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First Indian Satelite: देश का पहला Satelite Aryabhata, आज से 48 साल पहले अप्रैल में हुआ था लॉन्च
First Indian Satelite: आज से ठीक 48 साल पहले भारत ने अपना पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट को लॉन्च किया था। रशिया के वोल्गोग्राड के नजदीक कपुस्तिनक यार कोस्मोड्रॉम से इस उपग्रह को लॉन्च किया गया था। पहला सैटेलाइट लॉन्च करने के समय रूस ने भारत की सहायता की थी।
First Indian Satelite: अप्रैल का इतिहास काफी मजेदार और जानकारियों से भरपूर है। उनमें से एक इतिहास भारत की उपलब्धि को दिखाता है। जब आज से 48 साल पहले 19 अप्रैल वर्ष 1975 में भारत ने अपना पहला सैटेलाइट लॉन्च कर अंतरिक्ष के दुनिया में अपनी शुरुआत की थी। भारत का पहला सैटेलाइट 17 वर्षों तक अंतरिक्ष में सफल तौर पर रहा था। इसके बाद 1992 में 10 फरवरी को पृथ्वी पर वापस लौट आया था। भारत का पहला सैटेलाइट लॉन्च करना उस समय विश्व युद्ध जितने के बराबर था। जिसमे 30 भारतीय वैज्ञानिकों का सफल प्रयास और कड़ी मेहनत का ही नतीजा था तब जाकर हम ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने थे। आज ये ऐतिहासिक क्षण हम याद रखे हुए है।
आपको पहले सैटेलाइट लांच की पूरी कहानी का सार बताते है -
अंतरिक्ष में झंडे गाड़ने के लिए होड़ मची हुई थी,
उस समय दुनियां भर में सभी देश अंतरिक्ष में अपना सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए कंपटीशन में लगे हुए थे। इस प्रतियोगिता में रूस ने बाजी मारी थी 1957 में अपना पहला सैटेलाइट स्पुतनिक लॉन्च किया था। जिसके बाद अमेरिका का नासा भी मिशन स्पेस में लग गया था। बड़े देशों को देखकर अन्य देश भी अंतरिक्ष की ओर कदम बढ़ाने लगे थे। भारत में 1962 में स्पेस में गाइड करते हुए काम करने के लिए द इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की शुरुआत हुई। भारत के वैज्ञानिकों ने भी अंतरिक्ष मिशन पर काफी मशक्कत की दिन रात लगकर काम किया। 21 नवंबर 1963 को त्रिवेंद्रम से भारत देश का पहला रॉकेट लॉन्च किया गया। साल 1968 में स्पेस में काम करने वाली एजेंसी का नाम बदलकर ISRO कर दिया गया।
मिशन सैटेलाइट पर एक्टिव हुआ था भारत
भारत ने नए नाम इसरो के साथ 1968 में सैटेलाइट मिशन पर लग गए थे। विक्रम साराभाई ने यूआर राव को सेटेलाइट मिशन का जिम्मा दिया था। राव ने जिम्मेदारी को वहन करते हुए 20 इंजीनियर्स की टीम बनाई और काम पर लग गए। जिसके बाद 100 किलो के सैटेलाइट बनाने का निश्चय किया।
पीएम से बैठक और प्लान में फेर बदल
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1971 में एक बैठक की। जिसमे इसरो के प्रमुस्ख और सैटेलाइट मिशन के कर्ता धर्ता भी बैठक में शामिल हुए। इस बैठक में रूस के राजदूत भी शामिल हुए थे। बैठक में रूसी राजदूत यूआर राव से सवाल पूंछा गया कि चीन ने जो सैटेलाइट लॉन्च किया है, उसका वजन कितना है? राव जवाब देते हैं कि 190 किलोग्राम, रूसी राजदूत ने कहा कि भारत का सैटेलाइट चीन से बड़ा होगा। भारतीय वैज्ञानिकों ने मंजूरी दे दी और फिर चीन से बड़े सैटेलाइट की लॉन्चिंग पर काम शुरू कर दिया गया।
रूस ने लॉन्चिंग व्हीकल के लिए भी सहमति भर दी तो भारतीय वैज्ञानिकों ने 350 किलोग्राम के सैटेलाइट पर काम करना शुरू कर दिया। सैटेलाइट का डिजाइन तैयार हो चुका था। आरयू राव ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया है, उन्होंने लिखा है कि जब वो डिजाइन को लेकर मॉस्को गए तो रूसी वैज्ञानिकों को भरोसा नहीं था कि भारत ये प्रोजेक्ट पूरा कर पाएगा। बहुत कोशिशों के बाद रूस मान गया।
मिशन के दौरान सारा भाई को हार्ट अटैक
1971 में सैटेलाइट का काम शुरू ही हुआ था कि भारत के मशहूर वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की हार्ट अटैक से मौत हो गई। सारा भाई को केवल 52 वर्ष की उम्र मैं उनका अकस्मात मृत्यु काफी चौकाने वाला था। वो एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन थे। साराभाई की मौत के बाद एमजीके मेनन को इसरो प्रमुख नियुक्त किया गया। इसके बाद साल 1972 में सतीश धवन से इसरो की जिम्मेदारी संभाली।
साल 1974 में लॉन्चिंग की तारीख तय हुई। सैटेलाइट मिशन का काम शुरू हुआ तो 6 महीने के अंतराल में रूस देख रेख करने आता था। हालांकि रूस की तरफ से कोई खास मदद नहीं मिल रही थी। काम बहुत बाकी था और लॉन्चिंग डेट नजदीक आ रहा था।
आखिर में तय समय पर की गई लॉन्चिंग
भारतीय वैज्ञानिकों ने दिन-रात मेहनत करके मार्च 1975 में सैटेलाइट तैयार कर लिया। लेकिन सैटेलाइट का नाम नहीं रखा गया था। तात्कालिक पीएम इंदिरा गांधी ने सैटेलाइट मिशन का नाम आर्यभट्ट रखा गया, लॉन्चिंग की तारीख 19 अप्रैल भी आ चुकी थी। सैटेलाइट को वोल्ग्रोग्रैड रशिया के पास कपुस्तिन यार कॉस्मोड्रोम से आर्यभट्ट सैटेलाइट लॉन्च किया जाना था। इस मौके पर 30 भारतीय वैज्ञानिक भी वहां मौजूद रहे। दोपहर 12 बजे काउंटडाउन शुरू हुआ और मिशन पूरा किया गया।
भारत का पहला सैटेलाइट मिशन वास्तविक में सफल हो गया। हालांकि आर्टभट्ट सिर्फ 4 दिनों तक ही सिग्नल भेज पाया था। उसके बाद उससे संपर्क में बाधा आने लगी थी। लेकिन जल्द ही फिर से सिग्नल मिलने लगा और सैटेलाइट काम करने लगा था। इसके बाद करीब 17 सालों तक आर्यभट्ट स्पेस में रहकर जानकारियां साझा करता रहा।