, 2000, मुख्य सतर्कता आयुक्त एन. विट्ठल ने आज स्पष्ट रुप से कहा है कि भ्रष्ट अधिकारियों के नाम सार्वजनिक करने की प्रक्रिया जारी रहेगी। हालांकि कानूनी अधिकार न होने से आयोग कठोर नहीं उठा सकता।

आज दैनिक जागरण के साथ विशेष बातचीत में उन्हांेने स्वीकारा कि विभागीय सतर्कता प्रणाली में कई खामियां हैं, इसीलिए कार्रवाई में देरी होती। वेबसाइट पर भ्रष्ट अधिकारियों की सूची जारी करने के फैसले को पूरी जर सही ठहराते हुए कहते हैं कि अब आयोग अपनी सालाना रिपोर्ट में भी उन अधिकारियों के नाम घोषित करेगा जिनके खिलाफ कार्रवाई लंबित है। प्रस्तुत हैं उसने बातचीत के प्रमुख अंशः

सतर्कता आयोग को वैधानिक दर्जा मिलने में देरी क्यों हो रही है? वैधानिक दर्जे के बिना आयोग के आदेशों का कितना महत्व है?

सतर्कता आयोग को वैधानिक दर्जा देने का विधेयक संसद में लंबित है। इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंपा गया था। समिति ने भी अभी मंजूरी नहीं दी है। यदि इस सत्र के अंत तक समिति कीthe स्वीकृति मिल जाती तो इस मानूसन सत्र में संसद से मंजूरी संभव थी। लेकिन अभी संसदीय समिति ने कुछ और समय मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ओदश के अनुच्छेद 56 में यह बात स्पष्ट रुप से कही है कि कानून बनने तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश कानून के बराबर होगा.

संवधिान के अनुच्छेद 141 के तहत भी आयोग के वैधानिक अधिकारों पर कोई शक नहीं है। यदि सतर्कता आयोग को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत वैधानिक अधिकार प्राप्त हैं तो फिर आयोग ने अपनी वेबसाइट पर जिन भ्रष्ट अधिकारियों के नाम घोषित किये थे उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?

आप कैसे कह सकते हैं कि कार्रवाई नहीं हो रही है? पिछले सप्ताह एक अधिकारी के यहा अधिकारी के यहां छापा मारा गया। पहले चरण में हम विभागों को लिखकर भेजते हैं कि किन अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें है और उसके बाद हर माह विभागों को पत्र भेजकर याद दिलाया जाता है कि कार्रवाई की जाए। इन दोनोें चरणों की सूचना वेबसाइट पर दी गई।

(विभागों में कार्रवाई के लिए लंबित मामलों की एक सचूी दिखाते हुए) बार बार पत्र भेजने के बाद भी कइ्र्र विभाग कुछ नहीं कर रहे हैं, यह जरुर है। जैसे रेलवे में पांच साल से 403 मामलों में कार्रवाई लंबित है।
आप स्वयं यह मान रहे हैं कि सीवीसी के प्रयासों के बाद भी कार्रवाई में तेजी नहीं आ रही है। मतलब यह कि भ्रष्ट लोगों में कोई भय नहीं बन पा रहा है। कानून के तहत सतर्कता आयोग इससे आगे क्या कर सकता है।
यह सही है कि देरी के कारण भ्रष्ट अधिकारियों को बल मिलता है। वेबसाइट पर नाम घोषित करने की प्रक्रिया इसीलिए शुरू की गई है। अब तक आयोग की सालाना रिपोर्ट में यह जानकारी दी जाती थी कि किन विभागों में कार्यवाही के लिए कितने मामले लंबित हैं लेकिन अब आयोग अपनी सालाना रिपोर्ट में उन अधिकारियों के नाम देना भी शुरू करेगा जिनके खिलाफ कार्यवाही की सिफारिश की गई है। रही बात विभागों के खिलाफ कार्यवाही की, तो सतर्कता आयोग के आदेशों का पालन न करने वाले को अनुशासनहीनता के आरोप में दंडित किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए संसद से कानून की मंजूरी जरूरी है।

