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कोहिनूर हीराः ये कहानी कर देगी रोंगटे खड़े, कैसे बना विक्टोरिया का ताज
बेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक था। कोहिनूर बेशक आज महारानी विक्टोरिया के हुजूर में पेश कर दिया गया। लेकिन क्या है उसकी कहानी कैसे बना था रणजीत सिंह के खजाने की रौनक।
बेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक था। कोहिनूर बेशक आज महारानी विक्टोरिया के हुजूर में पेश कर दिया गया। लेकिन क्या है उसकी कहानी कैसे बना था रणजीत सिंह के खजाने की रौनक। क्या थी रणजीत सिंह की इच्छा और कहां से आया था कोहेनूर हीरा। इन सब सवालों के जवाब मिलेंगे यहां।
कश्मीर को मुक्त कराने का अभियान
बात सन् 1812 की है। पंजाब पर महाराजा रणजीत सिंह का एकछत्र राज्य था। उस समय महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर के सूबेदार अतामोहम्मद के शिकंजे से कश्मीर को मुक्त कराने का अभियान शुरू किया था। इस अभियान से भयभीत होकर अतामोहम्मद कश्मीर छोड़कर भाग गया।
कश्मीर अभियान के पीछे एक अन्य कारण भी था। अतामोहम्मद ने महमूद शाह द्वारा पराजित शाहशुजा को शेरगढ़ के किले में कैद कर रखा था। उसे कैदखाने से मुक्त कराने के लिए उसकी बेगम वफा बेगम ने रणजीत सिंह से प्रार्थना की।
बेगम ने लाहौर आकर महाराजा रणजीत सिंह से प्रार्थना की और कहा कि मेहरबानी कर आप मेरे पति को अतामोहम्मद की कैद से रिहा करवा दें, इस अहसान के बदले बेशकीमती कोहिनूर हीरा आपको भेंट कर दूंगी।
अफगानिस्तान की शासिका
शाहशुजा के कैद हो जाने के बाद वफा बेगम ही उन दिनों अफगानिस्तान की शासिका थी। इसी कोहिनूर को हड़पने के लालच में भारत पर आक्रमण करने वाले अहमद शाह अब्दाली के पौत्र जमान शाह को स्वयं उसी के भाई महमूद शाह ने कैदखाने में भयंकर यातनाएं देकर उसकी आंखें निकलवा ली थीं।
जमान शाह अहमद शाह अब्दाली के बेटे तैमूर शाह का बेटा था, जिसका भाई था महमूद शाह। अस्तु, महाराजा रणजीति सिंह स्वयं चाहते थे कि वे कश्मीर को अतामोहम्मद से मुक्त करवाएं।
रणजीत सिंह ने बेगम की इल्तिजा पर मौका देखकर कश्मीर को आजाद करा लिया। उनके दीवान मोहकमचंद ने शेरगढ़ के किले को घेर कर वफा बेगम के पति शाहशुजा को रिहा कर वफा बेगम के पास लाहौर पहुंचा दिया।
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कोहिनूर हीरा भेंट करने का वादा
राजकुमार खड्गसिंह ने उन्हें मुबारक हवेली में ठहराया। पर वफा बेगम अपने वादे के अनुसार कोहिनूर हीरा महाराजा रणजीत सिंह को भेंट करने में विलम्ब करती रही। यहां तक कि कई महीने बीत गए।
इधर महाराजा ने शाहशुजा से कोहिनूर हीरे के बारे में पूछा तो वह और उसकी बेगम दोनों ही बहाने बनाने लगे। जब ज्यादा जोर दिया गया तो उन्होंने एक नकली हीरा महाराजा रणजीत सिंह को सौंप दिया, जो जौहरियों के परीक्षण की कसौटी पर नकली साबित हुआ।
इस पर रणजीत सिंह क्रोध से भर उठे और मुबारक हवेली घेर ली गई। दो दिन तक वहां खाना नहीं दिया गया। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह शाहशुजा के पास आए और फिर कोहिनूर के विषय में पूछा। उसने मुह नहीं खोला।
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पगड़ी में छिपाया कोहिनूर
धूर्त शाहशुजा ने कोहिनूर अपनी पगड़ी में छिपा लिया था। महाराजा को इसका पता चल गया। अत: उन्होंने शाहशुजा को काबुल की राजगद्दी दिलाने के लिए "गुरुग्रंथ साहब" पर हाथ रखकर प्रतिज्ञा की। फिर उसे "पगड़ी-बदल भाई" बनाने के लिए उससे पगड़ी बदल कर कोहिनूर प्राप्त कर लिया।
पर्दे की ओट में बैठी वफा बेगम महाराजा की चतुराई समझ गईं। लेकिन अब कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के पास पहुंच गया था और वे संतुष्ट थे कि उन्होंने कश्मीर को आजाद करा लिया था।
रणजीत सिंह की इच्छा थी कि वे कोहिनूर हीरे को जगन्नाथपुरी के मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान जगन्नाथ को अर्पित करें। परन्तु जगन्नाथ भगवान (पुरी) तक पहुंचने की उनकी इच्छा कोषाध्यक्ष बेलीराम की कुनीति के कारण पूरी न हो सकी।
रामकृष्ण वाजपेयी
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