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दिल्ली से मुंबई व हावड़ा रूट पर 160 Km की रफ्तार से दौड़ेंगी ट्रेन, जानिए क्यों?
ऐसी क्रासिंगों पर ओवरब्रिज अथवा अंडरपास बनाकर खत्म किया जा रहा है। क्रासिंग हादसे खत्म करने के लिए क्रासिंगों की इंटरलॉकिंग भी की जा रही है। अब तक 11,552 लेवल क्रासिंगों की इंटरलॉकिंग की जा चुकी है।
नई दिल्ली रेलवे ने दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा रूट पर ट्रेनों की रफ्तार को 160 किलोमीटर तक बढ़ाने के लिए ट्रैक के दोनों ओर दीवार बनाना शुरू कर दिया है। इस क्रम में 3000 किलोमीटर की लंबाई में ट्रैक के दोनों ओर दीवार बनाने के ठेके पहले ही जारी किए गए हैं।
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सुरक्षा के लिए उठाए कदम
भविष्य में दोनों रूटों पर वंदे भारत जैसी सेमी-हाईस्पीड ट्रेनो के संचालन की योजना के तहत ट्रेनों को हादसों से बचाने तथा यात्रियों की सुरक्षा के लिए रेलवे ने अनेक कदम भी उठाए गए हैं। ट्रैक के दोनो ओर कंक्रीट की दीवारें खड़ी करने के ठेके दिया जाना उनमें से एक है। यही नहीं, ट्रैक के रखरखाव के काम मानवीय गलतियों को न्यूनतम करने के लिए मशीनों का उपयोग बढ़ा दिया गया है। जबकि चलती ट्रेनों में कोच और वैगन की यांत्रिक खामियों का पता लगाने के लिए ट्रैक पर ऑनलाइन मानीटरिंग आफ रोलिंग स्टॉक (ओएमआरएस) तथा ह्वील इंपैक्ट लोड डिटेक्टर (वाइल्ड) प्रणालियां लगाई जा रही हैं।
अब तक 7 जगहों पर ओएमआरएस लगाए जा चुके हैं, जबकि 2 और जगहों पर इन्हें लगाया जा रहा है। इसी प्रकार 17 स्थानों पर वाइल्ड लगा दिए गए हैं। दुर्घटना की स्थिति में यात्रियों को न्यूनतम चोट पहुंचे इसके लिए लंबी दूरी की सभी ट्रेनों में पुरानी आइसीएफ कोच की जगह पर लिंक हॉफमैन बुश (एलएचबी) कोच लगाने का अभियान छेड़ा गया है। कोच करखानो में अब सिर्फ एलएचबी कोच का उत्पादन हो रहा है। कोच के भीतर आग से सुरक्षा के लिए उन्नत क्वालिटी ज्वलनरोधी के इलेक्टि्रकल फिटिंग एवं फिक्स्चर्स का उपयोग किया जा रहा है।
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सिगनल प्रणाली के आधुनिकीकरण
आगामी सिगनल के प्रति लोको पायलट को पूर्व चेतावनी देने के लिए सिगनल से दो पोल पहले पहले इलेक्टि्रक पोल पर प्रकाश में चमकने वाले रिट्रो-रिफ्लेक्टिव सिग्मा बोर्ड लगाए जा रहे हैं। उत्तर भारत में कोहरे के दौरान सुरक्षित ट्रेन संचालन के लिए जीपीएस आधारित फॉग पास डिवाइस लगाई जा रही हैं। इससे ड्राइवर को आगे आने वाले सिगनल, क्रासिंग आदि की दूरी का अंदाजा लग जाता है।
हाल ही में रेलवे ने सिगनल प्रणाली के आधुनिकीकरण की पायलट योजना भी प्रारंभ की है। जिसके तहत बीना-झांसी समेत 640 किलोमीटर की कुल लंबाई वाले चार रूटों पर काम शुरू किया जा रहा है। इस प्रायोगिक परियोजना पर 1609 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है।
इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (एटीपी) सिस्टम, ट्रेन कोलीजन एवाइडेंस सिस्टम (टीकैस) तथा कैब सिगनलिंग (जिसमें लोको पायलट को केबिन के भीतर मानीटर पर सिगनल दिखाई देता है) जैसी आधुनिक प्रणालियों की कुशलता को आजमा कर देखा जाएगा और फिर संपूर्ण रेलवे में इन्हें अपनाया जाएगा।
इसके अलावा यात्रियों की सुरक्षा के कई अन्य उपाय भी किए गए हैं। ब्राडगेज लाइनों पर चौकीदार रहित क्रासिंगों को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। जबकि चौकीदार वाली क्रासिंगों को भी क्रमिक रूप से खत्म करने का अभियान शुरू करना शामिल है। इसके लिए ऐसी क्रासिंगों पर ओवरब्रिज अथवा अंडरपास बनाकर खत्म किया जा रहा है। क्रासिंग हादसे खत्म करने के लिए क्रासिंगों की इंटरलॉकिंग भी की जा रही है। अब तक 11,552 लेवल क्रासिंगों की इंटरलॉकिंग की जा चुकी है।