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देश के 7 यूथ आइकन: यूं ही नही बनता कोई प्रभावशाली, जानें उनके संघर्ष की गाथा
बच्चों की शिक्षा में क्रांतिकारी और क्रियात्मक प्रयोगों के मामले में आर.के. श्रीवास्तव अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले आर.के. श्रीवास्तव देश में मैथेमैटिक्स गुरू के नाम से मशहूर हैं। चुटकुले सुनाकर खेल-खेल में जादूई तरीके से गणित पढ़ाने का तरीका लाजवाब है।
बिहार: 'प्रभावशाली' एक ऐसा शब्द है जिसमें गजब का आकर्षण छुपा है। लगभग हर व्यक्ति अपने जीवन में प्रभावशाली अवश्य बनना चाहता है। हालांकि कम ही लोग ऐसे हैं जो इस प्रभाव को पाने के लिए आवश्यक प्रयास करते हैं। एक प्रभावशाली व्यक्ति सच्चा, पारदर्शी, जागरूक, दूरदर्शी और सुखद व्यक्तित्व वाला होता है। उसमें एक मिशन, एक दर्शन, और प्रतिबद्धता की भावना होती है। समान्य जनता के जीवन को प्रभावित करना प्रभावशाली व्यक्तियों का प्रतिबिम्ब है।
प्रभावशाली व्यक्तियों को सबको साथ लेकर चलना आता है। इसके अलावे, वे आलोचना से डर कर अपनी राह कभी नहीं बदलते। उनका संतुलित समूह जो वास्तव में प्रभावशाली हैं उन्होंने कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ा। उन्होंने न सिर्फ अपने करीबियों के लिये, बल्कि पूरे समाज और मानवता के लिये कल्याणकारी कार्य किये हैं। इस सूची में देश के 7 यूथ आइकन जो लाखों युवाओं के रोल मॉडल बन चुके हैं उनके संघर्ष से आपको रुबरु कराते है।
साधारण परिवार की असाधारण बेटी हैं- चित्रा त्रिपाठी
खबरिया चैनलों की भीड़ में कोई चेहरा अपनी धार, रफ्तार, तेवर, खबरों की बारीक़ समझ और सटीक आंकड़ों-उदाहरणों से आपको रोकता है तो समझिए वो चित्रा त्रिपाठी हैं। वे अभी 'आजतक न्यूज चैनल' की एंकर हैं और टीवी न्यूज इंडस्ट्री का जाना-पहचाना चेहरा हैं। ग्राउंड रिपोर्टिंग से लेकर बड़े-बड़े न्यूज इवेंट, आउटडोर शोज, स्टूडियो डिबेट और एंकरिंग तक, चित्रा हर मोर्चे पर पूरी तैयारी और दमखम के साथ दिखती हैं।
खबरों की दुनिया में सबसे प्रतिष्ठित सम्मान "रामनाथ गोयनका पुरस्कार" उनकी प्रतिभा का प्रमाण है। 2014 में कश्मीर में आई भयानक बाढ़ के दौरान शानदार रिपोर्टिंग के लिये उन्हें यह पुरस्कार मिला था। आज चित्रा के नाम खबरों की दुनिया के बड़े-छोटे करीब तीस पुरस्कार हैं।
न्यूज इंडस्ट्री में चित्रा आज एक मिसाल हैं
चित्रा कहती हैं, सपनों को सच करने के लिये एक लड़की में तीन चीजें बहुत ज़रुरी हैं- साहस, संयम और संघर्ष। पीछे मुड़कर देखती हूं तो लगता है बेटी होना और सपनों को सच करना, एक बेटे से चार गुना ज्यादा ताकत की मांग करता है। संयोग देखिए कि जिस न्यूज इंडस्ट्री में चित्रा आज एक मिसाल हैं उसी इंडस्ट्री में एंट्री के लिए वे 2005 में दिल्ली आई थीं। जागरण पत्रकारिता कोर्स में दाखिला चाहती थीं लेकिन फीस ज्यादा थी, इसलिए गोरखपुर लौट गईं और एमए में एडमिशन ले लिया। सब्जेक्ट चुना डिफेंस स्टडीज और गोल्ड मेडल हासिल किया।
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इससे पहले 2001 में वे रिपब्लिक डे परेड में गार्ड ऑफ ऑनर कमांड करने के लिए भी गोल्ड मेडल हासिल कर चुकी थीं। उसी समय वे बतौर एनसीसी कैडेट प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिली थीं। 15 यूपी गर्ल्स बटालियन से एनसीसी में चित्रा को सी सर्टिफिकेट हासिल है। 11 मई 1985 को गोरखपुर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मीं चित्रा ने करियर की शुरुआत गोरखपुर दूरदर्शन औऱ एक स्थानीय चैनल सत्या टीवी से की।
