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दशहरा या विजयादशमी-अच्छाई की बुराई पर विजय का पर्व

दशहरा या विजयादशमी सर्वसिद्धिदायक तिथि मानी जाती है। इसलिए इस दिन सभी शुभ कार्य फलकारी माने जाते हैं। दशहरा के दिन बच्चों का अक्षर लेखन, घर या दुकान का निर्माण, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण, अन्नप्राशन, कर्ण छेदन, यज्ञोपवीत संस्कार और भूमि पूजन आदि कार्य शुभ माने गए हैं।

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Published on: 25 Oct 2020 1:55 PM IST
दशहरा या विजयादशमी-अच्छाई की बुराई पर विजय का पर्व
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दशहरा या विजयादशमी-अच्छाई की बुराई पर विजय का पर्व (Photo by social media)

नई दिल्ली: अश्विन मास की दशमी तिथि को पूरे देश में दशहरा या विजयादशमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। दुर्गा पूजा की दशमी तिथि को मनाया जाने वाले दशहरा बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। कहा जाता है कि दशहरा या विजयादशमी के दिन बिना शुभ मुहूर्त भी शुभ कार्यों को किया जा सकता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन किए गए नए कार्यों में सफलता हासिल होती हैं। विजयादशमी या दशहरा के दिन श्रीराम, मां दुर्गा, श्री गणेश और हनुमान जी की अराधना करके परिवार के मंगल की कामना की जाती है। मान्यता है कि दशहरा के दिन रामायण पाठ, सुंदरकांड, श्रीराम रक्षा स्त्रोत करने से मन की मुरादें पूरी होती हैं।

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मांगलिक कार्यों के लिए शुभ दिन

दशहरा या विजयादशमी सर्वसिद्धिदायक तिथि मानी जाती है। इसलिए इस दिन सभी शुभ कार्य फलकारी माने जाते हैं। दशहरा के दिन बच्चों का अक्षर लेखन, घर या दुकान का निर्माण, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण, अन्नप्राशन, कर्ण छेदन, यज्ञोपवीत संस्कार और भूमि पूजन आदि कार्य शुभ माने गए हैं। विजयादशमी के दिन विवाह संस्कार को निषेध माना गया है।

तिथि और मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, इस साल दशहरा या विजयादशमी का त्योहार 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा। दशहरा हर साल दीपावली से ठीक 20 दिन पहले मनाया जाता है। हालांकि इस साल नवरात्रि 9 दिन के न होकर 8 दिन में ही समाप्त हो रहे हैं क्योंकि इस साल अष्टमी और नवमी का एक ही दिन पड़ रही है। 24 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 58 मिनट तक ही अष्टमी है, उसके बाद नवमी लग जाएगी। जिसके चलते दशहरा 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

दशमी तिथि प्रारंभ - 25 अक्टूबर को सुबह 07:41 मिनट से

विजय मुहूर्त - दोपहर 01:55 मिनट से 02 बजकर 40 तक।

अपराह्न पूजा मुहूर्त - 01:11 मिनट से 03:24 मिनट तक।

दशमी तिथि समाप्त - 26 अक्टूबर को सुबह 08:59 मिनट तक रहेगी।

अपराजिता देवी की पूजा

मान्यता है कि लंका विजय से पूर्व भगवान श्री राम ने अपराजिता देवी की पूजा की थी। इस पूजन का उद्देश्य सभी दिशाओं में विजय प्राप्ति से था। अपराजिता देवी के नाम से ही ज्ञात होता है कि यह वे देवी हैं, जिनको कोई पराजित नहीं कर सकता है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को विजय मिलने की संभावना बढ़ जाती है। दशहरा वाले दिन, जिसे दुर्गा विसर्जन का दिन भी कहा जाता है, अपराजिता देवी की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि अपराजिता देवी की आराधना के बिना नवरात्रि की पूजा रह जाती है।

विजयादशमी के दिन भगवान राम की पूजा करने से पूर्व ही अपराजिता देवी की पूजा कर लेनी चाहिए, इसके लिए अपराह्न का समय उत्तम माना जाता है। पूजा के समय देवी सूक्तम का पाठ अवश्य करें। इसके बाद ओम अपराजितायै नम: मंत्र का जाप कम से कम 11 बार कर सकते हैं। इस आप देवी कवच और अर्गला स्तोत्र का पाठ भी करें तो उत्तम है।

पौराणिक कथा

भारत वर्ष में मनाये जाने वाले त्यौहार किसी न किसी रूप में बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देते हैं और जिस त्यौहार को इस संदेश के लिये ख़ास तौर पर जाना जाता है वह है दशहरा। यह त्यौहार भगवान श्री राम की कहानी तो कहता ही है जिन्होंने लंका में 9 दिनों तक लगातार चले युद्ध के पश्चात अंहकारी रावण को मार गिराया और माता सीता को उसकी कैद से मुक्त करवाया। वहीं इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार भी किया था इसलिये भी इसे विजयदशमी के रुप में मनाया जाता है और मां दुर्गा की पूजा भी की जाती है।

