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मिलिए, कांगड़ा की लेडी विश्वकर्मा से, किसी मशीन को लगाती है हाथ तो होता है चमत्कार
गरीबी व भूख इंसान से सबकुछ करवा लेती है। इससे कोई इंसान अपना वजूद खो देता है तो कुछ अपनी एक अलग पहचान बना लेते है। किसी शायर ने भी कहा है कि मुश्किलें दिल का हौंसला आजमाती हैं, ख्वाबों को आंखों पर से हटाती हैं, पर हार मत मानना-ए-मुसाफिर, आखिर यही ठोकरें इंसान को चलना सिखाती हैं।
धर्मशाला गरीबी व भूख इंसान से सबकुछ करवा लेती है। इससे कोई इंसान अपना वजूद खो देता है तो कुछ अपनी एक अलग पहचान बना लेते है। किसी शायर ने भी कहा है कि मुश्किलें दिल का हौंसला आजमाती हैं, ख्वाबों को आंखों पर से हटाती हैं, पर हार मत मानना-ए-मुसाफिर, आखिर यही ठोकरें इंसान को चलना सिखाती हैं।
छोटी उम्र में मां-बाप का साया उठ गया
कांगड़ा हिमाचल की 22 साल स्नेहलता पर यह लाइनें स्टीक बैठती है। स्नेहलता अनाथ है इसके बावजूद देश की टॉप क्लास कंपनी में बतौर मोटर मेकेनिक काम कर रही है। स्नेहलता ने घर की चारदिवारी में खुद को कैद करने की बजाय दुनिया में मेहनत करके सर उठाकर जीना सीखा है।
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स्नेहलता जब महज 4 साल की थी तो उसके मां-बाप दुनिया से चल बसे। स्नेहलता के 8 भाई-बहन हैं, जिसमें वो चौथे नंबर की है। असहज हालात में चलते हुए स्नेहलता ने बामुश्किल अपनी स्कूलिंग पूरी की। बड़े भाई ने भाई होने का फर्ज इतना अदा किया कि बहन अपने पैरों पर खड़ी हो सके, उसे शाहपुर आईटीआई में दाखिला दिलवा दिया। आईटीआई शाहपुर में बतौर इलेक्ट्रिशियन स्नेहलता ने अपनी प्रतिभा के जौहर से डिप्लोमा हासिल किया और कई जगहों में बतौर इलेक्ट्रिशियन काम किया।
काम से जीत लेती है जिंदगी
स्नेहलता की खासियत है कि जहां भी काम करती है, सबका दिल जीत लेती है। बावजूद इसके उसे अभी भी अपने काम से संतुष्टि नहीं है। उसने अपने इस काम से हटकर बड़ी गाड़ियों की मरम्मत करने का सपना संजोया और कई मोटर मेकेनिकों के पास जाकर काम भी सीखने लग गई। स्नेहलता जहां गाड़ियों और इमारतों में अपने इलेक्ट्रिकल काम के लिए प्रखर थी। वहीं मैकेनिकल काम में भी उसकी दिलचस्पी ने उसे नई राह दिखा दी।
स्नेहलता के मजबूत इरादों को उस वक्त पंख लग गए, जब आईटीआई शाहपुर में कैंपस प्लेसमेंट हुई और स्नेहलता की प्रतिभा को एक नामी कंपनी ने पहचानते हुए उसे अपने यहां रख लिया। नगरोटा बंगवा स्थित इस नामी कंपनी के गैराज़ में स्नेहलता के हाथ बड़ी मशीनरी और टूल्स के बीच में इस कदर घूमते हैं कि पुरुष प्रधान मैकेनिक समाज में आज हर कोई इस इकलौती महिला मैकेनिक का कायल है।
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दूसरों के लिए भी खोला रास्ता
स्नेहलता की मेहनत, प्रतिभा और जज्बे को सलाम करते हुए और दूसरी महिलाओं को इस दिशा में मौका देना चाह रही है। इतना ही नहीं, कंपनी की एचआर की मानें तो उन्होंने स्नेहलता को अपने गैराज में नौकरी देकर कोई गलत कदम नहीं उठाया, बल्कि दूसरी महिलाओं के लिए भी मैकेनिक्ल के क्षेत्र में अपना जौहर दिखाने का रास्ता खोल दिया है।