इसके बाद वे ईटीवी और न्यूज 24 होते हुए सहारा समय को एंकर कम प्रोड्यूसर ज्वाईन किया। सहारा में 2012 में लंदन ओलंपिक जैसा बड़ा स्पोर्ट्स इवेंट कवर किया। इंडिया न्यूज चित्रा का अगला पड़ाव था जहां उन्होंने एंकर और एसोसिएट एडिटर की हैसियत से काम किया।
राष्ट्रपति पुरस्कार दिलाने में "बेटियां" का ही योगदान रहा
यहां वे "बेटियां" नाम से एक साप्ताहिक शो का संचालन भी करती थीं जो काफी समर्थ और सार्थक कार्यक्रम था। "बेटियां" तमाम अवरोधों-विरोधों के बावजूद सफलता हासिल करने वाली बेटियों की संघर्ष-गाथा था। इस कार्यक्रम ने चित्रा की भीड़ से अलग पहचान बनाई। यूपी के दूरदराज़ गांव की महिला "भानुमती" को पहचान और राष्ट्रपति पुरस्कार दिलाने में "बेटियां" का ही योगदान रहा।
सितंबर 2016 में उन्होंने एबीपी न्यूज के साथ काम किया । चित्रा राजनीति और रक्षा की खबरों पर जितनी तेवरदार दिखती हैं, अधिकार औऱ सरोकार के सवालों पर उतनी ही संवेदनशील। यूपी के अंधेरे गांवों का दर्द हो या फिर तीन तलाक के मामले पर बीवियों की तकलीफ, चित्रा की आवाज़ अंधेरे को चीरती रोशनी-सी महसूस होती है।
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दुनिया के सबसे ऊंचे बैटल फील्ड सियाचिन से रिपोर्टिंग के लिए एबीपी न्यूज ने उन्हें बेस्ट रिपोर्टर का अवॉर्ड दिया। हिन्दुस्तान का मिशन "जय हिन्द" की स्टोरी के लिए भारतीय सेना की ओर से प्रशंसा पत्र भी मिल चुका है। चित्रा उन चुनिंदा टीवी जर्नलिस्ट में हैं जो सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं और जिनकी फैन फॉलोविंग ज़बरदस्त है। उन्हें जो भी ज़रुरी औऱ नया लगता है, उसे फेसबुक लाइव या पोस्ट या फिर ट्विटर के जरिए रखती है। उनके वीडियो पोस्ट के व्यूज देखते ही देखते लाख की तरफ भागने लगते हैं और हजारों लोग शेयर करते हैं।
छोटी उम्र में ही लाखों की आस्था का केंद्र बनी- जया
बहुत ही कम उम्र में "जया किशोरी" ने दुनिया को अध्यात्म और भक्ति के मार्ग पर ले जाने का जो अनोखा काम किया है उसकी मिसाल खोजना मुश्किल है। आज वह आध्यत्मिक गुरू बन चुकी हैं और उनके भक्त पूरे भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में फैले हुए हैं। लाखों की तादाद में लोग उन्हें आस्था और श्रद्धा जगाने का माध्यम मानने लगे हैं। जिस उम्र में बच्चे किताबों के पन्ने पलटना शुरू करते हैं, जया किशोरी हजारों की भीड़ के समाने गीता पर प्रवचन देती हैं। दुखी और असहाय महसूस करने वाले लोगों को नरसी, नानी बाई जैसी प्रेरक कथाओं के जरिये प्रेरणा देती हैं।
कथा करते-करते ही "बी. कॉम" की डिग्री हासिल की
ऐसा नहीं है कि कथा के चलते जया किशोरी ने पढ़ाई छोड़ दी है। वे आज भी समय निकाल कर पढ़ाई भी करती हैं। कथा करते-करते ही उन्होंने बी. कॉम की पढ़ाई पूरी की है। उनकी मधुर वाणी सुनने के लिये लोग घंटों इंतजार करते हैं । उनकी कई एल्बम्स को भी लोगों ने हाथों-हाथ लिया है। खास बात यह है कि खुद अपनी नजरों में जया कोई साधु या संत नहीं हैं. वे स्वयं को केवल एक साधारण स्त्री मानती हैं, लेकिन लोगों के दिलों में उनका स्थान किसी देवी की तरह है। राजस्थान के सुजानगढ़ गाँव पैदा हुई जया एक गौड़ ब्राह्मण परिवार से हैं।
