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LAC पर आर्मी के लिए ये सुविधा: मिलेगा ख़ास जूस, सैनिकों की ऐसे मदद करेंगे ऊंट

लद्दाख में सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों के लिए ख़ास बंदोबस्त किया गया है। यहां सैनिकों को आवागमन, राशन सामग्री और हथियारों के सप्लाई के लिए ऊँट की व्यवस्था की जा रही है।

Shivani
Published on: 14 July 2020 6:53 PM GMT
LAC पर आर्मी के लिए ये सुविधा: मिलेगा ख़ास जूस, सैनिकों की ऐसे मदद करेंगे ऊंट
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लखनऊ: लद्दाख में सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों के लिए ख़ास बंदोबस्त किया गया है। यहां सैनिकों को आवागमन, राशन सामग्री और हथियारों के सप्लाई के लिए ऊँट की व्यवस्था की जा रही है। सैनिकों को थकान से बचाने के लिए ये ऊँट यातायात साधन और चीजों की आपूर्ति के लिए इस्तेमाल होते हैं। लेह में सैनिकों के लिए डीआरडीओ की एक लैब स्थित है। इस लैब से सैनिकों के लिए ताजे खाने की व्यवस्था की जाती है।

लद्दाख सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए ख़ास व्यवस्था

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, लद्दाख ने भारत- चीन सीमा पर तैनात सेना के लिए 1962 की जंग के बाद डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई ऑल्टिट्यूड रिसर्च (DIHAR या डिहार) की स्थापना की गयी थी, ये लेह में स्थित है। डिहार देश की रक्षा में जुटी सेना की सेवा के लिए काम करती है।

आर्मी की सेवा करता है DIHAR

लेह में स्थापित डीआईएचएआर भारतीय सेना की दो तरह से मदद करता है। दरअसल, लद्दाख ठंडा रेगिस्तान है, जहां सब्जी फल आदि मिलने मुश्किल होता है। ऐसे में देश की सुरक्षा कर रहे सैनिकों तक सब्जी और फल जैसी ताजी और स्वस्थ खाद्य सामग्री बिना रुकावट पहुँच सकें, इस बात को सुनिश्चित करना डीआईएचएआर का काम है।

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फ्रेश-फूड, फल, मीट होता है लैब में तैयार

यहां से पूर्वी लद्दाख के दूर-दराज इलाकों में चीन सीमा पर तैनात सैनिकों को फ्रेश-फूड, फल, मीट और खास तरह के सीबकथ्रोन-जूस मुहैया कराये जाते हैं। ताकि सैनिक स्वस्थ और एक्टीव रहें। वहीं विटामिन और एंटी-ऑक्सीडेंट भी उन्हें उपलब्ध कराया जाता है।

डीआईएचएआर ने की 101 तरह की सब्जियों की प्रजाति तैयार

बता दें कि देश के सबसे ऊंचाई वाला ये इलाक़ा देश के अन्य इलाकों से दूर हैं। यहां सैनिकों तक ताजा भोज पहुँचाना बड़ी चुनौती होती है। हालाँकि इस लैब में ऐसी सब्जियां और फलों को तैयार किया जाता है, जिन्हें लेह लद्दाख के स्थानीय लोग और किसान आसानी से उगा सकते हैं। डीआईएचएआर ने अब यहां 101 तरह की सब्जियों की प्रजाति तैयार की हैं। इनमें गोभी और कद्दू शामिल है, जिनका वजन भी मैदानी क्षेत्रों में उगाई गई सब्जियों से ज्यादा होता है।

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लैब इन सब्जियों के बीज स्थानीय किसानों और कॉपरेटिव सोसायटी को मुहैया कराती है। किसान इन बीजों के जरिये बड़े स्तर पर खेती कर सब्जियां और फल उगाते हैं जो सैनिकों तक पहुंचाई जाती है।

सीबकथ्रोन जूस करता हैं सैनिकों को थकान व तनाव दूर

इतना ही नहीं लद्दाख में ऐसा जंगली पेड़ पाया जाता है, जिसका फल एंटी-ऑक्सिडेंट का एक बड़ा स्रोत है।ये फल आंवले ‌से करीब दस गुना ज्यादा विटामिन-सी संचय करता है। इसे सीबरथ्रोन या फिर लेह-बेरी के नाम से भी जाना जाता है। लैब ने सीबकथ्रोन पर काफी रिसर्च के बाद इसके जूस को सैनिकों तक पहुँचाना शुरू किया है।

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ये खास तरीके का जूस सैनिकों को थकान और तनाव नहीं होने देता। लेह प्रशासन का होरटीकल्चर विभाग भी इसका जूस तैयार करता है‌। सैनिकों तक जूस बिना बाधा और बड़ा सप्लाई करने के लिए लैब प्राईवेट कंपनियों से संपर्क कर रही।

पैट्रोलिंग के लिए स्थानीय जानवरों को तैयार करती है लैब:

दरअसल, लैब उन जानवरों पर काम करती है, जिसके जरिये लद्दाख में दूर दराज तक सेना पेट्रोलिंग कर सकें। इनमे ऊँच और खच्चर शामिल हैं। घाटी के ख़ास तरिके के खच्चरों को पोनी कहा जाता है। कारगिल युद्ध में राशन और हथियार पहुंचाने का काम पोनी के जरिये होता था। वहीं लैब लद्दाख में सामान के सप्लाई के लिए डबल-हंप यानि ऊंटों पर काम कर रही है। ये ऊँट पूर्वी लद्दाख की सीमा पर सेना की यूनिट्स के साथ तैनात किये जाएंगे। इन्हे सेना का सामान ढोने की ट्रेनिंग दी जा रही है।

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