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किसान यूनियन में फूट: कई संगठन आंदोलन से अलग, धरना खत्म कर लौटे घर
दिल्ली हिंसा की झकझोर देने वाली घटनाओं के बाद न सिर्फ आम किसान यूनियनों से छिटक रहा है बल्कि जिम्मेदारी से बचने के लिए आंदोलन से अलग होने का सिलसिला भी शुरू हो गया है।
रामकृष्ण वाजपेयी
गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई घटनाओं के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने किसानों से धरने पर बैठे रहने की अपील की है। लेकिन सवाल है ये है कि टूटते तिलिस्म के बाद क्या मोर्चा की अब इतनी साख बची है कि घर वापसी के लिए चल पड़े किसान पलट कर लौट आएं। किसान यूनियनों में फूट पड़ने और आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू होने के बाद दो माह से चल रहे किसान आंदोलन का अंत होता दिख रहा है। इस आंदोलन से किसका फायदा हुआ, किसका नुकसान आंदोलन कर रहा संयुक्त किसान मोर्चा अपनी यूनियनों के साथ इसी गुणा गणित में उलझा है।
दिल्ली हिंसा से किसान संगठनों में टकराव
दिल्ली हिंसा की झकझोर देने वाली घटनाओं के बाद न सिर्फ आम किसान यूनियनों से छिटक रहा है बल्कि जिम्मेदारी से बचने के लिए आंदोलन से अलग होने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। ट्रैक्टर रैली की शुरुआत से पहले ही इस आयोजन से किसान नेताओं का नियंत्रण खत्म हो जाना ही सबसे बड़ी खामी बनकर उभरा है। किसान यूनियनों को भी सोचना चाहिए कि आंदोलन का उद्देश्य क्या था क्या उन्हें हासिल हुआ। क्योंकि इससे न तो कृषि और न ही किसानों का कोई भला हुआ।
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लालकिले पर झंडा फहराने वाले कौन?
गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुई व्यापक हिंसा में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने व लालकिले पर आंदोलनकारियों के झंडा फहराने की घटनाओं ने आज किसान यूनियनों को ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया है जहां उन्हें सारे रास्ते बंद नजर आने लगे हैं। अब रह गई है तो सौ बात की एक बात - इस सारे फसाद के लिए जिम्मेदार कौन।
रैली से पहले सुप्रीम कोर्ट में जब ट्रैक्टर रैली पर बहस हो रही थी तो सुप्रीम कोर्ट ने भी यही आशंका जताई थी कि यदि ट्रैक्टर रैली के दौरान कोई गड़बड़ होती है तो जिम्मेदारी कौन लेगा। उस समय किसानों की ओर से बहस कर रहे वकील ने जवाब दिया था कोई नहीं।
37 किसान नेताओं पर FIR दर्ज
दंगों और व्यापक हिंसा के मामले में दिल्ली पुलिस कार्रवाई कर रही है और करेगी भी। उसने कई प्रमुख किसान नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली है। प्राथमिकी में भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत, मेधा पाटकर, बूटा सिंह, योगेंद्र यादव सहित 37 किसान नेताओं को दंगों के लिए जिम्मेदार ठहराया है। ट्रैक्टर रैली के लिए जारी एनओसी के उल्लंघन के लिए दिल्ली पुलिस ने अपनी अन्य प्राथमिकी में दर्शन पाल, राजिंदर सिंह, बलबीर सिंह राजेवाल और जोगिंदर सिंह उग्रा जैसे किसान नेताओं का भी उल्लेख किया है।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन और भारतीय किसान यूनियन (भानू) सहित कई किसान संगठनों ने खुद को हिंसा से अलग करते हुए दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन को समाप्त कर दिया है।
किसान संगठनों के शांतिपूर्ण संघर्ष
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के तहत एकजुट 32 संगठनों के नेताओं ने बयान जारी कर आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने किसान मजदूर संघर्ष समिति के साथ मिलकर किसान संगठनों के शांतिपूर्ण संघर्ष के खिलाफ गंदी साजिश रची।
किसान नेताओं ने हिंसा का सारा दोष किसान मजदूर संघर्ष समिति के नेता सतनाम सिंह पन्नू और अभिनेता दीप सिद्धू पर लगाते हुए कहा कि इन्होंने किसान आंदोलन को भड़काने की कोशिश की। इसके अलावा कुछ और संगठनों ने भी घोषणा की थी कि वे रिंग रोड पर मार्च करेंगे और लाल किले पर झंडा फहराएंगे।
हिंसा को बताया जा रहा सरकार की साजिश
संयुक्त किसान मोर्चा का आरोप है कि साजिश के तहत, किसान मजदूर संघर्ष समिति ने आंदोलन कर रहे संगठनों के निर्धारित मार्च से दो घंटे पहले मार्च करना शुरू किया। यह शांतिपूर्ण और मजबूत किसान संघर्ष को नाकाम करने की गहरी साजिश थी। संयुक्त किसान मोर्चा के सभी घटक दलों ने इस घटना की कड़ी निंदा की।
इस बीच राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के नेता वीएम सिंह ने भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत पर गंभीर आरोप लगाते हुए खुद और अपने संगठन को इस आंदोलन से अलग कर लिया है। उन्होंनने कहा कि हम अपना आंदोलन यहीं खत्म करते हैं। हमारा संगठन इस आंदोलन से अलग है।
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भारतीय किसान यूनियन (भानू) के राष्ट्रीरय अध्योक्ष भानू प्रताप सिंह ने भी खुद को आंदोलन से अलग करते हुए कहा है कि कल दिल्लीऔ में हुई घटना से इतना दुखी हूं कि मैं इसी समय से अपने संगठन के धरने को खत्मं करता हूं।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के नेता वीएम सिंह का साफ कहना है कि जो साथी अब इस आंदोलन से हटना चाहते हैं, हट जाएं। ये आंदोलन इस रूप में मेरे साथ नहीं चलेगा। हम यहां न शहीद करने आए थे न अपने लोगों को पिटवाने। हम उन लोगों के साथ आंदोलन नहीं चला सकते, जिनकी दिशा अलग हो।
नेतृत्व पर उठाए सवाल
किसान नेता ने राकेश टिकैत को निशाने पर लेते हुए कहा क्या उन्होंने एक बार भी गन्नाा किसानों की बात उठाई। धान खरीफ की कोई बात की। उन्होंने कहा कि हम सपोर्ट करते रहें और उधर कोई और कोई नेता बना रहे, यह मंजूर नहीं।
उन्होंने कहा कि उन्होंने आंदोलन खड़ा करने का काम किया। उन्होंने किसानों को दिल्लीन लाने का काम किया। वे यहां इसलिए नहीं आए थे कि खुद को, देश को और 26 जनवरी पर सबको बदनाम करें।
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आरोपों को लेकर भाकियू के राकेश टिकैत ने कहा कि मैं पहले ही किसानों की सारी जिम्मेमवारी ले चुका हूं। जिसको गाजीपुर छोड़ना है वह छोड़ दे। उन्होंने सवाल किया कि ये लोग दो महीने तक यहां क्योंव डटे थे? जब पुलिस का डंडा पड़ा तो भाग गए। आंदोलन को कमजोर आदमी बीच में छोड़ता है।
कुल मिलाकर किसान यूनियनों की फूट कहां तक जाती है ये देखने वाली बात है लेकिन किसान यूनियनों को यह तय करना होगा कि उन्हें अलगाववाद का साथ करना है या किसानों के इंसाफ के लिए लड़ना है। क्योंकि आंदोलन के माथे पर लगा दाग छूटने में वक्त लगेगा।
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