सतर्कता प्रणाली अपनी विश्वसनीयता लगातार खो रही है। आयोग पिछले 20 माह के आपके कार्यकाल के दौरान क्या बदलाव आया है?
पिछले 20 माह में आयोग ने विभाग की खरीद में टेंडर खुलने के बाद सौदेबाजी की प्रक्रिया पूरी बंद कराई। क्योंकि टेंडर खुलने के बाद सौदेबाजी में भ्रष्टाचार की शिकायतें सबसे ज्यादा थीं। अब कंपनियां भी यह जान गई हैं कि टेंडर खुलने के बाद कोई बात नहीं होगी। दूसरा आयोग ने यह आदेश दिया कि 25 लाख रूपये से ऊपर की धोखाधड़ी के मामलों में सभी बैंक रिजर्व बैंक के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान करें ताकि सभी बैंकों को पता चल सके कि धोखाधड़ी कौन कर रहा है। इसी तरह आर्थिक धोखाधड़ी रोकने के लिए हमने जनवरी 2000 तक सभी बैंकों के कंप्यूटरीकरण का आदेश दिया। जिसमें 70 फीसदी कंप्यूटरीकरण हो चुका है।

यह मान लिया जाए कि सतर्कता आयोग के स्तर पर स्थितियां बदली हैं लेकिन विभागों में सतर्कता के ढ़ांचे से भरोसा उठा है। विभागीय स्तर पर जांच और कार्यवाही में महीनों लग जाते हैं।
यह बात एक हद तक सही है। इसके लिए कल ही विभागों की यह निर्देश जारी किए गए हैं कि अब विभागीय सतर्कता अधिकारी, विभाग प्रमुख को रिपोर्ट भेजने के साथ उसकी एक कापी सतर्कता आयुक्त को भी भेजेंगे। यदि दो माह के भीतर कोई कार्यवाही नहीं होती तो आयोग इस मामले में पूछताछ करेगा। विभागीय सतर्कता ढ़ांचे के बारे में हम एक और फैसला कर चुके हैं कि अब किसी व्यक्ति के खिलाफ गुमनाम शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
प्रशासनिक भ्रष्टाचार का दायरा बहुत बड़ा है, नीतिगत स्तर पर इसे किस तरह की दूर किया जा सकता है।

इसे रोकने के लिए सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के बारे में हवाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो व्यवस्था दी है उसे पूरे प्रशासनिक ढ़ांचे में लागू किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सतर्कता आयोग सीबीआई की गतिविधियों की निगरानी करे। इसके अलावा सतर्कता आयोग की अध्यक्षता में संबंधित सचिवों की समिति बनाई जाए जो सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के पदों के लिए एक पैनल का चयन करें। कोर्ट ने कहा कि इस एजेंसियों के शीर्ष पदों पर कार्यकाल दो साल होना चाहिए और मुख्य सतर्कता आयुक्त की सलाह के बिना इनका तबादला न किया जाए।

ब्यूरोक्रेसी का राजनीतिकरण प्रशासनिक भ्रष्टाचार की वजह है लेकिन राजनीतिक भ्रष्टाचार?

राजनीतिक भ्रष्टाचार सतर्कता आयोग के दायरे में नहीं है। मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक और हमारी दौड़ प्रशासन तक। लेकिन यह सब जाते हैं कि जब तक राजनीति, ब्यूरोक्रेसी और व्यापार तीनों जब तक नहीं मिलते वित्तीय भ्रष्टाचार शुरू नहीं होता। आज जीडीपी का 35 फीसदी हिस्सा काले धन की अर्थव्यवस्था का है। इसे रोकने के लिए हमने किया क्या? एक वीडीआईएस ले आए। जिससे काम नहीं चलने वाला। इस पर सबको सोचना होगा। यदि कालाधन रोकने में कामयाबी मिल जाए तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है।
(मूल रुप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक 17 मई, 2000 को प्रकाशित)



\
Yogesh Mishra

Yogesh Mishra

Next Story