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कश्मीर में चीन: Article 370 की बहाली पर फारूक अब्दुल्ला का विवादित बयान
फारूक अब्दुल्ला की ओर से अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने का शुरू से ही विरोध किया जा रहा है। मोदी सरकार ने पिछले साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को निष्प्रभावी कर दिया था।
श्रीनगर नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने मोदी सरकार की ओर से खत्म किए गए अनुच्छेद 370 को लेकर विवादित बयान दिया है। उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के कारण ही चीन ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आक्रामक रुख अपनाते हुए सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी हैं। फारूक अब्दुल्ला यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने यह भी कह दिया कि चीन की मदद से ही जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर अनुच्छेद 370 को बहाल किया जाएगा।
चीन को भारत का फैसला मंजूर नहीं
एक मैगजीन को दिए साक्षात्कार में फारूक अब्दुल्ला ने ये बातें कहीं हैं। उनका कहना है कि चीन को मोदी सरकार की ओर से अनुच्छेद 370 को खत्म किया जाना कभी स्वीकार नहीं है। उन्होंने इस बात की उम्मीद भी जताई की चीन की मदद से ही घाटी में एक बार फिर अनुच्छेद 370 बहाल किया जा सकता है।
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चीन के राष्ट्रपति को मोदी ने बुलाया
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि मैंने कभी चीन के राष्ट्रपति को भारत नहीं बुलाया। हमारे प्रधानमंत्री ने चीन के राष्ट्रपति को गुजरात में बुलाया था और उसे झूले पर भी बिठाया। प्रधानमंत्री मोदी ही उन्हें चेन्नई ले गए और वहां की खूब खिलाया-पिलाया मगर इसके बावजूद चीन के राष्ट्रपति को भारत का रुख पसंद नहीं आया।
चीन ने साफ कर दिया है कि आर्टिकल 370 खत्म किया जाना उसे कबूल नहीं है। यही कारण है कि चीन ने साफ तौर पर कह दिया है कि जब तक अनुच्छेद 370 की बहाली नहीं की जाती तब तक वह रुकने वाला नहीं है। फारूक ने कहा कि अल्लाह करे कि चीन के जोर से हम लोगों को मदद मिले और राज्य में एक बार फिर अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली की जाए।
सोशल मीडिया से फोटो
फारूक शुरू से ही कर रहे विरोध
गौरतलब है कि फारूक अब्दुल्ला की ओर से अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने का शुरू से ही विरोध किया जा रहा है। मोदी सरकार ने पिछले साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को निष्प्रभावी कर दिया था।
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इसके बाद घाटी की कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए विभिन्न दलों के नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। इन नेताओं में फारूक अब्दुल्ला और उनके पुत्र और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी शामिल थे।
चीन और पाकिस्तान ने भी किया विरोध
मोदी सरकार के इस कदम का चीन और पाकिस्तान दोनों ने विरोध किया था। उनके इस विरोध पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए भारत ने देश के आंतरिक मामलों में दखल न देने की चेतावनी दी थी।
फारूक ने संसद में उठाया था मुद्दा
फारूक अब्दुल्ला ने संसद के मानसून सत्र के दौरान भी जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने का मामला उठाया था। उनकी शुरू से ही मांग है कि जम्मू कश्मीर में 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति को एक बार फिर बहाल किया जाना चाहिए।
संसद में उनका कहना था कि सही बात तो यह है कि जम्मू कश्मीर की वैसी प्रगति आज तक नहीं हो सकी है जैसी होनी चाहिए थी। आज भी राज्य के लोग 4जी सुविधा का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं जबकि हिंदुस्तान के अन्य प्रदेशों में यह सुविधा सहज ही उपलब्ध है।
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उनका कहना था कि ऐसी स्थिति में बच्चों को शिक्षा कैसे दी जा सकती है क्योंकि आज के दौर में सब कुछ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। उनका यह भी कहना था कि जम्मू-कश्मीर में तब तक शांति नहीं स्थापित की जा सकती है जब तक वहां 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति नहीं बहाल कर दी जाती।
अंशुमान तिवारी