TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

दिवाली 2019: नहीं मिल रहे मन-मुताबिक पटाखे, जानिए कितने ‘ग्रीन’ हैं क्रैकर्स

जानकारी के लिए हम ये बताना चाहेंगे कि 90 डेसिबल को मानक माना जाता है। ऐसे में 125 डेसिबल नियमों के बाहर है। इसके अलावा ग्रीन क्रैकर्स को बनाने में कोई भी रसायन जैसे कि लिथियम, आर्सेनिक, लेड या पारा इस्तेमाल नहीं होता है।

Manali Rastogi
Published on: 26 Oct 2019 2:35 PM IST
दिवाली 2019: नहीं मिल रहे मन-मुताबिक पटाखे, जानिए कितने ‘ग्रीन’ हैं क्रैकर्स
X
दिवाली 2019: नहीं मिल रहे मन-मुताबिक पटाखे, जानिए कितने ‘ग्रीन’ हैं क्रैकर्स

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट प्रदूषण के चलते पटाखे जलाने पर पाबंदी लगा चुका है। ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और एनसीआर में पटाखे जलाने पर रोक है। वहीं, इस बार ग्रीन क्रैकर्स मार्केट में हैं, जिसमें सिर्फ फुलझड़ी और अनार को शामिल किया गया है। हालांकि, लोगों को मार्केट में ग्रीन क्रैकर्स भी नहीं मिल रहे हैं। ऐसे पटाखा दुकानदार भी इस बार खाली बैठे हुए हैं।

यह भी पढ़ें: पाकिस्तान को झटका: अभी-अभी पूर्व पीएम को पड़ा दिल का दौरा, हालत बेहद नाजुक

इस बार दिवाली में ग्रीन पटाखे अहम भूमिका निभा रहे हैं। ग्रीन क्रैकर्स न सिर्फ प्रदूषण कम पैदा करते हैं, बल्कि इनकी आवाज भी कम होती है, जिसकी वजह से ध्वनि प्रदूषण कम होता है। मगर इन पटाखों को लेकर भी लोग खुश नहीं हैं। ऐसे में बिना पटाखों के दिवाली का त्योहार थोड़ा फीका नजर आ रहा है। दरअसल अभी लोग इस बारे में कम जानते हैं कि ग्रीन पटाखे होते क्या हैं।

CSIR-NEERI वैज्ञानिकों ने बनाए ग्रीन क्रैकर्स

इसकी वजह से CSIR और NEERI के वैज्ञानिकों को यह परिभाषित करने का काम सौंपा गया था कि आखिर ग्रीन क्रैकर्स क्या होते हैं? साथ ही, CSIR और NEERI के वैज्ञानिकों को यह भी कहा गया था कि वह बताए कि इन पटाखों को बनाने में कितना समय लगता है। वहीं, CSIR और NEERI के वैज्ञानिकों ने इन पटाखों को तैयार किया और बताया कि सामान्य पटाखों की अपेक्षा ग्रीन पटाखों से 30% कम प्रदूषण होता है।

यह भी पढ़ें: दिवाली को पटाखा मुक्त बनाने के लिए निकली जागरूकता रैली निकाली

इसके अलावा ग्रीन क्रैकर्स को बनाने के लिए 230 एमओयू और 165 करार पर दस्तखत किए गए हैं। साल 2017 में इनको तैयार किया गया था। मगर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी कोलकाता में 'ग्रीन क्रैकर्स' उप्लब्ध नहीं हैं। सिर्फ कोलकाता ही नहीं बल्कि दिल्ली में भी यही आलम हैं।

इस तरह करनी है ग्रीन पटाखों की पहचान

ग्रीन पटाखों की पहचान करना काफी आसान है। दरअसल ग्रीन पटाखों में QR कोड लगा होता है। इसकी मदद से यह आसानी से पता चल जाएगा कि यह ग्रीन पटाखा है। हालांकि, इसके बाद भी मार्केट में प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे मौजूद हैं और इनको चोरी-छिपे बेचे जा रहे हैं।

कितने ग्रीन हैं ये पटाखे?

सबसे पहले हम आपको ये बताएंगे कि आखिर ग्रीन पटाखे या ग्रीन क्रैकर्स क्या होते हैं? ये पटाखे सामान्य पटाखों की तुलना में 30% कम प्रदूषण करते हैं। इन पटाखों को जलाने पर 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा होती है, जो कि कम प्रदूषण पैदा करता है। इन पटाखों की ध्वनि 160 डेसिबल से अब 125 डेसिबल की गयी है।

यह भी पढ़ें: कड़ा एक्शन संपत्ति पर! मोदी सरकार का बड़ा प्लान, अब इसके तहत होगा काम

हालांकि, जानकारी के लिए हम ये बताना चाहेंगे कि 90 डेसिबल को मानक माना जाता है। ऐसे में 125 डेसिबल नियमों के बाहर है। इसके अलावा ग्रीन क्रैकर्स को बनाने में कोई भी रसायन जैसे कि लिथियम, आर्सेनिक, लेड या पारा इस्तेमाल नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों के निर्माण के लिए बेरियम नाइट्रेट को भी बैन किया हुआ है। ऐसे में CSIR और NEERI ने पोटेशियम नाइट्रेट और जिओलाइट का इस्तेमाल किया।



\
Manali Rastogi

Manali Rastogi

Next Story