×

डॉ शंकर दयाल शर्मा के लिए ओमान किंग ने तोड़े थे प्रोटोकॉल, इसलिए किया ये काम

भारत के नौवें राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा काम के प्रति बेहद संजीदा और प्रतिबद्ध रहा करते थे। वे संसद के नियमों व कानूनों का सख्ती से पालन करने के साथ ही उनका बेहद सम्मान करते थे। राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 1992 से 1997 तक रहा।

Newstrack
Published on: 26 Dec 2020 9:11 AM IST
डॉ शंकर दयाल शर्मा के लिए ओमान किंग ने तोड़े थे प्रोटोकॉल, इसलिए किया ये काम
X
डॉ शंकर दयाल शर्मा के लिए ओमान किंग ने तोड़े थे प्रोटोकॉल, इसलिए किया ये काम

लखनऊ: भारत के नौवें राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा काम के प्रति बेहद संजीदा और प्रतिबद्ध रहा करते थे। वे संसद के नियमों व कानूनों का सख्ती से पालन करने के साथ ही उनका बेहद सम्मान करते थे। राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 1992 से 1997 तक रहा। कार्यकाल समाप्त होने के लिए करीब दो वर्ष बाद 26 दिसंबर 1999 को उनका नई दिल्ली में निधन हुआ था। देश के प्रति उनकी उल्लेखनीय सेवाओं को आज भी याद किया जाता है। ओमान के दिवंगत सुल्तान काबूस बिन सईद के साथ डॉ शंकर दयाल शर्मा का एक दिलचस्प किस्सा जुड़ा हुआ है, जब सुल्तान काबूस ने सारे प्रोटोकॉल तोड़कर उनके लिए खुद कार चलाई थी।

1994 में किया था ओमान का दौरा

डॉ शंकर दयाल शर्मा ने राष्ट्रपति के रूप में 1994 में मस्कट का दौरा किया था। ओमान के किंग कभी भी विदेशी गणमान्य अतिथियों को लेने के लिए हवाई अड्डे पर नहीं जाते हैं मगर जब डॉ शंकर दयाल शर्मा मस्कट पहुंचे तो ओमान के सुल्तान काबूस राष्ट्रपति को लेने के लिए हवाई अड्डे पर खुद पहुंचे। जब डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा की फ्लाइट ओमान पहुंची तो सुल्तान खुद उनकी सीट तक गए राष्ट्रपति को उनकी सीट से उठाकर नीचे उतारा।

ओमान के सुल्तान खुद चलाने लगे गाड़ी

सुल्तान काबूस यहीं तक सीमित नहीं रहे। डॉक्टर शर्मा को लेने के लिए हवाई अड्डे पर पहुंची कार के साथ ड्राइवर भी था मगर ओमान किंग ने उसे ड्राइविंग छोड़ देने को कहा और राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा को बैठा कर खुद कार चला कर उन्हें ले गए। बाद में जब मीडिया के लोगों ने सुल्तान से सवाल दागा कि उन्होंने इतने सारे प्रोटोकॉल क्यों तोड़ दिए तो सुल्तान का जवाब था कि मैं डॉक्टर शर्मा को लेने हवाई अड्डे पर इसलिए नहीं गया क्योंकि वह भारत के राष्ट्रपति थे। मैंने भारत में पढ़ाई की है और जीवन में कई चीजें सीखी हैं। जब मैं पुणे में पढ़ाई कर रहा था तो डॉक्टर शर्मा मेरे प्रोफ़ेसर थे और इसी कारण मैंने उनके लिए सारे प्रोटोकॉल तोड़ दिए।

File Photo

ये भी पढ़ें: इन राज्यों में होगी भारी बारिश और बर्फबारी, चलेगी शीतलहर, पड़ेगी कड़ाके की ठंड

सुल्तान काबूस ने की थी पुणे में पढ़ाई

सुल्तान काबूस के पिता अजमेर के मेयो कॉलेज के छात्र रहे थे और उन्होंने अपने बेटे को भी पढ़ाई के लिए पुणे भेजा था। इस दिलचस्प प्रसंग को सुनाते हुए एक भारतीय अधिकारी ने मीडिया को बताया था कि भारत में छात्र जीवन के दौरान सुल्तान की बेहद खूबसूरत यादें जुड़ी रहीं और यही कारण है कि भारतीय समुदाय के लोगों के प्रति उनका हमेशा खासा लगाव रहा।

विद्वान राष्ट्रपति के रूप में डॉक्टर शर्मा की प्रतिष्ठा

डॉ शंकर दयाल शर्मा शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए रहे थे और उन्हें एक विद्वान राष्ट्रपति माना जाता था। उनका जन्म 19 अगस्त 1918 को भोपाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। राष्ट्रपति बनने से पूर्व देश के उपराष्ट्रपति भी रह चुके हैं डॉ. शर्मा ने पंजाब यूनिवर्सिटी, आगरा कॉलेज और लखनऊ विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। अपनी काबिलियत के बल पर उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से समाज सेवा में चक्रवर्ती स्वर्ण पदक भी हासिल किया था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय तथा कैंब्रिज में विधि का अध्यापन कार्य भी किया।

1940 में ली थी कांग्रेस की सदस्यता

स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने 1940 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। देश की आजादी के बाद वह 1952 में भोपाल के मुख्यमंत्री बनाए गए। वह इस पद पर 1956 तक रहे। 1960 के दशक में डॉ शंकर दयाल शर्मा ने कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने के लिए इंदिरा गांधी को पूर्ण समर्थन दिया। वे इंदिरा गांधी की सरकार में 1974 से 1977 तक संचार मंत्री भी रहे। 1971 और 1980 में उन्होंने भोपाल संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव जीता।

File Photo

चरमपंथियों ने कर दी थी बेटी व दामाद की हत्या

जिस समय वे आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे, उसी दौरान सिख चरमपंथियों ने दिल्ली में रह रहे उनके दामाद और बेटी की हत्या कर दी थी। 1985 से 86 तक वे पंजाब के राज्यपाल रहे। उस समय सिख चरमपंथियों और भारत सरकार के बीच लगातार बढ़ते तनाव की वजह से वहां हालात बहुत खराब थे। इसलिए उन्होंने पंजाब के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्हें महाराष्ट्र का गवर्नर बनाया गया। राज्यपाल के रूप में उनका यह अंतिम कार्यकाल था।

ये भी पढ़ें: दिल्ली में भयानक आग: जलकर राख हुई मास्क बनाने वाली फैक्ट्री, एक की मौत

उपराष्ट्रपति के बाद जीता राष्ट्रपति का चुनाव

1987 से 1992 तक वे रामास्वामी वेंकटरमण के कार्यकाल में भारत के उपराष्ट्रपति रहे और फिर 1992 में उन्होंने जार्ज स्वेल को हराकर राष्ट्रपति का चुनाव जीता। 1992 से 1997 तक उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया।जीवन के अंतिम दिनों में उनका स्वास्थ्य काफी खराब हो गया था। लगातार गिरते स्वास्थ्य के कारण वे काफी परेशान रहने लगे थे। आखिरकार 26 दिसंबर 1999 को दिल का दौरा पड़ने से उनका नई दिल्ली में निधन हो गया।

अंशुमान तिवारी

Newstrack

Newstrack

Next Story