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भगवान कृष्ण के लिए जन्माष्टमी पर विशेष पूजा करती हैं
जया की स्कूली शिक्षा कोलकाता के महादेवी बिड़ला वर्ल्ड एकेडमी स्कूली से हुई। उनके घर में शुरू से ही भक्ति का माहौल रहा। इस मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा भी उन्हें इसी माहौल से मिली। जब वे केवल 5 साल की थी तब से भगवान कृष्ण के लिए जन्माष्टमी पर विशेष पूजा करती थी। इस छोटी से उम्र में ही उन्हें भगवान के प्रति उनका लगाव हुआ कि वे श्रीकृष्ण को अपना भाई-बंधु, मित्र सब कुछ मानने लगीं। जया ने 9 साल की उम्र में संस्कृत में लिंगाष्ठ्कम, शिव तांडव स्त्रोतम, रामाष्ठ्कम आदि कई स्त्रोतों को गाना शुरू कर दिया था।
10 साल की उम्र में जया ने सुन्दरकाण्ड गाकर लाखों भक्तों के दिलों में अपनी अलग जगह बना ली। जया किशोरी का जीवन बहुत ही सादा है। जिस उम्र में लड़कियां शौक श्रृंगार घूमना फिरना नाचना गाना पसंद करतीं है उस उम्र में वह भक्ति के रास्ते पर निकल पड़ीं। जया अपनी कथा के दौरान इकट्ठा होने वाला धन गरीब और बेसहारा लोगों की मदद पर खर्च कर देती हैं। यह सारा धन नारायण सेवा ट्रस्ट में दे दिया जाता है, जहां अस्पताल में अपंग व्यक्तियों और बच्चों का मुफ्त इलाज होता है। नारायण सेवा ट्रस्ट गरीब बच्चों के लिए स्कूल और खाने पीने का भी प्रबंध करता है और गरीब महिलाओं की शादियां भी करता है।
दिल के इलाज से दिल की बाजी जीतने वाले हैं- डॉ. दिनेश चंद्रा
डॉ. दिनेश चंद्रा हार्ट सर्जरी के क्षेत्र में एक जाना माना नाम बन चुके हैं। प्रतिष्ठित मेदांता अस्पताल से जुड़ने से पहले उन्होंने अखिलभारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के राम मनोहर लोहिया और सफदरजंग अस्पताल में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। ग्वालियर के सिंधिया स्कूल से शुरूआती पढ़ाई करने के बाद उन्होंने दिल्ली के डीपीएस आरके पुरम से इंटर किया।
इसके बाद उन्होंने मैंग्लोर के केएमसी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और भोपाल के जीएमसी से सर्जरी में मास्टर्स की। दोनों बार उन्होंने गोल्ड मैडल हासिल किया। इसके बाद डॉ. चंद्रा ने पीजीआईएमईआर और प्रतिष्ठित डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल से सीटीवीएस की पढ़ाई की। जहां पहली बार में ही उन्होंने मैदान मार लिया।
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दिल की बीमारियों से संबंधित इलाज और अपने अनुभव और शोध के बारे में डॉ.चंद्रा कई हेल्थ और साइंस जनरलों में दर्जनों लेख भी प्रकाशित कर चुके हैं. उन्हें दर्जनों शोध संस्थान अपने यहां व्याख्यान के लिए भी आंमत्रित करते रहते हैं। बच्चों की हार्ट सर्जरी, हार्ट फेल, वाल्व रीप्लेसमेंट और रिपेयर, एओरटिक सर्जरी के साथ पेरीफेरल वस्कुलर सर्जरी के मामले में उन्हें खास महारथ हासिल है।
मेंदांता अस्पताल के अनुसार डॉ. दिनेश अभी तक दिल के मरीजों के एक हजार से अधिक सफल ऑपरेशन कर चुके हैं। उनकी महारथ को देखते हुए उन्हें मेदांता की हार्ट ट्रांस्प्लांस टीम में भी रखा गया है। मूल रूप से बिहार से ताल्लुक रखने वाले डॉ. दिनेश चंद्रा दिल के मरीजों के लिए वहां स्वतंत्र रुप से ओपीडी भी चलाते हैं।
