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राहुल-पवार का बड़ा राजनीतिक दांव, राष्ट्रपति का रुख तय करेगा किसानों का भविष्य
दिल्ली बार्डर पर 13 दिन से डेरा डाले किसानों के आंदोलन को भाजपानीत सरकार भले ही वार्ता के जाल में उलझाए रखना चाहती है लेकिन इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजनीतिक के पुराने महारथी शरद पवार ने राष्ट्रपति से मुलाकात का वक्त लेकर बडा राजनीतिक दांव चल दिया है।
लखनऊ: दिल्ली बार्डर पर 13 दिन से डेरा डाले किसानों के आंदोलन को भाजपानीत सरकार भले ही वार्ता के जाल में उलझाए रखना चाहती है लेकिन इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजनीतिक के पुराने महारथी शरद पवार ने राष्ट्रपति से मुलाकात का वक्त लेकर बडा राजनीतिक दांव चल दिया है। अब राष्ट्रपति के रुख पर किसानों के आंदोलन का भविष्य निर्भर है।
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एक कदम आगे निकले राहुल और पवार
केंद्र की मोदी सरकार के कृषि संबंधी तीनों कानून को लेकर पिछले दिनों से देशव्यापी हंगामा मचा हुआ है। भाजपा की ओर से किसान आंदोलन को राजनीति प्रेरित बताकर इसकी गंभीरता को कम करने की कोशिश की जा रही है। इस बीच किसानों के भारत बंद को गैर भाजपा दलों ने पूरे देश में अपना समर्थन देकर आंदोलन का साथी बनना स्वीकार कर लिया है। इससे भी एक कदम आगे बढते हुए कांग्रेस, एनसीपी और कम्यूनिस्ट दलों ने राष्ट्रपति से मिलने का वक्त भी ले लिया है। इससे साफ है कि गैर भाजपाई राजनीतिक दलों ने अपनी मंशा साफ कर दी है।
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इन दलों ने किसानों के आंदोलन को अपना राजनीतिक समर्थन देने के साथ ही उनकी लडाई लडने के लिए भी खुद को आगे कर दिया है। यह वह क्षण है जो भाजपा को किसान विरोधी साबित करने वाला है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आंदोलनों को राजनीतिक दलों का साथ मिलना कोई अनहोनी घटना नहीं है। अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन से भाजपा पूरी तरह संबद्ध रही है और उसने इसका जमकर राजनीतिक फायदा उठाया है। ऐसे में जब कांग्रेस व एनसीपी समेत अन्य दल अपने को किसानों के आंदोलन से जोड रहे हैं तो यह भाजपा को अपने आप दूसरे पाले में खडा करने वाली घटना है।
राष्ट्रपति के रुख से तय होगा किसान आंदोलन का स्वरूप
किसान आंदोलनकारियों की अब तक केंद्र सरकार से पांच दौर की वार्ता हो चुकी है। मंगलवार की शाम वह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिलने जा रहे हैं। बुधवार को सरकार के साथ एक और वार्ता होगी। इसके साथ ही बुधवार की शाम जब राहुल गांधी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी से सीताराम येचुरी समेत पांच नेता राष्ट्रपति से मिलेंगे तो जाहिर है कि वह किसान आंदोलन को लेकर अपनी चिंता से उन्हें अवगत कराएंगे। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपति ही देश के अभिभावक हैं।
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राजनीतिक दलों की चिंता पर राष्ट्रपति का क्या रुख रहेगा। वह सरकार की बातों से कितना इत्तफाक रखते हैं और गैरभाजपा दलों की चिंता को कितना जायज ठहराते हैं। इस पर किसानों का भविष्य निर्भर करेगा। लेकिन इस सबके बावजूद गैर भाजपा दलों ने अपनी इस राजनीतिक पहल के जरिये भाजपा और उसके सहयोगी दलों के लिए किसान आंदोलन में अपने –पराये की लकीर खींच दी है। इसका फायदा और नुकसान आने वाले दिनों में राजनीतिक दलों को होगा। अयोध्या आंदोलन की तरह किसान आंदोलन कहीं गैर भाजपा दलों के लिए संजीवनी न बन जाए।
अखिलेश तिवारी