माना जाता है कि भगवान श्री राम ने भी मां दुर्गा की पूजा कर शक्ति का आह्वान किया था। भगवान श्री राम की परीक्षा लेते हुए मां पूजा के लिये रखे गये कमल के फूलों में से एक फूल को गायब कर दिया। चूंकि श्री राम को राजीवनयन यानी कमल से नेत्रों वाला कहा जाता था इसलिये उन्होंने अपना एक नेत्र मां को अर्पण करने का निर्णय लिया। ज्यों ही वे अपना नेत्र निकालने लगे, देवी प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रकट हुईं और विजयी होने का वरदान दिया।

माना जाता है इसके पश्चात दशमी के दिन प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया। भगवान राम की रावण पर और माता दुर्गा की महिषासुर पर जीत के इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई और अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में देशभर में मनाया जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे मनाने के अलग अंदाज भी विकसित हुए हैं। कुल्लू का दशहरा देश भर में काफी प्रसिद्ध है तो पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा सहित कई राज्यों में दुर्गा पूजा को भी इस दिन बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

शस्त्र पूजा

दशहरे के दिन शस्त्र पूजा का विधान है। सनातन परंपरा में शस्त्र और शास्त्र दोनों का बहुत महत्व है। शास्त्र की रक्षा और आत्मरक्षा के लिए धर्मसम्मत तरीके से शस्त्र का प्रयोग होता रहा है। प्राचीनकाल में क्षत्रिय शत्रुओं पर विजय की कामना लिए इसी दिन का चुनाव युद्ध के लिए किया करते थे। पूर्व की भांति आज भी शस्त्र पूजन की परंपरा कायम है और देश की तमाम रियासतों और शासकीय शस्त्रागारों में आज भी शस्त्र पूजा बड़ी धूमधाम के साथ की जाती है।

शमी वृक्ष का पूजन

असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक इस पर्व के दौरान रावण दहन और शस्त्र पूजन के साथ शमीवृक्ष का भी पूजन किया जाता है। संस्कृत साहित्य में अग्नि को ‘शमी गर्भ’ के नाम से जाना जाता है। खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है। महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष पर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी।

जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है

विक्रमादित्य के समय में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने भी अपने ‘बृहतसंहिता’ नामक ग्रंथ के ‘कुसुमलता’ अध्याय में वनस्पति शास्त्र और कृषि उपज के संदर्भ में जो जानकारी प्रदान की है उसमें शमीवृक्ष अर्थात खिजड़े का उल्लेख मिलता है। वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपदा का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाले संकट का सामना कर सकता है।

विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष का पूजन अवश्य किया जाना चाहिए। विजयदशमी के मौके पर कार्य सिद्धि का पूजन विजय काल में फलदायी रहेगा। इस दौरान प्रार्थना कर शमी वृक्ष की कुछ पत्तियां तोड़े और उन्हें घर के पूजाघर में रख दें। लाल कपड़े में अक्षत, एक सुपाड़ी के साथ इन पत्तियों को बांध लें। इसके बाद इस पोटली को गुरु या बुजुर्ग से प्राप्त करें और प्रभु राम की परिक्रमा करें।

dussehra fair dussehra fair (Photo by social media)

विजयदशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन शुभ होते हैं

विजयदशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन शुभ होते हैं। दशहरे पर अशमंतक अर्थात कचनार का वृक्ष लगाने का विशेष महत्व है। इसकी नियमित पूजा से परिवार में सुख-शांति आती है। विजयदशमी पर अपराजिता के पूजन का भी महत्व है। आत्मविश्वास की कमी होने पर अपराजिता की पत्तियों को हल्दी से रंगे, दूर्वा और सरसों को मिलाकर एक डोरा बना लें और उस डोरे को दाहिने हाथ में बांध लें। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है।

विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष के समीप जाकर उसे प्रणाम करें। पूजन के उपरांत हाथ जोड़कर निम्न प्रार्थना करें-

'शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।

अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।

करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।

तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।'

दशहरा पर जलेबी और गुलगुले

पूरे देश में दशहरा धूम-धाम से मनाने के साथ ही कुछ पंरपराए भी चली आ रही है, जैसे कि कई राज्यों में दशहरा के दिन जलेबी या गुलगुले खाने का चलन है। विजयदशमी पर लोग जलेबी जरूर खाते हैं, घरों में गुलगुले भी बनाए जाते हैं। दरअसल इसके पीछे यह मान्‍यता है कि भगवान राम को शश्कुली नामक मिठाई बहुत पसंद थी और ऐसा माना जाता है कि जलेबी इसी मिठाई का रूप है। जहाँ तक गुलगुले की बात है तो भारत में शुभ अवसरों पर गुड़ के गुलगुले बनाने की परम्परा रही है दशहरा पर जलेबी क्यों खाई जाती है

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पूरे देश में इसे धूम-धाम से मनाने के साथ ही कुछ पंरपराए भी चली आ रही है, जैसे की कई राज्यों में दशहरा के दिन जलेबी खाने का चलन है। विजयदशमी पर लोग जलेबी जरूर खाते हैं और मेले या मार्केट से जलेबी खरीदकर घर भी ले जाते हैं। दरअसल इसके पीछे यह मान्‍यता है कि भगवान राम को शश्कुली नामक मिठाई बहुत पसंद थी और ऐसा माना जाता है कि जलेबी इसी मिठाई का रूप है।

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