इसके अतिरिक्त वह कई स्वंय सेवी संस्थानों के साथ मिलकर भी समाज सेवा का काम करते हैं। इस तरह वह दस से अधिक छोटे बच्चों के दिल की सर्जरी कर उन्हें नया जीवन दे चुके हैं। फिलहाल वह दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले दिल के मरीजों के लिए टेली-मेडीसन के क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं ।
सुपर 30 वाले- आनंद कुमार
बिहार के पटना जिले में रहने वाले शिक्षक आनंद कुमार न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के इंजीनियरिंग स्टुडेंट्स के बीच एक चर्चित नाम हैं। इनका ‘सुपर 30’ प्रोग्राम विश्व प्रसिद्ध है। इसके तहत वे आईआईटी-जेईई के लिए ऐसे तीस मेहनती छात्रों को चुनते हैं, जो बेहद गरीब हों। 2018 तक उनके पढ़ाए 480 छात्रों में से 422 अब तक आईआईटीयन बन चुके हैं।
आनंद कुमार की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि डिस्कवरी चैनल भी उन पर डॉक्यूमेंट्री बना चुका है। उन्हें विश्व प्रसिद्ध मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और हार्वर्ड युनिवर्सिटी से भी व्याख्यान का न्योता मिल चुका है।
सिर्फ एक रुपया गुरुदक्षिणा वाले- आर.के. श्रीवास्तव
बच्चों की शिक्षा में क्रांतिकारी और क्रियात्मक प्रयोगों के मामले में आर.के. श्रीवास्तव अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले आर.के. श्रीवास्तव देश में मैथेमैटिक्स गुरू के नाम से मशहूर हैं। चुटकुले सुनाकर खेल-खेल में जादूई तरीके से गणित पढ़ाने का तरीका लाजवाब है। कबाड़ की जुगाड़ से प्रैक्टिकल कर गणित सिखाते हैं।
सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर स्टूडेंट्स को पढ़ाते हैं, सैकड़ों आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई सहित देश के प्रतिष्ठित संस्थानो मे पहुंचाकर उनके सपने को पंख लगा चुके हैं। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्डस और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड मे भी आरके श्रीवास्तव का नाम दर्ज है।
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रास्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कर चुके हैं आर. के. श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्य शैली की प्रशंसा। इनके द्वारा चलाया जा रहा नाइट क्लासेज अभियान अद्भुत, अकल्पनीय है। स्टूडेंट्स को सेल्फ स्टडी के प्रति जागरूक करने लिये 450 क्लास से अधिक बार पूरे रात लगातार 12 घंटे गणित पढा चुके है। सैकङों से अधिक बार इनके शैक्षणिक कार्यशैली की खबरे देश के सारे प्रतिष्ठित अखबारों में छप चुके हैं, विश्व प्रसिद्ध गूगल ब्वाय कौटिल्य के गुरु के रूप मे भी देश इन्हें जानता है।
आर.के. श्रीवास्तव होने का मतलब- कड़ी मेहनत, उच्ची सोच एवं पक्का ईरादा
आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स के सपनो को पंख देने वाले का नाम है आरके श्रीवास्तव, आरके श्रीवास्तव अब लाखों युवाओं के रोल मॉडल बन चुके हैं। बिहार के इस शिक्षक ने अपने कड़ी मेहनत, पक्का इरादा और उच्ची सोच के दम पर ही शीर्ष स्थान को प्राप्त कर लिया है। देश के टॉप 10 शिक्षको में भी बिहारी शिक्षक का नाम आ चुका है।
