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क्यों लेते हैं ऐसा फैसला: आईआरएस अधिकारी ने लगायी फांसी, मिला सुसाइड नोट

उन्होंने बेड शीट से पंखे में फंदा लगाकर आत्महत्या की। वह दिल्ली के आईटीओ स्थित आयकर विभाग के कार्यालय में कार्यरत थे। उनके पास से एक सुसाइड नोट मिला है जिससे पता चलता है कि वह अवसाद में थे।

SK Gautam
Published on: 27 May 2020 7:53 AM GMT
क्यों लेते हैं ऐसा फैसला: आईआरएस अधिकारी ने लगायी फांसी, मिला सुसाइड नोट
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नई दिल्ली: आजकल लोगों की जिंदगी तनाव में गुजर रही है इसके कई कारण हो सकते हैं। जिसकी वजह से लोग आत्महत्या जैसे फैसले कर बैठते हैं। एक ऐसी ही घटना देश की राजधानी दिल्ली के बापूधाम में रहने वाले आईआरएस अधिकारी केशव सक्सेना ने अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। बता दें कि वह प्रमुख सचिव के पद पर तैनात थे। उनके घर से एक सुसाइड नोट भी मिला है।

डीसीपी ईस्ट डॉ. ईश सिंघल ने बताया कि प्राइमस अस्पताल से उन्हें जानकारी मिली कि 57 वर्षीय केशव सक्सेना निवासी बापू धाम, चाणक्यपुरी को आज सुबह सात बजे उनकी पत्नी ने अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

आईटीओ स्थित आयकर विभाग के कार्यालय में कार्यरत थे, केशव सक्सेना

बताया जाता है कि उन्होंने बेड शीट से पंखे में फंदा लगाकर आत्महत्या की। वह दिल्ली के आईटीओ स्थित आयकर विभाग के कार्यालय में कार्यरत थे। उनके पास से एक सुसाइड नोट मिला है जिससे पता चलता है कि वह अवसाद में थे।

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सुसाइड अपने आप में एक कठिन विषय है।

विश्व में लगभग एक मिलियन लोग अब तक आत्महत्या कर चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक यह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी के रुप में सामने आएगा, जिससे की लोगों की जान को सबसे ज्यादा खतरा है। इसका सबसे बड़ा कारण अवसाद (डिप्रेशन) है। आज कल की भागदौड की जिन्दगी में इंसान का आपसी लोगों से तुलना इसका प्रमुख कारण है।

व्यक्ति को उसके इच्छा के अनुरूप चीजें नही मिलती हैं, तब वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। अगर सही समय पर इसका इलाज ना हुआ तो यह डिप्रेशन इतना बढ़ जाता है कि इसका परिणाम आत्महत्या भी हो सकता है।

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आत्महत्या से कैसे बचाव करें

रिसर्च में ये बात सामने आई है कि अगर कोई इन्सान अपनी परेशानी के बारे में किसी अपने रिश्तेदार या दोस्त को बताता है और उसकी बातों से यह पता चलता है कि वह आत्महत्या करना चाहता है, तो यह उस इन्सान की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह उस परिस्थिति को समझे और समय रहते अपने मित्र और रिश्तेदार को किसी मनोचिकित्सक की सलाह लेने को कहे।

"अगर बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों का किसी और बच्चें के साथ तुलना करते हैं, और बार-बार उन्हे दूसरों से बेहतर करने के लिए दबाव डालते हैं, तो ऐसी बातें बच्चों के बाल-मन पर गहरा प्रभाव डालती है। इसलिए बच्चों के साथ प्यार सें पेश आना चाहिए और उनके साथ तुलनात्मक व्यवहार नही करना चाहिए।"

SK Gautam

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