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यूपी के पूर्व ब्यूरोकेट्स की किसानों से आंदोलन खत्म करने की अपील, जाने क्या होगा असर
आठ मार्च को धरना स्थल पर महिलाओं की भीड़ थी आज इक्का दुक्का महिलाएं ही दिख रही हैं। नौजवानों की हुंकारती भीड़ नदारद हो चुकी है। धरने में सिर्फ बुजुर्गों की जमात बची है।
रामकृष्ण वाजपेयी
पहले 75 नौकरशाहों के जवाब में 180 नौकरशाहों की अपील और अब यूपी के पूर्व ब्यूरोक्रेट्स की अपील। जवाब अपने आप में है। 180 नौकरशाहों की अपील का किसान आंदोलन पर क्या कोई असर पड़ा था या अब इन की अपील का पड़ेगा। किसान अपनी और जनता के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं। और वह जनता से अलग नहीं हैं उन्हीं का एक अंग हैं। इसलिए जनता को परेशानी की बात बेमानी है। दूसरी बात यह है कि नये कृषि कानूनों और भाजपा की नीतियों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल सहित विपक्षी पार्टियों द्वारा महापंचायत की श्रृंखला ये बताती है कि ये किसानों को आक्रोश को वोट में तब्दील करना चाहती हैं इनकी नजर यूपी में अगले माह होने वाले पंचायत चुनावों और 2022 के विधानसभा चुनावों पर है।
धरना स्थल हो रहे हैं वीरान
शुरुआत में आंदोलन से दूरी बनाकर चलने वाले नेता अब वोटों के लिए मौके का फायदा उठाने परहेज नहीं कर रहे हैं। ऐसे में नौकरशाहों का इस लड़ाई में कूदना खुद नौकरशाही पर सवाल खड़े करता है। क्या उनके लिए जमीनी हकीकत का कोई मतलब नहीं निहित स्वार्थों के लिए जनहित के मुद्दों से खिलवाड़ करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि दिल्ली में सीमाओं पर चल रहे किसानों के धरनों में किसानों की घटती संख्या से संयुक्त किसान मोर्चा और राकेश टिकैत भी चिंतित है। किसान नेताओं ने 26 मार्च को भारत बंद का आह्वान किया हुआ है बावजूद इसके धरना स्थल वीरान हो रहे हैं। जहां हजारों किसानों की भीड़ रहती थी वर्तमान समय में केवल एक दो सैकड़ा किसान बचे हैं।
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आंदोलन में तेजी बढ़ रही है निराशा
आठ मार्च को धरना स्थल पर महिलाओं की भीड़ थी आज इक्का दुक्का महिलाएं ही दिख रही हैं। नौजवानों की हुंकारती भीड़ नदारद हो चुकी है। धरने में सिर्फ बुजुर्गों की जमात बची है। वह भी धरना स्थल पर कम ट्रालियों में आराम करते अधिक नजर आ रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के किसानों के लिए ये वास्तव में परीक्षा की घड़ी है कि किस तरह से वह अपने आंदोलन को जिंदा रख पाते हैं। जबकि आंदोलन पर हमले लगातार जारी हैं। लेकिन आंदोलन से किसानों का कम होना उनमें तेजी से बढ़ रही हताशा और निराशा को दिखा रहा है। जो शुभ संकेत नहीं हैं।
नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं.
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