ये गणित के शिक्षक हैं परन्तु इनके शैक्षणिक कार्यशैली एक दशकों से चर्चा का विषय बना हुआ है। बिहार सहित आज पूरे देश की दुआएं आरके श्रीवास्तव को मिलता हैं । विदेशों में भी इन बिहारी शिक्षकों के पढ़ाने के तरीकों को भरपूर पसंद किए जाते हैं। उन सभी देशों में भी इनके शैक्षणिक कार्यशैली को पसंद किया जाता हैं, जहां पर भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं।
आर.के. श्रीवास्तव का जन्म बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज में एक गरीब परिवार में हुआ था । उनके पिता एक किसान थे, जब आरके श्रीवास्तव पांच वर्ष के थे तभी उनके पिता पारस नाथ लाल इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। पिता के गुजरने के बाद आरके श्रीवास्तव की मां ने इन्हें काफी गरीबी को झेलते हुए पाला पोशा। आर.के. श्रीवास्तव को हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल में भर्ती कराया। उन्होंने अपनी शिक्षा के उपरांत गणित में अपनी गहरी रुचि विकसित की।
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जब आर.के. श्रीवास्तव बड़े हुए तो फिर उनपर दुखों का पहाड़ टूट गया, पिता की फर्ज निभाने वाले एकलौते बड़े भाई शिवकुमार श्रीवास्तव भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। अब इसी उम्र में आरके श्रीवास्तव पर अपने तीन भतीजियों की शादी और भतीजे को पढ़ाने लिखाने सहित सारे परिवार की जिम्मेदारी आ गयी।
अपने जीवन के उतार चढ़ाव से आगे निकलते हुए आरके श्रीवास्तव ने 10 जून 2017 को अपनी बड़ी भतीजी का शादी एक शिक्षित सम्पन्न परिवार में करके एक पिता का दायित्व निभाया। आज पूरा देश आरके श्रीवास्तव के संघर्ष की मिसाल देता है। कभी न हारने का संघर्ष। आरके श्रीवास्तव हमेशा अपने स्टूडेंट्स को समझाते है कि "जीतने वाले छोड़ते नही, छोड़ने वाले जीतते नही।
आरके श्रीवास्तव का जीवन काफी संघर्ष से भरा रहा। जिससे लड़ते हुए वह अपनी पढ़ाई पूरी की। लेकिन, टीबी की बीमारी के कारण आईआईटी की प्रवेश परीक्षा नहीं दे पाए। बाद में ऑटो चलने से होने वाले इनकम से परिवार का भरण-पोषण होने लगा। आरके श्रीवास्तव को उनके उज्वलल भविष्य के लिए आशीर्वाद भी दे चुके है। आज आरके श्रीवास्तव की माँ और भाभी उनके उपलब्धियों पर गर्व करती है।
राजनीति के नये यूथ आइकॉन हैं भाजपा युवामोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या
दक्षिण भारत में भाजपा के पोस्टर ब्वॉय तेजस्वी सूर्या चुनाव जीतकर मौजूदा लोकसभा में पहुंचने वाले देश के युवा चेहरों में से एक हैं। 28 साल के सूर्या भाजपा और बैंगलुरू दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि ये सीट पहले भी भाजपा के पास ही थी और दक्षिण भारतीय राजनीति के लीजेंड माने जाने वाले अनंत कुमार वहां से सांसद थे, लेकिन उनके असामयिक निधन से पैदा हुए शून्य को भरने में इस युवा राजनेता ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। ऊर्जा से भरपूर सूर्या ने चुनाव के दौरान ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं कीं और उनके भाषणों ने मानों समां बाध दिया।
16 नवंबर 1990 को चिकमंगलूर में जन्मे सूर्या के पिता एक्साइज विभाग में वरिष्ठ अधिकारी थे. वे बचपन से ही देश सेवा को कितने समर्पित थे इसका अंदाजा इसी से लग सकता है कि महज नौ साल की उम्र में अपनी 17 पेंटिंग बेच कर उससे जमा हुई 1220 रुपये की रकम उन्होंने कारगिल रिलीफ फंड को डोनेशन में दे दिया था।
