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झारखंड उपचुनाव की जंग: आदिवासी फैक्टर हावी, सरना धर्म कोड की वकालत

सरना धर्म कोड आदिवासियों को अपनी पहचान से जुड़ा मुद्दा है। लिहाज़ा, आदिवासी समाज जनगणना में सरना धर्म के लिए अलग कॉलम की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि

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Published on: 31 Oct 2020 5:29 AM GMT
झारखंड उपचुनाव की जंग: आदिवासी फैक्टर हावी, सरना धर्म कोड की वकालत
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झारखंड उप चुनाव में आदिवासी फैक्टर, सरना धर्म कोड की वकालत (Photo by social media)

रांची: झारखंड विधानसभा उप चुनाव में आदिवासियों को रिझाने की हर मुमकिन कोशिश हो रही है। खासकर दुमका उप चुनाव में आदिवासी फैक्टर महत्वपूर्ण है। लिहाज़ा, झामुमो और भाजपा आदिवासियों को अपने पक्ष में करना चाहती हैं। इसके लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मोर्चा संभाले हुए हैं तो भाजपा की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और पूर्व सीएम एवं केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा दो-दो हाथ कर रहे हैं।

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प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश भी लगातार कैंप कर रहे हैं। सभी के चुनावी सभाओं में आदिवासियों को अपनी तरफ करने की कोशिश है। झामुमो पर परिवारवाद का आरोप लगाया जा रहा है तो भाजपा पर आदिवासी पहचान को मिटाने का इल्जाम लग रहा है। इस बीच सरना धर्म कोड का मुद्दा गरमाता जा रहा है।

उप चुनाव में सरना धर्म कोड का मुद्दा

सरना धर्म कोड आदिवासियों को अपनी पहचान से जुड़ा मुद्दा है। लिहाज़ा, आदिवासी समाज जनगणना में सरना धर्म के लिए अलग कॉलम की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि, 15 नवंबर से पहले विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित किया जाएगा। फिर इसे केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। सरकार के मुताबिक विशेष सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से आग्रह किया गया है। खास बात यह है कि, 15 नवंबर को राज्य का स्थापना दिवस है। लिहाज़ा, सरकार स्थापना दिवस समारोह से पहले सरना धर्म कोड का प्रस्ताव केंद्र को भेजना चाहती है।

jharkhand-matter jharkhand-matter (Photo by social media)

क्या है सरना धर्म कोड

आदिवासी समाज मूर्ति पूजा के बजाय प्रकृति प्रेमी रहा है। हालांकि, आमतौर पर मान्यता रही है कि, आदिवासी कोई धर्म नहीं बल्कि जीवन पद्धति है। इनके रीति-रिवाज़ और मान्यताएं हिंदू धर्म के क़रीब रही हैं। पूजा-पाठ से लेकर रहन-सहन हिंदू धर्म से मिलता-जुलता रहा है। इन सबके बावजूद आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग की जा रही है। विभिन्न राजनीतिक दल आदिवासी संगठनों की मांगों का समर्थन करते आए हैं। हालांकि, इसके पीछे वोटबैंक और राजनीति बड़ा कारण रही है। चुनावी घोषणा पत्रों में भी सरना धर्म कोड की वक़ालत की गई है। झारखंड विधानसभा के मॉनसून सत्र में भी इस प्रस्ताव पर चर्चा होने की बात कही गई थी लेकिन आखिरी मौके पर इसे टाल दिया गया।

किस ओर जाएगा आदिवासी समाज

झारखंड मुक्ति मोर्चा खुद को आदिवासी हितैषी बताता है। पार्टी ने शुरू से ही जल, जंगल और ज़मीन के मुद्दे पर राजनीति की है। पार्टी के बड़े और पुराने नेता आदिवासी समाज से आते हैं। झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन की पहचान भी आदिवासी नेता के तौर पर रही है। ऐसे में पार्टी खुद को आदिवासियों के नज़दीक पाती है। विशेषकर संताल परगना और कोल्हान क्षेत्र में जेएमएम की पकड़ अच्छी रही है। संताल की ज्यादातर सीटों पर झामुमो के विधायक रहे हैं। ऐसे में दुमका उप चुनाव में भी पार्टी आदिवासी कार्ड के भरोसे नय्या पार लगाना चाहती है। जेएमएम खुलकर सरना धर्म कोड की वकालत भी कर रही है। दूसरी तरफ भाजपा भी खुद को आदिवासियों की हितैषी बताती है।

jharkhand-matter jharkhand-matter (Photo by social media)

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पार्टी का कहना है कि, झामुमो ने आदिवासी समाज को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी मुखर होकर शिबू सोरेन परिवार पर हमला बोल रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश का यहां तक कहना है कि, उप चुनाव के बाद झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार गिर जाएगी। पिछले विधानसभा चुनाव में दुमका से भाजपा की प्रत्याशी लुईस मरांडी ने जीत दर्ज की थी। ऐसे में पार्टी एकबार फिर जीत को दोहराने की कोशिश कर रही है। जहां तक सरना धर्म कोड का सवाल है तो इसे लेकर भाजपा कोई स्पष्ट राय नहीं रखती है।

शाहनवाज़

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