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खो गया किसान: आंदोलन नहीं, रह गई है सिर्फ साजिश

तीन कानून की जगह अब बातचीत करने का मुद्दा आंदोलनकारियों का उत्पीड़न, इंटरनेट बहाल करना और बैरिकेडिंग हटाना बन गया है। विपक्ष भी इस गेम में प्लेयर बनकर किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर निशाना साध रहा है।

Shreya
Published on: 5 Feb 2021 11:40 AM IST
खो गया किसान: आंदोलन नहीं, रह गई है सिर्फ साजिश
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खो गया किसान: आंदोलन नहीं, रह गई है सिर्फ साजिश

रामकृष्ण वाजपेयी

नई दिल्ली: किसान आंदोलन अपने सबसे मुश्किल दौर में पहुंच गया है। सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर और टिकरी बार्डर धरना जरूर चल रहा है। राकेश टिकैत किसान आंदोलन का चेहरा बने हैं। लेकिन इस आंदोलन से किसान उसकी समस्याएं तीन नये कानून कहीं खो गए लग रहे हैं। रह गई है जिद, ताकत का प्रदर्शन, जनमत जुटाने की मुहिम और मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की साजिश। अमेरिका की प्रतिक्रिया का समर्थन करने के बाद भारत सरकार भी कहीं न कहीं इस साजिश का हिस्सा बनती दिखाई दे रही है।

केंद्र सरकार की कामयाबी

यानी इसे केंद्र सरकार की कामयाबी भी कहा जा सकता है कि उसने बड़ी सफाई से एक काल की दूरी को इतना लंबा बना दिया है कि तीन कानून की जगह अब बातचीत करने का मुद्दा आंदोलनकारियों का उत्पीड़न, इंटरनेट बहाल करना और बैरिकेडिंग हटाना बन गया है। विपक्ष भी इस गेम में प्लेयर बनकर किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर निशाना साध रहा है तो देश विरोधी ताकतों को भी इस आंदोलन के बहाने अपने हित साधने का मौका दिखाई दे रहा है।

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FARMERS PROTEST (फोटो- सोशल मीडिया)

किसान आंदोलन की इस दुर्दशा के लिए कहीं नहीं उसके नेता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। किसान आंदोलन के प्रवक्ता से उसका चेहरा बनने की राकेश टिकैत को कामयाबी जरूर मिली है लेकिन आंदोलन में दो कदम पीछे हटकर एक कदम आगे बढ़ने की रणनीति बनाने में वह विफल रहे।

इसी तरह ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा में भी गांधीवादी होकर उपवास तो किया लेकिन गांधी ने जिस तरह चौरीचौरा में हिंसा होने पर अपना आंदोलन वापस ले लिया था वह उदाहरण पेश करने में किसान नेता असफल रहे।

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RAKESH TIKAIT (फोटो- सोशल मीडिया)

टिकैत के बयानों को लेकर सवाल

राकेश टिकैत के बयानों को लेकर भी सवाल हैं उनके बयान या एलानों में स्थिरता का अभाव साफ दिखता है। अहिंसात्मक सत्याग्रह में दिल्ली में ट्रैक्टर परेड का रोड शो करने की क्या जरूरत आ पड़ी थी इसका किसान नेताओं के पास कोई जवाब नहीं है। इस दौरान हिंसा हुई तो इससे पल्ला झाड़ते हुए राकेश टिकैत व अन्य नेताओं ने भाजपा का हाथ बता दिया। लेकिन हिंसा में पकड़े गए लोगों को किसान नेता बताते हुए उनकी रिहाई की मांग रख दी।

उधर आंदोलन को राजनीतिक रूप देते हुए पंजाब सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों के केस लड़ने के लिए 70 वकीलों की टीम भेज दी। पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह कहा कि पंजाब सरकार ने दिल्ली में 70 वकीलों को नियुक्त किया है ताकि किसानों (Farmers) को कानूनी सहायता मिल सके। अमरिंदर ने कहा कि उनकी सरकार ने एक हेल्पलाइन नंबर 112 की भी घोषणा की है, जिस पर लोगों को गणतंत्र दिवस ट्रैक्टर परेड के बाद 'लापता व्यक्तियों' के बारे में रिपोर्ट करने के लिए कहा गया है।

अब सवाल यह है कि यदि किसान आंदोलन देश का प्रतिनिधित्व कर रहा है। ये किसान देश के किसान हैं तो कानूनी मदद पंजाब से क्यों? सवाल यह भी है कि लालकिले पर निशान साहब का झंडा क्यों फहराया गया किसान आंदोलन में धर्म-मजहब को क्यों शामिल किया गया, राकेश टिकैत इस पर मौन क्यों रहे।

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KISAN-ANDOLAN (फोटो- सोशल मीडिया)

अगर चक्का जाम हुआ फ्लॉप तो...

अब यही बात किसानों के 6 फरवरी के देशव्यापी चक्का जाम पर भी लागू होती है। किसान नेता इसे शक्ति प्रदर्शन मान रहे हैं लेकिन अगर इस दौरान हिंसा हुई तो कौन जिम्मेदारी लेगा। अगर ये चक्का जाम फ्लॉप होता है तो क्या किसान अपनी मांगें छोड़कर घर वापस लौट जाएंगे कि देश भर के किसानों का समर्थन नहीं मिला इसलिए वापस जा रहे हैं।

26 जनवरी की घटना के बाद से दिल्ली की सीमाओं पर और पूरे देश में पुलिस और सुरक्षाबल पूरी तरह से मुस्तैद हैं। किसान आंदोलन को समर्थन चाहे कितनी भी अतंरराष्ट्रीय हस्तियों हो विपक्ष हंगामा चाहे जितना कर ले। क्या इससे समाधान निकलेगा। समाधान के लिए तो बातचीत की टेबल पर ही आना पड़ेगा।

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