सन 2001 में उन्हें राष्ट्रीय बालश्री सम्मान भी मिला था। मात्र 18 वर्ष की आयु में सन 2008 में उन्होंने बंगलुरु के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा में सुधार के लिये 'अराइज इंडिया फाउंडेशन' की शुरूआत की उनकी यह कोशिश आज भी जारी है।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों से प्रभावित सूर्या छात्र राजनीति संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा वे भाजपा की युवा इकाई भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव भी रहे हैं। कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान उन्हें पार्टी का सोशल मीडिया इंचार्ज भी बनाया गया था।
सूर्या को करीब से जानने वाले कहते हैं कि स्कूल के दौरान ही उन्हौंने राजनीतिक परिपक्वता हासिल करनी शुरू कर दी थी। स्कूल में ही उन्होंने राजनीति से प्रेरित चर्चाओं में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। युवा तेजस्वी पेशे से वकील हैं और सामाजिक कार्यों में खासी दिलचस्पी लेते हैं।
बीजू रविंद्रन ने तकनीक की चाबी से खोले शिक्षा के नये द्वार
तकनीक के इस्तेमाल से शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन के लिये बीजू रवीन्द्रन आज एक जानी-मानी हस्ती बन गये हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद केरल के एक तटीय गांव के इस युवा ने कोचिंग चलाने से लेकर मिलियन डॉलर कंपनी खड़े करने तक का सफर चंद सालों में तय किया है। अपनी काबिलियत और विश्वास के दम पर बीजू ने वो कर दिखाया है जिसके लिये आज दुनिया उन्हें सलाम कर रही है।
उनकी बनायी बीजू लर्निंग ऐप्प दुनिया की सबसे बड़ी एजुकेशनल एप्लीकेशन बन चुकी है। जिसकी कीमत 37000 करोड़ रुपये आंकी गयी है। यूके की एक शिपिंग कंपनी में बतौर इंजीनयर काम कर रहे बीजू ने शिक्षा के क्षेत्र में कैसे छलांग लगायी इसकी कहानी भी बेहद दिलचस्प है।
दरअसल, उन्होंने अपने कुछ दोस्तों को मैनेजमेंट संस्थान आईआईएम में एडमिशन के लिये होने वाली परीक्षा कैट के लिये पढ़ाना शुरू किया। कहते हैं कि इस परीक्षा में पहले ही शत-प्रतिशत अंक हासिल करने के बाद भी उन्होंने कभी आईआईएम में एड्मीशन ही नहीं लिया। सन 2006 में जब उन्होंने पढ़ाना शुरू किया तो उनसे पढ़ने वालों की तादाद बढ़ने लगी। ये संख्या इतनी ज्यादा होती गयी कि एक कमरे से शुरू हुआ उनका सफर बड़े हॉल और उसके बाद स्टेडियम तक पहुंच गया।
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2015 में बीजू ऐप्प की शुरूआत की
सन 2011 में उन्होंने थिंक एंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड की शुरूआत की, जिसने 2015 में बीजू ऐप्प की शुरूआत की। महज तीन महीनों में 20 लाख से अधिक छात्र इसे डाउनलोड कर चुके थे। इस ऐप्प के जरिये मुख्य रूप से कठिन माने जाने वाले गणित और विज्ञान को सरल तरीके से समझाने पर जोर दिया जाता है। 2018 तक इसे डेढ़ करोड़ से ज्यादा छात्र डाउनलोड कर चुके थे। जिनमें से 9 लाख से ज्यादा पेड सब्सक्राइबर्स हो चुके थे।
एक अनुमान के मुताबिक बीजू की कंपनी भारत ही नहीं दुनियाभर में अपने विस्तार की योजना पर काम कर रही है। कई देशों में तो उन्होंने काम करना शुरू भी कर दिया है। 2013 में उनकी कंपनी में निवेश का सिलसिला शुरू हुआ जो 2019 आने तक 785 मिलियन डॉलर तक पहुंच चुका था।
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