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वंदे मातरम को राष्ट्रगान घोषित करने की याचिका पर हाईकोर्ट कल करेगा सुनवाई
भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से ये याचिका दायर की गई है जिसमें ये कहा गया है कि देश की आजादी में वंदे मातरम का खास योगदान रहा है।
नई दिल्ली: देश में वंदे मातरम गीत गाये जाने को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। अब इसे राष्ट्रगान का दर्जा दिलाये जाने को लेकर मांग उठने लगी है।
इसी बीच दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिकाकर्ता ने याचिका दायर कर वंदे मातरम को राष्ट्रगान का दर्जा देने की मांग की गई है। याचिका में इस बात का उल्लेख किया गया है कि सभी स्कूलों में प्रतिदिन वंदे मातरम को अनिवार्य रूप से गाया जाये।
दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और न्यायाधीश सी हरिशंकर की बेंच कल मंगलवार को इस याचिका पर सुनवाई करेगी।
बताते चले कि भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से ये याचिका दायर की गई है जिसमें ये कहा गया है कि देश की आजादी में वंदे मातरम का खास योगदान रहा है।
सभी जाति और धर्म के लोगों वंदे मातरम गीत को गाकर आजादी की लड़ाई में अपनी भागीदारी निभाई थी। लेकिन दुर्भाग्य से देश के आजाद होने के बाद ‘जन गण मन’ को तो पूरा सम्मान दिया गया, लेकिन वंदे मातरम को भुला दिया गया।
राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ की तरह वंदे मातरम को लेकर कोई नियम भी नहीं बनाए गए। ये वजह है कि उन्होंने कोर्ट से मांग की है कि वंदे मातरम को देश का राष्ट्रगान घोषित किया जाए।
इसको गाने के लिए नियम बनाए जाएं और देश के सभी बच्चों में देशभक्ति की भावना पैदा करने के लिए प्रतिदिन स्कूलों में इसे गाना अनिवार्य किया जाए।
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कांग्रेस के अधिवेशनों में गाया जाता था
सन् 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने यह गीत गाया। पांच साल बाद यानी सन् 1901 में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में चरणदास ने इसे फिर गाया। 1905 के बनारस अधिवेशन में इस गीत को सरलादेवी चौधरानी ने स्वर दिया। बाद में कांग्रेस के कई अधिवेशनों की शुरुआत इससे हुई।
कब राष्ट्रगीत बना
आजादी के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में 24 जनवरी 1950 में 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने संबंधी वक्तव्य पढ़ा, जिसे स्वीकार कर लिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने वंदे मातरम संबंधी एक याचिका पर फैसला दिया था कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान तो करता है पर उसे गाता नहीं तो इसका मतलब ये नहीं कि वो इसका अपमान कर रहा है। इसलिए इसे नहीं गाने के लिये उस व्यक्ति को दंडित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
ज्ञात हो कि वंदे मातरम् इस देश का राष्ट्रगीत है अत: इसको जबरदस्ती गाने के लिये मजबूर करने पर भी यही कानून व नियम लागू होगा।
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आनंद मठ उपन्यास का अंश था
वंदेमातरम गीत को बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने संस्कृत बांग्ला मिश्रित भाषा में रचा था। जब 1882 में उनका उपन्यास आनन्द मठ प्रकाशित हुआ, उसमें इस गीत को उन्होंने रखा. बाद में अलग से काफी लोकप्रिय हो गया।
दूसरा सबसे लोकप्रिय गीत
वर्ष 2003 में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में जब दस मशहूर गीतों को चुना तो वंदे मातरम उसमं एक था। इसे दुनियाभर से करीब सात हजार गीतों में चुना गया था। इस सर्वे के मतदान में 155 देशों के लोगों ने हिस्सा लिया था। वंदे मातरम को उस समय नंबर दो पायदान पर रखा गया था।
वंदे मातरम का अर्थ
"वंदे मातरम्" का अर्थ है "माता की वन्दना करता हूँ"। ये पूरा गीत इस तरह है। इसका कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।
गॉड सेव द किंग" के जवाब में लिखा गया
दरअसल 1870-80 के दशक में ब्रिटिश शासकों ने सरकारी समारोहों में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से उन दिनों डिप्टी कलेक्टर रहे बंकिमचन्द्र चटर्जी को बहुत ठेस पहुंची।
उन्होंने इसके विकल्प के तौर पर 1876 में विकल्प के तौर पर संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से एक नये गीत की रचना की। उसका शीर्षक दिया - ‘वंदे मातरम्’
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अंग्रेज बैन करने के बारे में सोचने लगे थे
बंगाल में चले स्वाधीनता-आन्दोलन के दौरान विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए ये गीत गाया जाता था। धीरे-धीरे ये बहुत लोकप्रिय हो गया। ब्रिटिश सरकार तो इससे इतनी आतंकित हो गई कि वो इस पर प्रतिबंध लगाने के बारे में भी सोचने लगी।