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नशे में पंजाब और बेबस कप्तान

seema
Published on: 10 Jan 2020 7:54 AM GMT
नशे में पंजाब और बेबस कप्तान
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दुर्गेश पार्थ सारथी

अमृतसर: पंजाब में वर्ष 2017 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गठन के तुरंत बाद गुटका साहिब पर हाथ रख कर चार सप्ताह में पंजाब से नशे का खात्मा करने की शपथ लेने वाले कप्तान साहिब आज खुद बहुत बेबस नजर आ रहे हैं। हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नशे पर नकेल कसने वाले पुलिस कर्मी भी नशे के इसी काले खेल में जुटे हुए हैं।

केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक ड्रग्स की तस्करी के सबसे ज्यादा मामले पंजाब में पाए गए हैं। इसी राज्य में सर्वाधिक गिरफ्तारियां हुईं हैं। गत वर्ष लोक सभा में गृहमंत्रालय की ओर से पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में 2018 में ड्रग्स तस्करी में 13,743 लोग गिरफ्तार किए गए। इसके बाद दूसरे नंबर केरल रहा जहां 9,862 तस्कर पकड़े गए। तीसरे नंबर देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश रहा। यहां 8,395 तस्करों को सलाखों के पीछे पहुंचाया गया। पिछले ढाई साल में पंजाब में नशे से मरने वालों की संख्या 160 से अधिक हो गई है।

बना था चुनावी मुद्दा

2015 में ड्रग्स तस्करी पंजाब की राजनीति में सबसे बड़ा मुद्दा बना था। इस मुद्दे पर पंजाब के राजनीतिक दल एक दूसरे को घेरते रहे। लेकिन, सफलता किसी भी दल को नहीं मिली। विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने भी नशे को मुद्दा बनाया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नशे की भेंट चढ़े युवाओं के परिजनों से मिल कर तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और मजीठिया को घेरने की खूब कोशिश की थी। लेकिन चुनाव बाद यह सारे मुद्दे और दावे और वादे धरे के धरे रह गए। करीब 6 हजार करोड़ रुपए के ड्रग्स रैकेट में पंजाब पुलिस के पूर्व डीएसपी जगदीश भोला का नाम सामने आया था। पकड़े जाने पर भोला ने तत्कालीन राजस्व मंत्री और शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के साले बिक्रम मजीठिया का नाम लिया था। इसके बाद उस समय पंजाब की राजनीति में भूचाल आ गया था। आंकड़े बताते हैं भयावहता।

बनाई गई एसटीएफ

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह की सरकार ने सत्तासीन होते ही चार सप्ताह में पंजाब में नशे की कमर तोडऩे की कसम खाने खाई थी। राज्य सरकार ने वर्ष २017 में नशा तस्करों पर नकेल कसने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया। 2017 में ही प्रदेश में 13,958 तस्कर पकड़े गए। इन्हें मिला कर गत चार सालों में पंजाब में 46,909 तस्कर पकड़ जा चुके हैं। इनमें कुछ नाइजीरियन भी शामिल हैं। 2017 में 406 किलो हेरोइन, वर्ष 2018 में 481 किलो हेरोइन, चूरा पोस्त और अफीम बरामद की गई। इसी साल 57.408 किलो भुक्की भी पकड़ी जा चुकी है।

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तस्करी में बदनाम है गांव देसुजोधा

पंजाब-हरियाणा की सीमा से सटे डबवाली का गांव देसुजोधा ड्रग्स की तस्करी के लिए कुख्यात है। पंजाब में ड्रग्स की तस्करी के लिए 120 थाना क्षेत्र अतिसंवेदनशील हैं। इनमें में से दो थानों, रामां व तलवंडी साबो के करीब 80 से ज्यादा गांव में नशे की सप्लाई के मेन रूट का काम कदेसुजोधा गांव कर रहा है। या। देसुजोधा गांव के 18 से 25 साल तक के 70 फीसदी से अधिक युवा नशे की चपेट में हैं। यहां पहले भुक्की व अफीम की तस्करी होती थी, अब नशीली गोलियां व चिट्टे का कारोबार होता है। 1400 परिवारों वाले इस गांव पर 250 से ज्यादा नशा तस्करी के केस डबवाली सिटी थाने में दर्ज हैं। यहां नशा तस्करों के हौसले इतने बुलंद हैं कि गांव में पंचायत की तरफ से दो बार बनाई गई नशा रोकू कमेटी के पदाधिकारियों पर ही गांव के तस्करों ने हमले कर दिए। जब पंजाब पुलिस ने गांव से तस्कर को उठाने का प्रयास किया तो उनके हथियार छीनकर डंडों से पीटा और घसीटा गया। घटना के बाद एसडीएम डबवाली ने ग्राम पंचायत को गांव में पुलिस चौकी खोलने का प्रस्ताव पास करने के निर्देश दिए हैं। वहीं, गांव में गैंगस्टरों को पनाह देने के भी केस दर्ज हैं। गांव के प्रधान राजविंदर सिंह पर नशा तस्करों ने जानलेवा हमला किया था। इसमें तस्कर कुलविंदर सिंह किंदा और उसके भाई पर केस भी दर्ज किया गया। लेकिन, बाद में समझौता हो गया।

