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जमनालाल बजाजः जिन्होंने गांधी को पिता के रूप में गोद लिया था, बने पांचवें पुत्र

जमनालाल बजाज ने मात्र 17 साल की उम्र में अपने दत्तक पिता का कारोबार संभाल लिया और इसके बाद एक बाद एक कई कंपनियों की स्थापना की, जो आगे चलकर बजाज समूह कहलाया। बजाज ग्रुप आज देश के प्रमुख व्यवसायी घरानों में से एक है।

Ashiki
Published on: 11 Feb 2021 2:59 AM GMT
जमनालाल बजाजः जिन्होंने गांधी को पिता के रूप में गोद लिया था, बने पांचवें पुत्र
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जमनालाल बजाजः जिन्होंने गांधी को पिता के रूप में गोद लिया था, बने पांचवें पुत्र

रामकृष्ण वाजपेयी

जमनालाल बजाज कौन थे। शायद कई लोगों को नहीं पता होगा कि जमनालाल बजाज वह शख्सियत थी जिसने देश में तमाम कंपनियों की स्थापना की, जो बाद मे बजाज ग्रुप कहलाया। अब तो आप समझ गए होंगे हम किसकी बात कर रहे हैं। लेकिन इस बिजनेसमैन की एक खासियत और थी। आज के दौर में जब हम कुबेरपतियों की बात करते हैं। तो उनकी रईसी या दिखावे के लिए खबरें बनती हैं कि फलां उद्योगपति का घर ऐसा है। फलां उद्योगपति इतना पैसा सिर्फ अपने ऊपर खर्च करता है। किसी की रईसी के किस्से सुनकर लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।

गरीब परिवार में हुआ जन्म

लेकिन हम जिस उद्योगपति की बात कर रहे हैं उसमें ऐसी कोई खासियत नहीं थी। वह तो क्रांतिकारी, समाजसेवी और संत थे। इसीलिए गांधी के इतना प्रिय थे कि उन्हें गांधी का पांचवां पुत्र भी कहा गया। देश का यह उद्योगपति, मानवशास्त्री भी था। आज भी उनके द्वारा संचालित ट्रस्ट समाजसेवा के कामों में जुटा है। जयपुर रियासत के सीकर के गांव '"काशी का बास" में एक गरीब मारवाड़ी परिवार जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवम्बर 1889 को हुआ था। मजे की बात यह है कि इनकी स्कूली शिक्षा सिर्फ चौथी तक हुई थी। फिर अंग्रेजी आने का तो सवाल ही नहीं।

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13 साल की उम्र में शादी और 17 में संभाला पिता का कारोबार

वर्धा के एक निःसन्तान दम्पति ने जमनालाल की मां से वचन लेकर इन्हें गोद ले लिया। बाल-विवाह का दौर था इसलिए 13 साल की उम्र में ही इनकी शादी नौ साल की जानकी से हो गई। जमनालाल बजाज ने मात्र 17 साल की उम्र में अपने दत्तक पिता का कारोबार संभाल लिया और इसके बाद एक बाद एक कई कंपनियों की स्थापना की, जो आगे चलकर बजाज समूह कहलाया। बजाज ग्रुप आज देश के प्रमुख व्यवसायी घरानों में से एक है।

युवावस्था में ही जमनालाल के मन में वैराग्य ने जन्म लिया। आध्यात्मिक गुरु की खोज में वह किसी सच्चे कर्मयोगी गुरु की तलाश कर रहे थे। इस क्रम में उनकी पहली मुलाकात महामना पंडित मदनमोहन मालवीय से हुई। इसके बाद वह गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर के संपर्क में आए। इस यात्रा मे वह कई साधुओं और धर्मगुरुओं से भी मिले।

File Photo

मालवीय जी का जमनालाल पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह धीरे-धीरे स्वाधीनता आन्दोलन में जुड़ते चले गए। 1906 में जब बाल गंगाधर तिलक ने अपनी मराठी पत्रिका केसरी का हिन्दी संस्करण निकालने के लिए विज्ञापन दिया तो युवा जमनालाल ने एक रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलने वाले जेब खर्च से जमा किए गए सौ रुपए तिलक को दे आए।

महात्मा गांधी से प्रभावित

उस दौरान महात्मा गांधी द्वारा दक्षिण अफ्रीका में किए जा रहे सत्याग्रह की खबरें आम थी। जमनालाल बजाज इनको बहुत ध्यान देकर पढ़ते थे और गांधी से बिना मिले ही उनसे प्रभावित होते चले गए। गांधी में जमनालाल को सन्त रामदास के उस वचन की झलक मिली कि "उसी को अपना गुरु मानकर शीष नवाओ जिसकी कथनी और करनी एक हो"। जमनालाल को गांधी के रूप में अपना गुरु मिल गया और उन्होंने पूरी तरह से गांधीजी को अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।

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1915 में जब गांधी दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटे और उन्होंने साबरमती में अपना आश्रम बनाया तो जमनालाल ने वहां रहकर गांधीजी की कार्यप्रणाली और उनके व्यक्तित्व को समझा। उन्होंने महात्मा गांधी से वर्धा में आश्रम बनाने का आग्रह किया। जमनालाल बजाज के बहुत हठ करने पर उन्होंने 1921 में विनोबा भावे को वर्धा भेज दिया और कहा कि वे जाकर वहां के ‘सत्याग्रह आश्रम’ की जिम्मेदारी संभालें। विनोबा पूरे बजाज परिवार के कुलगुरु की तरह वहां जा बसे।

File Photo

गांधीजी का ‘पांचवां बेटा’ बनने की मांग

1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के दौरान जमनालाल ने एक अजीब सा प्रस्ताव महात्मा गांधी के समक्ष रखा। इसमें उन्होने गांधीजी से अनुरोध किया कि वे उनका ‘पांचवां बेटा’ बनना चाहते हैं और उन्हें अपने पिता के रूप में ‘गोद लेना’ चाहते हैं। पहले तो इस अजीब प्रस्ताव को सुनकर गांधीजी को आश्चर्य हुआ, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने इसपर अपनी स्वीकृति दे दी।

इसके बाद जमनालाल बजाज अपनी पत्नी के साथ पूरी तरह गांधी को समर्पित रहे। विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार में उन्होंने सबसे पहले अपने घर के कीमती और रेशमी वस्त्रों की होली जलाई। पत्नी जानकी देवी ने भी सोने और चांदी जड़े हुए अपने वस्त्रों को आग के हवाले कर दिया। दोनों ने आजीवन खादी पहनने का व्रत लिया।

11 फरवरी, 1942 को अकस्मात ही जमनालाल बजाज का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी जानकीदेवी ने स्वयं को देशसेवा में समर्पित कर दिया। विनोबा के भूदान आन्दोलन में भी वह उनके साथ रहीं।

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