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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसलाः बहू के बताए अधिकार, सास-ससुर के घर पर रहने का हक

महिलाओं के अधिकारों से जुड़े महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा है कि परिवार की साझा संपत्ति और रिहायशी घर में भी घरेलू हिंसा की शिकार पत्नी को अधिकार मिलेगा।

Shivani
Published on: 16 Oct 2020 3:50 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसलाः बहू के बताए अधिकार, सास-ससुर के घर पर रहने का हक
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। महिलाओं के अधिकारों के संबंध में सुप्रीमकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला को अपने सास-ससुर के घर में रहने का पूरा अधिकार है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए तरुण बत्रा मामले में दो न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को पलट दिया है।

ससुराल की साझा संपत्ति में भी हक

महिलाओं के अधिकारों से जुड़े इस महत्वपूर्ण मामले में कोर्ट ने कहा है कि परिवार की साझा संपत्ति और रिहायशी घर में भी घरेलू हिंसा की शिकार पत्नी को अधिकार मिलेगा।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में साफ किया है कि पीड़ित पत्नी का अपने पति की अर्जित की गई संपत्ति पर तो अधिकार होगा ही मगर इसके साथ ही उसे अपने ससुराल की पैतृक और साझा संपत्ति यानी घर में भी रहने का कानूनी अधिकार होगा। शीर्ष अदालत ने घरेलू हिंसा कानून 2005 का हवाला देते हुए अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण बातें भी स्पष्ट की हैं।

पहले सुनाए गए फैसले को पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने तरुण बत्रा मामले में दो जजों की पीठ की ओर से सुनाए गए फैसले को पलट दिया है। दो जजों की पीठ ने 2006 में सुनाए गए अपने फैसले में कहा था कि कानूनन बेटियां अपने पति के माता-पिता के स्वामित्व वाली संपत्ति में रहने की हकदार नहीं है।

अब इस मामले में तीन जजों की पीठ की ओर से सुनाए गए फैसले में कहा गया है की पति की अलग-अलग संपत्तियों में ही नहीं बल्कि साझा घर में भी बहू को रहने का अधिकार है।‌ शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति के रिश्तेदारों के घर में भी रहने की मांग कर सकती है।

काफी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार

जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि इस देश में बड़े पैमाने पर घरेलू हिंसा के मामले हो रहे हैं और काफी संख्या में महिलाएं किसी न किसी रूप में हर दिन घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। हालांकि घरेलू हिंसा के इस तरह के मामले बेहद कम दर्ज किए जाते हैं।

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शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देने की क्षमता पर ही किसी भी समाज की प्रगति निर्भर करती है। देश के संविधान में महिलाओं को समान अधिकार के साथ ही विशेष अधिकार भी प्रदान किए गए हैं।

क्या था मामला

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला है जिस मामले में सामने आया है वह दिल्ली की एक पॉश कॉलोनी से जुड़ा हुआ है। यहां रहने वाले पति पत्नी के बीच शादी के कुछ वर्षों बाद ही अनबन शुरू हो गई और मामला तलाक तक पहुंच गया।

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महिला ने घरेलू हिंसा के तहत पति के साथ ही सास-ससुर के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करा दिया। इस दौरान ससुर ने अपने खरीदे हुए घर से महिला को चले जाने के लिए कहा। महिला के इनकार करने पर ससुर ने इस मामले में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। दूसरी ओर महिला का कहना था कि उसे अपने ससुर के घर में रहने का पूरा अधिकार है।

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