गैंगस्टर भी लेते रहे हैं शरण

बठिंडा का गैंगस्टर रम्मी मछाना व फिरोजपुर का नाभा जेल ब्रेक में नामजद गैंगस्टर गुरप्रीत सेखों भी देसुजोधा गांव में शरण लेते रहे हैं। मई 2019 में चिट्टे के साथ गांव के ब्लॉक समिति सदस्य सतपाल को गिरफ्तार किया था। इसके बाद वह जमानत पर छूट गया। यही हाल तरनतारन, फिरोजपर और पठानकोट-हिमाचल प्रदेश की सीमा पर लगते गांव छन्नीबेली का भी है।

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स्वीडन से लौटे बेटे ने नशे के लिए कर दी मां की हत्या

पंजाब में नशा इस कदर हावी है कि नशे की पूर्ति के लिए किसी की हत्या करने से भी किसी को कोई गुरेज नहीं है। सितंबर 2019 में मोगा जिले के गांव हिम्मतपुर में स्वीडन से लौटे एक नशेड़ी बेटे ने अपनी विधवा मां परमजीत कौर की हत्या इसलिए कर दी कि वह उसे नशे के लिए पैसे नहीं दे रही थी। परमजीत ने अपना घर गिरवी रख कर बेटे सतविंदर सिंह को स्वीडन भेजा था। वारदात से कुछ माह पहले ही वह घर लौटा था और यहां आते ही नशे का आदी हो गया था।

मां ने बेटी को बांधा जंजीरों से

अगस्त 2019 में अमृतसर की एक कॉलोनी में रह रही एक मां को अपनी बेटी को जंजीरों से बांधना पड़ा क्योंकि बेटी नशे की आदी थी। मां के अनुसार उसकी बेटी ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर चंडीगढ़ में नौकरी करती थी। इसी दौरान उसे नशे की लत लग गई। तनख्वाह के पैसे खत्म हो जाने पर उसने घर के सामान तक बेच कर नशा करना जारी रखा। उसे नशा छुड़ाओ केंद्र भी भेजा गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए वह अपने बेटी को जंजीरों में बांध कर रखने लगी।

भतीजी को नशेड़ी बना मिटाता रहा हवस

वर्ष 2018 में पंजाब के होशियारपुर जिले में एक शख्स अपनी सगी भतीजी को नशेड़ी बना उसके साथ हवस की भूख मिटाता रहा। नाबालिग पीडि़ता ने पुलिस को बताया कि साल 2016 में एक दिन उसके सिर में दर्द हो रहा था। उसके चाचा ने सिर दर्द ठीक करने की दवा नाक के रास्ते दी। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि उसका सगा चाचा उसे हेरोइन दे रहा है। पीडि़ता ने जो बयान दिया था उसके मुताबिक जब वह नशे के आगोश में चली जाती तो आरोपी चाचा उसके साथ संबंध बनाता था। वह उसकी अश्लील विडियो बना उसे ब्लैकमेल करने लगा। फिलहाल चाचा जेल में है और पीडि़ता नशा मुक्ति केंद्र में।

यहां एएसआई और सिपाही दोनों करते हैं नशा

नवंबर 2019 में तरनतारन जिले के एक थाने का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एएसआई और थाने का सिपाही दोनों हेरोइन पीते दिखाई पड़ रहे थे। मामला सामने आते ही आरोपित दोनों पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया था। इसके बाद पंजाब सरकार ने पुलिस कर्मियों का डोप टेस्ट करवाना शुरू दिया जिसमें भारी संख्या पुलिस कर्मी नशेड़ी पाए गए।

22 जिलों में 200 से अधिक नशा छुड़ाओ केंद्र

प्रदेश सरकार ने पंजाब के 22 जिलों में दो सौ से अधिक नशा मुक्ति केंद्र खोल रखे हैं। इन केंद्र में नशेडिय़ों को रख कर उनका उपचार किया जाता है। सरकार ने नशा छोडऩे की इच्छा रखने वाले युवाओं को सिविल अस्पतालों से परामर्श और दवा की व्यवस्था भी कर रखी है। ऐसे युवाओं के नाम गुप्त रखे जाते हैं।

नशे की लत के लिए अशिक्षा सबसे बड़ा कारण है।ज्यादातर नशेड़ी बार्डर जोन के हैं। यहां सीमापार से नशा आता है। तस्कर भी बार्डर इलाके हैं। पाकिस्तान की सीमा से लगते सरकारी स्कूलों में कोई शिक्षक जाने को तैयार नहीं होता। अत: यहां शिक्षा का स्तर सबसे कम है।

- डॉक्टर मनप्रीत कौर,

जलियांवालाबाग मेमोरियल सिविल अस्पताल, अमृतसर

'बार्डर के लोग हमेशा आशंकित और असुरक्षित रहते हैं। उन्हें तरह-तरह की आशंकाएं घेरी रहती हैं। इन इलाकों में रोजगार के साधन भी कम हैं। ऐसे में युवा नशे के चंगुल में फंस जाते हैं। नशे से दूर रहे के लिए शिक्षित होना आवश्यक है।'

- डॉ. संदीप कौर

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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