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उभरता अंडमानः सामरिक महत्व, भारत की एक्ट टु ईस्ट नीति
अंडमान-निकोबार के निवासियों के लिए भारत की मुख्य भूमि के मुकाबले इंडोनेशिया और थाईलैंड ज्यादा करीब हैं। अब तक भारत से लगभग कटे हुए इस हिस्से को अब मेनस्ट्रीम में लाने की कोशिश की जा रही है।
नई दिल्ली: अंडमान-निकोबार के निवासियों के लिए भारत की मुख्य भूमि के मुकाबले इंडोनेशिया और थाईलैंड ज्यादा करीब हैं। अब तक भारत से लगभग कटे हुए इस हिस्से को अब मेनस्ट्रीम में लाने की कोशिश की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 अगस्त 2020 को देश की पहली सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) का ऑनलाइन उद्घाटन कर इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
इस ऑप्टिकल फाइबर केबल लाइन का मुख्य उद्देश्य सुदूर अंडमान-निकोबार द्वीपसमूहों को देश के प्रमुख शहरों से जोड़ना है जिसमें चेन्नई जुड़ने वाला सबसे पहला बड़ा शहर है। 2300 किलोमीटर लंबी यह केबल लाइन न सिर्फ लंबाई और तकनीक की दृष्टि से, बल्कि इन द्वीपसमूहों को देश की मुख्य संचारधारा से जोड़ने के संदर्भ में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
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बढ़ रहा है अंडमान-निकोबार का महत्व (social media)
अंडमान-निकोबार के लिए यह एक बड़ी खबर है क्योंकि इस द्वीपसमूह के लोगों के लिए अब ऑनलाइन गतिविधियां जैसे ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली और बैंकिंग सुविधाएं, टेली-मेडिसिन, ऑनलाइन व्यापार और संचार काफी आसान बन जाएगा। आशा की जा रही है कि इन सुविधाओं से अंडमान-निकोबार का व्यापार और पर्यटन भी बढ़ेगा। यह सुविधा लॉन्च होने के कुछ ही दिनों के अंदर एयरटेल ने इस द्वीपसमूह में 4जी नेटवर्क भी लॉन्च कर दिया है।
हवाई नेटवर्क
पीएम मोदी ने कहा है कि अंडमान-निकोबार के 12 द्वीपों को जैविक उत्पादों, नारियल-संबंधी उद्योगों और समुद्री व्यापार के उच्च-प्रभाव वाले केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा। साथ ही उन्होंने द्वीपसमूहों के बीच 300 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय हाइवे के पूरा होने की आस भी जताई और कहा कि अंडमान-निकोबार को देश के अन्य शहरों से हवाई नेटवर्क से जोड़ कर इस क्षेत्र को पर्यटन का आकर्षण भी बनाया जाएगा।
37 बसे हुए द्वीपों समेत कुल 572 द्वीपों वाला अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के क्षेत्र में स्थित भारत की केंद्र सरकार के नियंत्रण में केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर आता है। पर्यावरण संरक्षण और वहां सदियों से बसी जनजातियों के हितों को देखते हुए अंडमान-निकोबार पर उतना ध्यान नहीं दिया गया।
एक नजर इतिहास पर
एक हजार साल पहले चोल राजा राजेंद्र चोल (1014-1042) ने अपने शासन काल में इन द्वीपसमूहों पर आधिपत्य स्थापित कर दक्षिण पूर्व एशिया पर नियंत्रण कायम रखा। इनमें श्रीविजय साम्राज्य के साथ चोल राजाओं के अभियानों का वर्णन अभिलेखों और यात्रा-वृतांतों में मिलता है।
सामरिक महत्त्व
रणनीतिक तौर पर अंडमान-निकोबार की महत्ता इस बात से समझी जा सकती है कि इस द्वीपसमूह का सबसे दूर का क्षेत्र इंडोनेशिया से मात्र 90 मील की दूरी पर है। यदि अंडमान-निकोबार के नजरिए से भारत के पड़ोसियों की गिनती की जाय तो श्रीलंका के अलावा इंडोनेशिया, थाईलैंड और म्यांमार भारत के सबसे नजदीक के पड़ोसियों में आते हैं। यह तीनों ही देश भारत की एक्ट ईस्ट नीति के अंतर्गत भी आते हैं। इस लिहाज से अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह भारत की एक्ट ईस्ट नीति के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के द्वार हैं।
बढ़ रहा है अंडमान-निकोबार का महत्व (social media)
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हिंद महासागर में बढ़ रहे खतरों जैसे समुद्री डकैती, गैरकानूनी हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी और तमाम गैर पारंपरिक सुरक्षा खतरों से लड़ने में और साथ ही दूसरे देशों के बढ़ते दबदबे से निपटने में भी एक विकसित और नेटवर्कड अंडमान-निकोबार का बड़ा योगदान हो सकता है। सागर (एसएजीएआर) नीति हो या इंडो-पैसिफिक, एक्ट ईस्ट हो या नेबरहुड - मोदी की विदेशनीति में समुद्री आयाम महत्वपूर्ण हैं और इन नीतियों के मनवांछित फल जितने मनमोहक हैं, उनको पाने का रास्ता उतना ही दुर्गम। देखना यह है कि अंडमान-निकोबार को भारत के हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक में गढ़ और बाजार बनाने की दिशा में लिया गया यह कदम किस हद तक सफल होता है।
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