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सुप्रीम कोर्ट की कमेटी पर क्या है किसानों की राय, जानिए क्यों है ऐतराज
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों का साफ कहना है कि उन्होंने पहले भी कमेटी बनाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित की गई कमेटी से उनका कोई लेना देना नहीं है।
नई दिल्ली: केंद्र के नए कृषि कानूनों पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और इन तीनों कानून को लागू करने पर अगले आदेश तक रोक लगा दी। साथ ही इस मसले को हल करने के लिए एक कमेटी का गठन किया है। हालांकि कोर्ट के इस फैसले के किसान नाखुश हैं और कानूनों को रद्द किए जाने के अलावा किसी भी बात को मानने के लिए राजी ही नहीं हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कमेटी गठित किए जाने के फैसले पर भी नाराजगी जाहिर की है। उनका कहना है कि इस मामले में उन्होंने किसी भी तरह की मध्यस्थता की मांग नहीं की है।
हमारा कमेटी से कोई लेना देना नहीं
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों का साफ कहना है कि उन्होंने पहले भी कमेटी बनाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित की गई कमेटी से उनका कोई लेना देना नहीं है। इस संबंध में सिंधु बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन में शामिल किसान नेता डॉ. दर्शनपाल का कहना है कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं, लेकिन इस मामले में हमने किसी तरह की मध्यस्थता के लिए मांग नहीं की है। ऐसी किसी भी कमेटी से हमारा संबंध नहीं है।
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(फोटो- सोशल मीडिया)
कमेटी के सदस्य रहे हैं कृषि कानूनों के पैरोकार
उन्होंने कहा कि ये कमेटी अदालत को तकनीकी राय देने के लिए बनी हो या किसानों और सरकार के बीच मध्यस्थता के लिए इस कमेटी से हमारा लेना देना नहीं है। दर्शनपाल का कहना है कि कमेटी में जो चार सदस्य हैं, वो सभी इन कृषि कानूनों के पैरोकार रहे हैं और बीते कई महीनों से खुलकर कृषि कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने की असफल कोशिश करते आ रहे हैं।
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कमेटी में ये हैं शामिल
संयुक्त किसान मोर्चा ने तो यहां तक कह दिया है कि यह बेहद अफसोस की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मदद के लिए इस कमेटी में एक भी निष्पक्ष व्यक्ति को नहीं रखा है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कमेटी गठित की है, उसमें भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी (कृषि विशेषज्ञ) और अनिल शेतकारी को शामिल किया गया है।
कैसे हल होगा मुद्दा?
जाहिर है कि दिल्ली की सीमा पर किसानों का हुजूम बीते 50 दिनों से लगा हुआ है। अलग-अलग बॉर्डर पर हजारों की संख्या में किसान जिनमें बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, डटे हुए हैं। अब तक कई किसानों की मौत भी हो चुकी है, जिनमें से कुछ ठंड से जान गंवा बैठे हैं तो कुछ ने आत्महत्या कर ली है। कोर्ट के फैसले के बाद भी ये मुद्दा कैसे हल होगा ये बड़ा सवाल बनकर रह गया है।
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