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वेंटिलेटर को कोरोना का इलाज मत समझिए, खतरनाक है ये खेल

लैंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन ने चीन के वुहान में एक अस्पताल में 52 गंभीर रूप से बीमार रोगियों को ट्रैक किया। इनमें 37 को मैकेनिकल वेंटिलेशन की जरूरत थी। 28 दिनों के बाद उन 37 रोगियों में से 30 की मृत्यु हो गई थी, और तीन वेंटिलेटर पर रहे।

राम केवी
Published on: 20 April 2020 11:37 AM GMT
वेंटिलेटर को कोरोना का इलाज मत समझिए, खतरनाक है ये खेल
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नई दिल्ली। दुनिया भर में कोरोना वायरस के प्रकोप के शुरुआती दिनों से ही सरकारों और अस्पतालों में वेंटिलेटर हासिल करने की आपाधापी मच गई। समझा गया कि पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर होने से लोगों की जान बच जाएगी। न्यूयॉर्क, मिलान, तेहरान, लोम्बार्दी, मैड्रिड आदि शहरों में वेंटिलेटर की भारी कमी बताई जा रही थी लेकिन वेंटिलेटरों की संख्या बढ्ने की बावजूद जैसे-जैसे मौत का सिलसिला बढ़ता रहा है उससे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि जब बीमारी घातक रूप ले लेती है तो ये उपकरण आमतौर पर किसी को वायरस से मरने से बचा नहीं सकते हैं।

वेंटिलेटर का अधिक उपयोग घटाता है जीवन

न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रू कुओमो मार्च में वेंटिलेटर की कमी का रोना रो रहे थे लेकिन अब उन्होने स्वीकार किया है कि, "आप जितने लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रहेंगे, वेंटिलेटर हटने की संभावना उतनी ही कम होती जाएगी।“ वैसे बहुत से मरीजों को सफलतापूर्वक वेंटिलेटर से हटाया गया है। लेकिन अगर वेंटिलेटर हों ही नहीं तो परिणाम और भी बदतर होंगे। लेकिन ये समझ लीजिये कि वेंटिलेटर अपने आप में कोई इलाज नहीं हैं।

निमोनिया की स्थिति

जब एक डॉक्टर कहता है कि एक मरीज को निमोनिया है तो इसका मतलब है कि फेफड़े संक्रमित हैं और उनमें सूजन है। इस हालत में हवा की थैली में मवाद या तरल पदार्थ भरना शुरू हो जाता है। ऐसी हालत में वे अब कोशिकाओं को ऑक्सीजन ट्रान्सफर नहीं कर सकती हैं। फेफड़ों में जितना कम जगह होगी उतना ही शरीर में कम ऑक्सीजन होगा।

एक और अधिक गंभीर स्थिति जो कोविड-19 रोगियों में सबसे अधिक देखी जा रही है, उसे एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम कहा जाता है। यह स्थिति तब भी हो सकती है जब किसी के फेफड़े बुरी तरह से घायल हो गए हों।

स्वस्थ फेफड़े

ऐसा हानिकारक रसायनों, पानी में डूबने और गंभीर निमोनिया के कारण हो सकता है। जब मरीज में ये सिंड्रोम विकसित होता है वायु थैली में तरल द्रव भर जाता है और ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट हो जाती है।

एक स्वस्थ फेफड़े की वायु थैली में एक चिकनी परत होती है जो थैली को आसानी से फुलाने और दबने में मदद करता है। एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम में ये चिकनी परत टूट जाती है, जिससे फेफड़े सख्त हो जाते हैं। सूजन के कारण हवा की थैलियों और उनके चारों ओर कोशिकाओं के जाल के बीच की खाई और बढ़ जाती है जिससे हालात और भी बदतर बन जाते हैं। इससे रक्त को ऑक्सीजन नहीं मिला पाती।

वेंटिलेटर कैसे काम करते हैं

वेंटिलेटर की श्वास ट्यूब गले में डालने से पहले मरीजों को सिडेटिव और दर्द निवारक दवाओं के जरिये सुला दिया जाता है। ट्यूब डालने के बाद भी मरीज को लगातार सुलाये रखा जाता है इसलिए रोगियों को कोई असुविधा महसूस नहीं होती है।

एक बार ट्यूब लगने के बाद, विंडपाइप के अंदर, इसके चारों ओर एक छोटा सा वाशर लगा दिया जाता है जिससे वायरल कण बाहर निकल नहीं पाते। फिर, वेंटिलेटर मशीन को चालू किया जाता है और रोगी के फेफड़ों के अंदर और बाहर ट्यूब के जरिये हवा को धक्का कर पहुंचाना शुरू हो जाता है।

वेंटिलेटर लाग्ने के बाद डाक्टरों को ये विकल्प मिल जाता है कि वे मरीज में ऑक्सीजन का स्तर और दबाव घटा-बढ़ा सकें। गहरी हांफती सांसों के बजाय छोटी सांसें लेने से क्षतिग्रस्त फेफड़ों की रक्षा करने में मदद मिलती है।

कोविड-19 के रोगियों की अलग है स्थिति

एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम कोविड-19 रोगियों में अलग स्थिति दिखाता है। एक डॉक्टर के अनुसार सिंड्रोम का मरीज सांस की हल्की तकलीफ से वेंटिलेटर की नौबत तक मात्र 12 घंटे में पहुँच सकता है। लेकिन कोविड-19 के मरीज में ये स्थिति धीरे-धीरे आती है। कोविड-19 के मरीज दो हफ्ते से ज्यादा समय तक वेंटिलेटर पर हो सकते हैं।

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डाक्टरों का कहना है कि सामान्य स्थिति में जब हम ट्यूब निकालते हैं, तो 10 में से एक मरीज में ट्यूब को वापस रखना पड़ता है। लेकिन कोविड-19 की स्थिति में एक तिहाई मरीजों में एक-दो दिन के भीतर ट्यूब वापस डालनी पड़ती है।

वेेंटिलेशन की जरूरत वाले 30 रोगी मर गए

लैंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन ने चीन के वुहान में एक अस्पताल में 52 गंभीर रूप से बीमार रोगियों को ट्रैक किया। इनमें 37 को मैकेनिकल वेंटिलेशन की जरूरत थी। 28 दिनों के बाद उन 37 रोगियों में से 30 की मृत्यु हो गई थी, और तीन वेंटिलेटर पर रहे।

जेएएमए पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य बड़े अध्ययन ने इटली के लोम्बार्डी क्षेत्र में आईसीयू में भर्ती गंभीर रूप से बीमार 1591 रोगियों को ट्रैक किया। 1,300 मरीजों में से 88 फीसदी को मेकेनिकल वेंटीलेशन और 11 फीसदी को नॉनइनवेजिव वेंटिलेशन पर रखा गया। इनमें से 26 फीसदी की मृत्यु हो गई थी, 16 फीसदी को छुट्टी दे दी गई थी और 58 फीसदी अभी भी आईसीयू में थे।

राम केवी

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